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झील संरक्षण के नाम पर 15 वर्षों में 150 करोड़ रुपये खर्च फिर भी बड़े तालाब काे निगलता जा रहा अतिक्रमण

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भोपाल। भोपाल देशभर में झीलों की नगरी के नाम से जाना जाता है, इसी वजह से यहां हर वर्ष झीलों के संरक्षण के नाम करोड़ो रुपये खर्च किए जाते हैं। बीते 15 वर्षों में बड़े तालाब समेत अन्य जलाशयों के संरक्षण और संधारण के नाम पर 150 करोड़ रुपये की अधिक की राशि खर्च की जा चुकी है, लेकिन अतिक्रमण इन्हें दिनों- दिन निगलता जा रहा है। विशेषज्ञों की मानें तो बड़े तालाब के 20 वर्ग किलोमीटर में स्थित कैंचमेंट क्षेत्र में 1500 से अधिक भूमाफियाओं ने कब्जा जमा रखा है, लेकिन इनके रसूख के चलते निगम अधिकारी कार्रवाई की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं।

बता दें कि बड़े तालाब का जल भराव क्षेत्र 31 वर्ग किलोमीटर और कैचमेंट एरिया 361 वर्ग किलोमीटर है। इसके कैचमेंट एरिया में दो दर्जन से अधिक अवैध शादी हाल संचालित हो रहे हैं। इसके साथ ही सौ से अधिक लोगों ने अतिक्रमण कर यहां पक्के गोदाम और फार्महाउस बना लिए हैं। इनमें शहर के राजनीतिक व व्यापारिक लोगों के साथ सरकार के बड़े अधिकारी भी शामिल हैं। इनके रसूख के कारण अब तक नगर निगम भी नोटिस भेजने के अलावा कोई बड़ी कार्रवाई नहीं कर पाया। जबकि तालाब का तकरीबन 26 वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र खाली हो चुका है। आसपास के लोगों के अलावा भू-माफिया ने भी मौके का फायदा उठा अवैध कब्जा कर अधिकांश हिस्से में खेती शुरू कर दी। बड़े तालाब की जद में आने वाले नाथू बरखेड़ा, वनट्री हिल्स से बैरागढ़, भदभदा से सूरज नगर और बिसनखेड़ी समेत अन्य स्थानों में बड़े-बड़े फार्म हाउस काटे जा रहे हैं। यहां पानी में ही 10 से 15 फीट ऊंचे पिलर खड़े कर दिए गए हैं।

वेटलैंड के अस्तित्व पर खतरा

वेटलैंड के बड़े हिस्से में कब्जा कर पक्के मकान बना लिए गए हैं। जिससे तालाब में दलदली भूमि कम होती जा रही है। जबकि यह नम भूमि को वेटलैंड का फिल्टर कहा जाता है। क्योंकि यह गंदे पानी को साफ की जमीन के अंदर पहुंचाती है। नम भूमि के खत्म होते ही वेटलैंड का अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा। भोज वेटलैंड और इसके आपास 210 प्रकार के पक्षियों की प्रजातियां पाई गई हैं। वहीं 700 प्रजातियों के पक्षी हजारों की संख्या में हिमालय पार कर हर साल यहां आते हैं। इनमें कई पक्षी दुर्लभ प्रजाति के होते हैं। लेकिन इनके संरक्षण को लेकर काम नहीं होने दिनोंदिन बड़े तालाब के किनारे पक्षियों का दर्शन दुर्लभ होता जा रहा है।

अतिक्रमण को बढ़ावा दे रहा टीएडंसीपी और झील संरक्षण प्रकोष्ठ

बड़े तालाब में अवैध निर्माण को वैध करने में बड़ी भूमिका टीएनंडसीपी और झील संरक्षण प्रकोष्ठ के अधिकारियों की है। जिसे बिल्डिंग परमिशन नहीं देनी होती झील संरक्षण प्रकोष्ठ के अधिकारी उसे भूमि को नीली लाइन से जोड़कर दिखाते हैं। मतलब यह भूमि तालाब के कैचमेंट क्षेत्र में है। वहीं जिसे परमिशन देनी है, उसे नक्शे में लाल लाइन के पास दिखाया जाता है, यानि कि यह जमीन कैचमेंट क्षेत्र से बाहर है। बिना भौतिक सत्यापन किए टीएडंसीपी और बिल्डिंग परमिशन इस भूमि पर भवन अनुज्ञा की स्वीकृत दे देते हैं।

वर्ष 2023-24 के लिए नौ करोड़ के बजट का आवंटन

बता दें कि बीते 15 वर्षों में संरक्षण के नाम पर 150 करोड़ रुपये खर्च होने के बाद भी बड़े तालाब के आसपास तेजी से अतिक्रमण बढ़ रहा है। इसके बावजूद अतिक्रमणकारियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है। इधर नए वित्तीय वर्ष 2023-24 के बजट में भी नगर निगम ने झाील संरक्षण के नाम पर नौ करोड़ रुपये का बजट जारी किया है।

इनका कहना

तालाब के कैचमेंट क्षेत्र में सबसे अधिक अतिक्रमण खानूगांव, बैरागढ़ व सूरज नगर में हुआ है। इसके आसपास स्थित खेतों में रासायनिक घातक कीटनाशकों और उर्वरकों के बेतहाशा उपयोग और जलग्रहण क्षेत्र में धड़ल्ले से अतिक्रमण के साथ हो रहे निर्माण कार्यों ने झील की सेहत बिगाड़ कर रख दी है।

-सुभाष सी पांडे, पर्यावरणविद

इनका कहना है

रामसर साइट के अधीन में जो वैटलैंड भूमि है, उसे धरती की फेफड़ा और किडनी कहा जाता है। लेकिन बड़े तालाब के चारों ओर कैचमेंट क्षेत्र में अधाधुंध सीमेंट काक्रीट से इमारतों का निर्माण हो रहा है, जिससे नम भूमि कम होती जा रही है। ऐसा ही चलता रहा तो एक दिन वेटलैंड का अस्तित्व खत्म हो जाएगा।

– प्रदीप खंडेलवाल, सामाजिक कार्यकर्ता

दुर्भाग्यपूर्ण है कि राज्य सरकार रामसर साईट और भोपाल की शान को अतिक्रमण से नहीं बचा पा रहीं है। यहां सारस भी है और कई अन्य दुर्लभ प्रजाति के पक्षी भी। चारों ओर से तालाब पर खतरा भोपाल व सीहोर जिलों में मंडरा रहा है। लेकिन मंत्री डांग व भूपेंद्र सिंह दोनो की भोज वेटलैंड संरक्षण के संरक्षण को लेकर कोई रूचि नहीं है।

– अभिलाष खांडेकर, सदस्य मप्र वेटलैंड अथारिटी

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