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ऐसा था Mohd Rafi की जि़ंदगी का आखिरी दिन 31 जुलाई को आए थे 3 हार्ट अटैक यह था घटनाक्रम

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31 जुलाई को महानतम गायक Mohd Rafi मोहम्‍मद रफी की 43 वीं पुण्‍यतिथि है। 31 जुलाई 1980 के दिन तीन हार्ट अटैक आए थे। इलाज के दौरान उनका निधन हो गया था। अगले दिन 1 अगस्‍त को जब उनका जनाज़ा निकला तो मुंबई में भारी बारिश हो रही थी। पूरे रास्‍ते में छाते ही छाते खुल गए थे। आखिरी सफर पर उन्‍हें विदाई देने हजारों की तादाद में लोग उमड़े थे। इसमें फिल्‍मी दुनिया और इससे बाहर के कई लोग शामिल थे। रफी साहब के चाहने वालों के मन में यह जिज्ञासा जरूर जागती है कि आखिर 31 जुलाई को उन्‍हें कब क्‍या हुआ था और कैसे वे दुनिया से रूखसत हुए। यहां हम आपको बताने जा रहे हैं उस दिन का पूरा घटनाक्रम। यह घटनाक्रम लखनऊ निवासी सुप्रसिद्ध रफी प्रशंसक संजीव कुमार दीक्षित ने स्‍वयं रफी साहब के सबसे छोटे दामाद परवेज़ अहमद से बातचीत के दौरान पता किया था। आप भी पढि़ये।

ऐसा था रफी साहब का आखिरी दिन, सुबह से रात तक यह हुआ

31 जुलाई 1980 की सुबह रफी साहब जल्दी उठ गए थे। उन्‍होंने 9 बजे नाश्ता किया और उसके बाद बंगाली संगीतकार कमल घोष के बंगाली गीत की रिहर्सल शुरू कर दी। कमल घोष उनके घर पर ही आए थे क्‍योंकि स्‍वास्‍थ्‍यगत कारणों से रफी साहब घर से बाहर नहीं जा सके थे। घोष जी के घर से जाते ही रफी साहब को सीनेमें हल्‍का सा दर्द शुरू हुआ। उनके साले ज़हीर भाई (जो उनके पर्सनल सेकेट्री भी थे) ने उन्हें सोनामेंट की टेबलेट दी। इसके पहले भी रफी साहब को दो हल्‍के अटैक Mild Heart Attack आ चुके थे लेकिन रफी साहब ने इस बात को नज़र अंदाज़ कर दिया था। दोपहर 1 बजे डॉक्टर चंद्रमखि से बातचीत हुई, इसके बाद बाद 1 बज कर 15 मिनट पर उनके फैमिली डॉक्‍टर K. M. Modi ने घर आकर रफी साहब की जांच की। जांच में उन्‍होंने पाया कि हार्ट संबंधी समस्‍या है, इसके चलते उन्‍होंने रफी साहब को फौरन ऑक्‍सीजन देने के लिए कहा। इसके बाद घर वालों से कहा कि रफी साहब को एडमिट करना होगा। रफी साहब एंबुलेंस में नहीं जाना चाहते थे लेकिन स्‍वयं की कार से वे अस्‍पताल जाने को राजी थे। हॉस्पिटल जाने के लिए वे स्‍वयं चलकर अपनी कार तक गए थे। इसके बाद दोपहर 2 बजे तक उन्‍हें माहिम के नेशनल हॉस्पिटल में एडमिट करा दिया गया लेकिन वहां डॉक्‍टरों के पास पेस मेकर Pace Maker मशीन नहीं थी जो कि हार्ट पेशेंट के लिए जरूरी होती है।

बताया गया कि बॉम्‍बे हॉस्पिटल में पेस मेकर। वहां ले जाते समय रास्‍ते में रफी साहब को दूसरा अटैक आ गया। शाम 6 बजे उन्‍हें बॉम्‍बे हॉस्पिटल में शिफ्ट कराया गया। वहां डॉक्‍टरों ने रफी साहब को पेस मेकर मशीन तो इंस्‍टाल कर दी लेकिन वह ठीक से काम नहीं कर पा रही थी। जब तक दूसरी पेस मेकर मशीन का इंतज़ाम होता, रात के 9 बज चुके थे। इस आपाधापी में बहुत महत्‍वपूर्ण समय चला गया जिसमें डॉक्‍टर उन्‍हें बचा सकते थे। रात 9 बजे डॉक्टर K.M. Modi और डॉक्टर ड़ागर ने रफी साहब को अटैंड किया लेकिन उनकी हालत बिगड़ती जा रही थी। इस तरह रात के 10 बज गए। 10 बजकर 10 मिनट पर रफी साहब को तीसरा अटैक आया और उनकी सांसें उखड़ गईं। उनका निधन हो गया। डॉक्‍टरों ने भी घोषित कर दिया।

रात भर उनका मृत शरीर हॉस्पिटल में रखा गया। 1 अगस्‍त, 1980 की सुबह 9.30 बजे उनकी बॉडी परिजनों को सौंप दी गई। रफी साहब के दोस्‍त शाहिद बिजनौरी ने उन्‍हें आखिरी गसूल दिया। दोपहर 12.30 बजे उनका जनाज़ा घर से रवाना हुआ। दोपहर 2 बजे बांद्रा की बड़ी मस्जिद में नमाज “नमाज़-ए-जनाज़ा” की रस्म हुई और 2:30 बजे सब लोग रफी साहब को लेकर सारे सांताक्रूज़ कबिस्तान की ओर चल पड़े। पूरे रास्‍ते जोरदार बारिश होती रही। उस रोज़ बम्‍बई में इतनी मूसलाधार बारिश हुई मानो खुदा रफी साहब को विदाई देने के लिए खुद रो पड़ा हो। शाम 6.30 बजे रफी साहब के मृत शरीर को दफनाया गया तो बारिश एकदम रुक गई। यह सुनने में बहुत आश्‍चर्यजनक लगता है लेकिन सच है। इस तरह रफी साहब हमेशा के लिए चले गए और पीछे रह गईं अमिट यादें। उन्‍हीं के शब्‍दों में, “ये जि़ंदगी के मेले दुनिया में कम न होंगे, अफसोस हम न होंगे”।

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