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वार्षिक करीला मेला में रंगपंचमी पर पहुंचते हैं लाखों श्रृद्धालु

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करीला धाम श्रृद्धालुओं की आस्‍था केंन्‍द्र

मनोकामना पूर्ण होने श्रद्धालु कराते है राई नृत्‍य

रंगपंचमी के वार्षिक करीला मेला में पहुंचते हैं लाखों श्रृद्धालु

अशोकनगर से नीरज शुक्ला

मध्यप्रदेश के अशोकनगर जिले की बहादुरपुर तहसील की ग्राम पंचायत जसैया के ग्राम करीला में प्रतिवर्ष रंगपंचमी पर विशाल मेला का आयोजन किया जाता है। इस वर्ष यह मेला 21,22 एवं 23 मार्च 2022 तक आयोजित किया जाएगा। मॉं जानकी करील के ऐसे घने जंगल में ऋषि बाल्‍मीकी के आश्रम में लवकुश के साथ रहीं, इसलिए इसे करीला कहा गया। मेला में लगभग 20 लाख श्रद्धालुओं की सुविधाओं को ध्यान में रखकर सुरक्षा व्यवस्था एवं अन्‍य सुविधाओं के व्यापक इंतजाम किए जाते हैं।

मॉ जानकी के दर्शन कर लाखों श्रद्धालुओं लेते हैं आर्शीवाद

रंगपंचमी पर सुबह से ही श्रद्धालुओं का करीला धाम आना प्रारंभ हो जाता है। रंग पंचमी के दिन व रात में लाखों श्रद्धालु मॉ जानकी के मंदिर में शीश नवाते हैं तथा दर्शन लाभ लेकर आर्शीर्वाद प्राप्‍त करते हैं। मन्नतें पूरी होने पर हजारों श्रद्धालु मंदिर परिसर के बाहर राई नृत्य करवाते हैं। करीला के मुख्य मंदिर में मॉ जानकी के साथ-साथ महर्षि वाल्मिीकि व लव-कुश की प्राचीन प्रतिमायें स्थापित है।

मां जानकी दरवार की भभूति से फसलों के होते है रोग दूर

मां जानकी माता के दरवार पर जो श्रद्धालु आते है। दर्शन लाभ लेकर श्रद्धालु मां जानकी दरवार की भभूति अपने साथ ले जाते है। इस भभूति को फसल के समय खेतो में फसलों पर छिड़की जाती है। यदि फसल में इल्‍ली लग जाती है तो भक्‍तजन मां के दरबार की भभूति खेतों में डालते है। लोगों की मान्‍यता है कि इस भभूति से फसलों में लगे रोग एवं इल्‍ली दूर हो जाती है।

राई नृत्य की रहती है धूम,नृत्यांगनाओं द्वारा किया जाता राई एवं बधाई नृत्य

करीला धाम में मान्यता है कि जिसके सन्तान न हो वह यहां आकर मन्नतें मांगे तो उसकी मुराद मॉ जानकी पूरी करती हैं। श्रृद्धालु मां जानकी के दरवार में श्रृद्धा की प्रसादी अर्पित कर मन्‍नतें मांगते हैं। मुराद पूरी होने पर श्रद्धालु यहां आकर अपनी श्रृद्धानुसार राई नृत्य करवाते हैं। क्षेत्र में यह लोकोक्ति प्रचलित है कि लव व कुश के जन्म के बाद मॉ जानकी के अनुरोध पर महर्षि वाल्मिीकि ने उनका जन्मोत्सव बडी धूम-धाम से मनाया था। जिसमें स्वर्ग से उतरकर अप्सरायें आई थी तथा उन्होने यहॉ नृत्य किया था। वही जन्मोत्सव आज भी रंग पंचमी के अवसर पर यहॉ मनाया जाता है। उसी उत्सव में हर वर्ष सैकडों नृत्यांगनायें यहॉ राई नृत्य प्रस्तुत करती है। नृत्यांगनाएं ओढ़नी से घूंघट डाले नगड़ियों की गूंज एवं मृदंग की थाप पर लम्बे घेर वाले लंहगे एवं पैरों में घुंघरू की खनखनाती आवाज पर मनमोहक अदाओं के साथ रातभर नृत्य करती रहीं। ऐसा लग रहा था मानो अप्सराएं जमीन पर उतरकर जन्मोत्सव की खुशी मना रही हों। भोर होने पर नृत्यांगनाओं द्वारा प्रस्तुत बधाई नृत्य के साथ मेला का समापन होता है।

जिला प्रशासन एवं पुलिस प्रशासन द्वारा कराई जाती हैं समुचित व्‍यवस्‍थाएं

करीला मेले की सुरक्षा व्यवस्थाओं के साथ-साथ सम्पूर्ण मेला की व्यवस्थाएं जिला प्रशासन एवं पुलिस प्रशासन द्वारा कराई जाती हैं। मेला परिसर में पेयजल सहित विद्युत, स्वच्छता तथा सुरक्षा की बेहतर व्यवस्थाएं रहती हैं। जिले के सभी विभागों के अधिकारियों एवं कर्मचारियों को मेला व्यवस्थाओं के लिए दायित्व सौंपे जाते हैं। जिसके तहत सभी अधिकारी एवं कर्मचारी पूरी मुस्तैदी के साथ कार्य करते हैं। सेक्टर मजिस्ट्रेटों द्वारा दर्शनार्थियों को कोई असुविधा न हो इस पर विशेष ध्यान दिया जाता है। पुलिस के जवान मंदिर परिसर में निर्मित 35 फिट वॉच टावर पर पहुंचकर दूरबीन से तथा ड्रोन कैमरों से सुरक्षा व्यवस्थाओं का जायजा लेते हैं। साथ ही मंदिर परिसर एवं मेला स्थल पर लगाए गए सी.सी.टी.वी.कैमरों से मेले पर सतत निगरानी रखी जाती है। मेला परिसर में खोया पाया केन्‍द्र भी संचालित होता है। जिसके माध्‍यम से बिछडे हुए लोगों को अपनों से आसानी से मिलाया जा सके। मेला में आवागमन को सुगम बनाने हेतु चप्पे-चप्पे पर पुलिस की तैनाती की जाती है।

श्रृद्धालुओं को उपलब्‍ध कराया जाता है शुद्ध पानी

करीला मेला में श्रृद्धालुओं को शुद्ध पेयजल उपलब्‍ध कराने के लिए पाइप लाइन बिछाकर जगह जगह टोटियां लगाकर पेयजल की आपूर्ति की जाती है। साथ ही 7 बोर के माध्‍यम से पाईप लाईन तथा 300 टेंकरों के माध्‍यम से पानी के विशेष इंतजामों के साथ ही पानी की सप्लाई की व्यवस्था की जाती है।

मेला में झूलों का आनंद

मेले में शिरकत करने आने वाले श्रृद्धालु मेले का भरपूर आनंद लेते हैं। मेला में लगने वाले बड़े-बड़े झूलों एवं सर्कस का युवा तथा छोटे झूलों का बच्चे झूलकर आनंद लेते हैं। ग्रामीणों द्वारा मेला में लोहे की कढ़ाईयों एवं सामग्री की खरीदी की जाती हैं। साथ ही दुकानों में स्‍वादिष्‍ट व्यंजनों का स्वाद भी ग्रामीणों द्वारा लिया जाता है।

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