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उद्योगों के अपग्रेडेशन से बढ़ेगा दालों का उत्पादन पीएलआइ स्कीम लाने का प्रस्ताव

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इंदौर। निर्माण क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने देश में उद्योगों के लिए प्रोडक्टिविटी लिंक इंसेंटीव स्कीम (पीएलआइ) जारी की है। आटोमोबाइल से लेकर इलैक्ट्रानिक, सेमिकंडक्टर जैसे तमाम निर्माण क्षेत्र के उद्योगों के लिए सरकार ऐसी स्कीमें जारी कर चुकी है।दालों की महंगाई और देश में खपत के मुकाबले कमी का हल भी सरकार ऐसी स्कीम के जरिए खोजना चाहती है। केंद्रीय उपभोक्ता मंत्रालय के सचिव रोहित कुमार सिंह ने कहा है कि सरकार ऐसी योजना लाने को तैयार है। बशर्ते दालों का उत्पादन बढ़ाने में योजना मददगार रहे।

शनिवार को इंदौर आए केंद्रीय सचिव ने दाल मिलर्स और उद्योग संगठनों के पदाधिकारियों से कहा है कि दाल उद्योगों की उत्पादकता और दक्षता बढ़ाने पर ध्यान देना जरुरी है। यदि सरकार के हस्तक्षेप व सहयोग से अगर दाल उद्योग में थोड़ा भी उत्पादन बढ़ने की संभवना है तो हम इस दिशा में आगे बढ़ने को तैयार है। इंदौर के दाल उद्योग संचालकों से समस्याएं जानने के साथ सचिव ने पूछा है कि इस क्षेत्र के लिए पीएलआइ स्कीम किस तरह तैयार की जा सकती है उद्योग संचालक खुद बताएं।

जीएसटी कम करने की मांग

दरअसल भारत दुनिया में दालों का सबसे बड़ा उपभोक्ता है। देश में 300 लाख टन से ज्यादा दालों की खपत होती है। जबकि देश का उत्पादन 280 लाख टन के आसपास है। दलहन की खासी पैदावार के बावजूद देश को अपनी जरुरत की पूर्ति के लिए दालों का विदेश से आयात करना पड़ता है। इसमें तुवर, उड़द और मसूर का मुख्य रूप से आयात किया जाता है। हैरानी यह है कि म्यांमार, तंजानिया, मोजांबिक और मलावी जैसे कुछ देश सिर्फ भारत के उपयोग के लिए ही तुवर जैसे दलहन का उत्पादन कर रहे हैं।

सरकार चाहती है कि उत्पादन बढ़ जाए जिससे निर्यात पर निर्भरता नहीं रहे और दालों की महंगाई पर नियंत्रण लग सके। किसानों को दलहन फसलों के लिए प्रेरित करने के साथ सरकार दालों के उत्पादन में प्रोसेसिंग स्तर पर होने वाली हानि भी कम करना चाहती है। सचिव ने दाल मिलों के संचालक से इस बारे में सुझाव मांगा। दाल मिल संचालकों ने कहा कि दाल उद्योगों में मशीनें वर्षों पुरानी है।

उद्योग आधुनिकिकरण करना चाहते हैं लेकिन नई मशीनों पर सरकार ने जीएसटी बढ़ाकर 18 प्रतिशत कर दिया है। जबकि दाल पर जीएसटी नहीं है। ऐसे में उद्योगों को मशीनों पर करोड़ों रुपये जीएसटी चुकाना पड़ रहा है। नतीजा मिलों में नई मशीनें नहीं आ रही। नई मशीनें आने से उत्पादन के दौरान होने वाला घाटा भी कम हो सकता है।

उद्योगपतियों ने सुझाव दिया है कि अन्य उद्योगों के लिए सैकड़ों करोड़ की पीएलआइ है। दाल उद्योग छोटे-मध्यम श्रेणी के है ऐसे में इनके लिए कम फंड वाली योजना होना चाहिए। सचिव ने आल इंडिया दाल मिल एसोसिएशन से कहा कि जल्द लिखित प्रस्ताव तैयार कर मंत्रालय को भेज दें।

प्रस्ताव तैयार कर रहे हैं

पीएलआइ स्कीम आती है तो नई मशीनों के जरिए उत्पादन बढ़ सकता है। साथ ही मशीनों पर जीएसटी भी कम करने की जरुरत है। मौखिक बात हो चुकी है। एसोसिएशन जल्द ही प्रस्ताव बनाकर केंद्रीय सचिव को भेज रहा है।

– सुरेश अग्रवाल, अध्यक्ष आल इंडिया दाल मिल एसोसिएशन

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