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अपने नाम के लिये दूसरे का नाम मिटाना गलत है – आचार्य श्री विद्यासागर महाराज

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सुरेन्द्र जैन रायपुर

संत शिरोमणि 108 आचार्य श्री विद्यासागर महाराज ससंघ चंद्रगिरी डोंगरगढ़ में विराजमान है | आज के प्रवचन में आचार्य श्री ने बताया कि दिग्विजय के लिये भरत चक्रवर्ती गए थे | जो छह खंड के अधिपति होते है उन्हें चक्रवर्ती कहते हैं और जो तीन खंड के अधिपति होते हैं उन्हें अर्धचक्री कहते हैं | भरत चक्रवर्ती युग के आदि के वे चक्रवर्ती माने जाते है | पहले से ही सभी लोगो को यह ज्ञात हो गया था कि वे चक्रवर्ती बनेंगे | छह खंडो पर विजय प्राप्त कर चक्रवर्ती बना जाता है | एक को चक्रवर्ती कहते हैं और एक को नारायण कहते है | यह सब बात ज्ञात है किन्तु इन कामो में इन चक्रवर्तियों के द्वारा कुछ ऐसी गलती हो जाती है जो हम तुम के द्वारा नहीं भी हो सकती है क्योंकि चक्रवर्ती एक समय में एक स्थान पर एक ही होता है | लेकिन वो गलती कम करते हैं वो तो सभी को ज्ञात है | भरत चक्रवर्ती छह खंडो पर विजय प्राप्त करने के उपरांत अपने मंत्री को कहते है कि जिस लक्ष्य को लेकर चले थे वो तो पूर्ण हो गया उसका जो उल्लेख शिला लेख जिसको बोलते हैं वह तैयार कर लिया जाये | मंत्री कहता है इसमें कोई सन्देह नहीं | ऐसा शिला लेख तैयार किया जाए कि युग के आदि में ऐसे चक्रवर्ती हुए थे | यह स्पष्ट नहीं होता है कि जो पहला चक्रवर्ती होता है उसी का नाम शिला लेख में लिखने का प्रावधान होता है या सारे के सारे चक्रवर्ती का नाम उल्लेखित होता है | संभव है सभी का होना चाहिये क्योंकि कुल 12 चक्रवर्ती होते है उनका भी नाम होना चाहिये | वह विजयार्थ पर्वत के ऊपर यह देखने चले गए कि यह शिला लेख में लिखना है चक्रवर्ती कि आज्ञा है | मंत्री बहुत बुद्धिमान होते हैं और बुद्धि का प्रयोग वे समय – समय पर करते है | उसने सोचा कि भरत चक्रवर्ती के नाम के आगे पिता का या माता का नाम भी उल्लेखित किया जाए जैसे आप लोग प्रशस्ति में लिखते हैं | जाकर के देखा तो वहाँ पर भरत चक्रवर्ती के अकेले का नाम लिखने के लिये भी स्थान नहीं था | इतना बड़ा पर्वत है, इतना बड़ा स्थान है, इतना बड़ा काम हुआ है और इतने बड़े चक्रवर्ती के द्वारा हुआ है जो वृषभनाथ तीर्थंकर के ज्येष्ठ पुत्र हैं | जो एक प्रकार से तीर्थंकरों के द्वारा कहा हुआ है कि यही होंगे | कई बार टिकट नहीं मिल पाता है तो पैसा देकर के ले लिया जाता है यह खुलेआम तो नहीं होता लेकिन रहस्य कि बात खुल जाती है | जब चक्रवर्ती का नाम मात्र लिखने के लिये भी जगह नहीं है | अब कैसे लिखा जाये यहाँ पर मंत्री कि बुद्धि काम नहीं आएगी | वह जाकर चक्रवर्ती से पूछता है कि महाराज एक संदेह है जिसे दूर करने कि आवश्यकता है | चक्रवर्ती कहता है कि आपको सभी जानकारी दे दिये कि शिला लेख कैसे लिखना है आदि फिर क्या सन्देह है ? तो मंत्री कहता है कि महाराज पहले भी बहुत चक्रवर्ती हुए हैं जिनके नामो का उल्लेख प्रशस्ती में लिखा है उसमे आपका नाम लिखने कि जगह शेष नहीं है | यह सुनकर चक्रवर्ती को ऐसे तो पसीना नहीं आता लेकिन वह सोचता है कि इतना बड़ा काम हुआ है तो नाम का उल्लेख करना जरुरी है यदि निचे वाले का नाम साफ़ कर दिया जाए तो ऊपर वाले मुझसे पहले के कहलायेंगे और ऊपर वाला नाम साफ़ किया जाएगा तो मै पहला हो जाऊंगा तो वह निर्णय करता है कि सबसे ऊपर वाले का नाम साफ़ कर मेरा नाम लिखा जाये | दूसरे के नाम को मिटाना नाम कर्म के उदय के बिना संभव नहीं है | ऐसा कौन से कर्म का उदय आया कि जिनको अंतर्मुहूर्त में संयम धारण करने के उपरांत केवल ज्ञान होना है | यह मान कषाय के बिना हो नहीं सकता और अनर्थ और हो गया | चक्रवर्ती ऐसा विचार करता है कि उसने जो कुछ भी कार्य किया है वह भगवान के केवल ज्ञान में झलका हुआ था इसलिए ऐसा हुआ | यह तो ठीक ऐसा ही है जो लोग घर पर रहकर मोक्षमार्ग में जाने कि सोच रहे है | किसी भी चक्रवर्ती का भूत उतारना हो या मान कषाय को कम करना हो तो उन्हें ऐसा कहते है कि तुम्हारे जैसे कई है | ये सीनियर है आप तो जूनियर हो मतलब बच्चे हो | किन्तु मै समझ रहा हूँ अप्रत्याख्यानावर्ण के कारण ऐसा हुआ | अप्रत्याख्यान का देश संयम होता है | आवरण का अर्थ होता है उस संयम को मिटाने वाला इसलिए वह सोचता है कि अब तो चलो मेरा नाम लिखा गया जब भी दूसरा चक्रवर्ती आएगा तो वह सोचेगा कि सबसे पहले इनका नाम है | यह अप्रत्याख्यान के उदय से दूसरे कि प्रशस्ति को मिटा कर अपनी प्रशस्ति को चन्द्रमा के समान उज्जवल करने का साहस करता है | यह गलती चन्द्रमा में लगे दाग के समान है जो अनंत काल तक रहेगा ऐसा शास्त्रों में लिखा है | जब कभी भी द्वादशांग कि रचना होगी उसमे ६३ शलाखा पुरुषों में भरत चक्रवर्ती का नाम भी आएगा | यह अप्रत्याख्यान और प्रत्याख्यान के भूत को स्वयं ही अपने हाथ से मिटा दे और यहाँ पर केवल ज्ञान कि प्रशस्ति लिख दे | चक्रवर्ती होने कि भावना भाते है कि भगवान हमें भी प्राप्त हो जाये हम तो दूसरे कि प्रशस्ति को और प्रशस्त करने का प्रयास करेंगे | आज आचार्य श्री विद्यासागर महाराज को नवधा भक्ति पूर्वक आहार कराने का सौभाग्य ब्रह्मचारिणी प्रीती दीदी, श्री पंकज जैन गुना (मध्य प्रदेश ) निवासी परिवार को प्राप्त हुआ

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