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चंद्रदेव ने सबसे पहले रखा था भगवान शिव को समर्पित यह व्रत 

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त्रयोदशी तिथि पर रखे जाने वाले प्रदोष व्रत का विशेष महत्व है। भगवान शिव को समर्पित इस व्रत में प्रदोष काल में पूजा की जाती है। सोमवार को आने वाले प्रदोष व्रत को सोम प्रदोष व्रत कहा जाता है। सोम प्रदोष व्रत करने से चंद्रमा का शुभ प्रभाव प्राप्त होता है। शास्त्रों के अनुसार किसी भी प्रदोष व्रत में भगवान शिव की पूजा-अर्चना सूर्यास्त से 45 मिनट पहले और 45 मिनट बाद तक की जाती है। इस दिन महामृत्युंजय मंत्र का 108 बार जाप अवश्य करें।

मान्यता है कि सबसे पहले इस व्रत को चंद्रदेव ने किया था। श्राप के कारण चंद्रदेव को क्षय रोग हो गया था। इससे मुक्ति पाने के लिए चंद्रदेव ने त्रयोदशी तिथि पर भगवान शिव के लिए प्रदोष का व्रत किया। भगवान शिव और मां पार्वती की अनुकम्पा से चंद्रदेव का क्षय रोग समाप्त हो गया। त्रयोदशी तिथि को प्रदोष काल में भगवान शिव कैलाश पर्वत के रचित भवन में आनंद तांडव करते हैं। सभी देवी देवता उनकी स्तुति करते हैं। जो व्यक्ति हर माह प्रदोष व्रत रखता है उस पर भगवान शिव और मां पार्वती की असीम कृपा बनी रहती है। सोम प्रदोष व्रत रखने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। इस दिन मां पार्वती और भगवान शिव की पूजा से पहले श्रीगणेश जी की पूजा करें। सोम प्रदोष को चंद प्रदोषम कहा जाता है। प्रदोष में निर्जल व्रत रखा जाता है। मान्यता है कि एक प्रदोष व्रत करने का फल दो गायों के दान के बराबर माना जाता है। इस व्रत में मन को शुद्ध रखें। प्रदोष व्रत की पूजा के लिए सुबह स्नान कर लाल या गुलाबी वस्त्र धारण करें। इस दिन शिवलिंग पर गुड़ और घी मिलाकर जल अभिषेक करने से मां लक्ष्मी घर में वास करती हैं। सोम प्रदोष के दिन बैल को हरी घास खिलाने से सुख समृद्धि की प्राप्ति होती है।

 

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