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स्वतंत्रता दिवस ::एकता, अखंडता और एकजुटता का संकल्प लें-अरुण पटेल

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आलेख
अरुण पटेल

​जब हम इस बार स्वाधीनता दिवस की वर्षगांठ मना रहे हैं तो लालकिले की प्राचीर से देश का राष्ट्रीय ध्वज फहराने के साथ ही हर गांव, गली व कस्बे में बड़े उत्साह व उमंग के साथ राष्ट्रीय ध्वज को सलामी दी जा रही है। यह एक ऐसा अवसर है जब प्रत्येक देशवासी का सिर गर्व से उठा हुआ है और सीना फूला हुआ है। वह अपने प्यारे तिरंगे झंडे को जब सलामी दे रहा है तब हमें देश की एकता, अखंडता और एकजुटता का न केवल संकल्प लेना चाहिये बल्कि इस बात के लिए भी पूरी दृढ़ इच्छाशक्ति के साथ संकल्पित होना चाहिए कि हम हर कीमत पर अपनी आजादी को अक्षुण्ण बनाये रखेंगे। देशवासियों को इस बात के प्रति हर हाल में चौकन्ना रहना होगा कि किसी भी सूरत में और किसी भी प्रकार से हम अपनी आजादी को कम न होने दें, यदि कहीं भी किसी कोने से रंचमात्र भी ऐसा अहसास होता है कि हमें हमारे अधिकारों से वंचित करने का प्रयास हो रहा है उसे पूरी ताकत से रोकने के लिए संकल्पबद्ध होना होगा। पहले प्रधानमंत्री के रुप में पंडित जवाहरलाल नेहरु ने तिरंगा झंडा फहराया था और यह झंडा लाखों लोगों की कुर्बानी, त्याग व तपस्या से मिली आजादी और राष्ट्रीय गौरव का प्रतीक ऐसा झंडा है जो हमें अपने प्राणों से भी प्यारा है और इसे शान से लहराते हुए देखने से सबके मन में हर्ष व उल्लास होना स्वाभाविक है। आजादी के अमृत महोत्सव को हम मना रहे हैं तो यह भी अपने आपमे एक विशेष अवसर है।
​इस बार भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के आह्वान पर हर घर में तिरंगा लहराने का जो बीड़ा उठाया गया है वह वास्तव में हमें अपनी उपलब्धियों पर गर्व करने और भविष्य की एक सुनिश्चित रुपरेखा बनाते हुए संकल्प और प्रतिबद्धता के साथ उन सपनों को और आगे ऊंचाइयों तक ले जाने का अवसर प्रदान करता है। इसलिए यह जरुरी है कि देशवासी अब तक की सभी उपलब्धियों को लेकर गौरवान्वित हों और आगे के अपने सपने के भारत को बनाने में कोई कोर-कसर बाकी न छोड़ें। देशवासी जब इस भावना के साथ स्वाधीनता दिवस मनायेंगे तभी हम उन लाखों-करोड़ो लोगों की कुर्बानी, त्याग तथा बलिदान का सम्मान कर पायेंगे जिन्होंने देश को आजाद करने का सपना देखा और इस सपने को पूरा करने के बाद ही चैन की सांस ली। जिस किसी को जो कुर्बानी देना पड़ी वह उसने हंसते-हंसते दी। उसे याद करते हुए हमें देश को प्रगति के पथ पर आगे बढ़ाना है। चिन्तन-मनन इस बात का होना चाहिये कि इतने वर्षों की यात्रा में हमने क्या पाया और यदि कहीं कोई कमी रह गयी है तो उसे दूर करने के लिए नये संकल्पों के साथ कैसे आगे बढ़ें। जहां तक देश के आगे बढ़ने का सवाल है भारत ने काफी विकास किया है और वह दुनिया की तीसरी महाशक्ति बनने की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहा है। इस अभियान को और कैसे अधिक गतिमान कर सकते हैं इसके लिए हर देशवासी को अपनी सहभागिता के लिए मन, वचन और कर्म से प्रतिबद्ध होने की जरूरत है। यह स्वीकार करने में हमें तनिक भी संकोच नहीं होना चाहिए कि आज परस्पर विश्वास और साख का संकट है तथा राजनीतिक फलक के सर्वोच्च शिखर पर पहुंचने के लिए राजनेता अपनी लकीर लम्बी करने के स्थान पर दूसरे की लकीर छोटी करने में भिड़े हुए हैं। जबकि आवश्यकता इस बात की है कि उन्हें ऐसी मनोवृत्ति को त्याग कर परस्पर विश्वास और भाईचारा व सहयोग की भावना विकसित करना चाहिये।


​लोकतंत्र में सत्तापक्ष और विपक्ष एक गाड़ी के दो पहिए हैं। उनके बीच मुद्दों व सिद्धान्तों पर मतभेद हो सकते हैं लेकिन मनभेद नहीं होना चाहिये। कोई किसी का दुश्मन नहीं है और न शत्रु है बल्कि दोनों ही लोकतंत्र रुपी गड़ी के दो पहिए हैं और दोनों ही स्वस्थ लोकतंत्र के लिए जरुरी हैं। आजाद भारत का सपना देखने वाले कर्णधारों ने अपने सपने को साकार करने के लिए जिस रास्ते को चुना उस पर हम उनकी मंशा के अनुसार आगे बढ़ रहे हैं या कहीं न कहीं किसी न किसी रुप में लोकतंत्र की गाड़ी कुछ डगमगा रही है। यदि यह गाड़ी पटरी से उतरती नजर जा रही है तो फिर यह लाजिमी हो जाता है कि हम पूरी गंभीरता के साथ आत्ममंथन करें और यह सोचें कि हम उन महापुरुषों के सपनों को साकार कर पाये या धीरे-धीरे सत्ता के मद में अंदर ही अंदर तानाशाही की प्रवृत्ति को आगे बढ़ा रहे हैं। आज कुछ सवाल जनमानस के मन में हिलोरें ले रहे हैं और उन्हें लग रहा है कि सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है तथा इसमें बदलाव की जरुरत है। यदि यह बदलाव चिंतन-मनन के बाद अभी नहीं किया गया तो फिर परिस्थितियों के और भयावह हो जाने की आहट साफ सुनाई पड़ने लगेगी। यह आहट वह लोग महसूस कर रहे हैं जिन्हें राजनीति से परे देश की चिन्ता है। ​आज सत्तापक्ष और विपक्ष दोनों को ही इस बात का ध्यान रखना होगा कि वे अपनी मर्यादा की सीमारेखा को न लांघे, क्योंकि कभी-कभी ऐसा लगता है कि दोनों का व्यवहार अमर्यादित है और कहीं न कहीं मर्यादा की लक्ष्मणरेखा को लांघने में किसी को परहेज नहीं है। केवल विरोध के लिए विरोध और हर मुद्दे पर असहमति का भाव लोकतांत्रिक मूल्यों, परम्परा शिष्टाचार के विपरीत है। सत्तापक्ष एवं विपक्ष के बीच जो संवादहीनता की स्थिति निरंतर बढ़ रही है उस पर अंकुश लगना चाहिये क्योंकि यह हालात लोकतंत्र के हित में नहीं हैं। पिछले कुछ वर्षों से जो माहौल बन रहा है कि जो हमसे सहमत है वही राष्ट्रभक्त है और असहमति रखने वाला देश विरोधी है, इस सोच को भी बदलना आवश्यक है क्योंकि सत्तापक्ष और विपक्ष दोनों ही लोकतंत्र की अहम कड़ी हैं। इस अवसर पर देशवासियों को संकल्पित होना होगा कि हर कीमत पर हम देश में भाईचारा, अमन-चैन व शान्ति बनाये रखेंगे। जो भी इसमें खलल पैदा करने की कोशिश करेगा उसका डटकर मुकाबला करेंगे। वसुधैव कुटुम्बकम हमारी संस्कृति व सभ्यता का आदिकाल से मूलमंत्र रहा है और आज भी वह पूरी तरह से प्रासंगिक है जिसे साकार करना सबका कर्तव्य होना चाहिए। आजादी की इस शुभ बेला पर समस्त देशवासियों और अमृतसंदेश के पाठकों, शुभचिंतकों को इस बात के लिए प्रतिबद्ध होना है कि हम हर हाल में अपनी आजादी को अक्षुण्ण रखेंगे और जो सपने हैं उन्हें पूरी निष्ठा के साथ साकार करेंगे। स्वाधीनता दिवस की सभी को बहुत-बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं ।

लेखक मप्र के वरिष्ठ पत्रकार हें।
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