आलेख
राजेश बादल
संस्कार दिखने वाली वस्तु नहीं है। उन्हें केवल आप महसूस कर सकते हैं । ठंडी ठंडी फुहारों की तरह । पीढ़ी दर पीढ़ी ये संस्कार बहते रहते हैं । जब समाज और परिवार की ओर से संस्कारों का बहता झरना सूख जाता है तो फिर इंसान और चौपायों में कोई अंतर नही रह जाता । बीते दिनों आगरा जाना हुआ । वहां के कर्नल्स ब्राइटलैंड स्कूल में ।
करीब चार हज़ार छात्रों वाले इस स्कूल के ज़र्रे ज़र्रे में मैने दुष्यंत कुमार को धड़कते हुए पाया । यक़ीन मानिए ,जब से वहां से लौटा हूं ,मेरी नई नस्ल के बारे में कुछ धारणाएं खंडित हो गईं।
यह स्कूल कालजयी शायर दुष्यंत कुमार के बेटे कर्नल अपूर्व त्यागी और उनकी अर्धांगिनी दीपिका त्यागी संचालित करते हैं ।आगरा के शिखर शैक्षणिक संस्थानों में से एक है । स्कूल के चप्पे चप्पे पर कविता नज़र आती है ।कहीं दुष्यंत के चित्र हैं तो कहीं उनकी ग़ज़लें।किसी स्थान से गुजरते हुए आपको दुष्यंत के गीत या ग़ज़ल की संगीतमय स्वर लहरी सुनाई देगी तो कहीं उनकी अपनी हस्तलिखित रचनाएं । इस विशाल स्कूल का पुस्तकालय देखना मेरे लिए एक सुखद आश्चर्य था।आजकल स्कूलों में पुस्तकालय संस्कृति कम ही दिखाई देती है ।
मेरे साथ अपूर्व के बड़े भाई और कमलेश्वर के दामाद आलोक त्यागी भी थे । स्कूल के जिस सालाना जलसे में हम लोग गए थे,वह देश के जाने माने कवियों और गीतकारों की रचनाओं की प्रस्तुतियों पर केंद्रित था ।आगरा के सभी बड़े स्कूलों के हज़ारों छात्रों ने इसमें शिरकत की । सैकड़ों छात्रों ने स्पर्धाओं में हिस्सा लिया और उनमें से कुछ पुरुस्कृत भी हुए । यह इस शहर के शैक्षणिक संस्थानों का आपसी तालमेल और सहयोग है कि वे इस तरह की स्पर्धाओं में आपसी कारोबारी मतभेद या हितों को ताक में रखकर छात्रों के सामने एक स्वस्थ्य वातावरण पेश करते हैं ।
मेरे साथ देश के जाने माने शायर कमलेश भट्ट कमल और अशोक रावत जी से मिलने और उनको सुनने का अवसर भी मिला । बतौर मुख्य अतिथि मैने सभी प्रतिभागियों से अनुरोध किया कि वे खूब पढ़ें और रचनाओं को अपनी सांसों में महसूस करें । रटकर की गई कोई भी प्रस्तुति अच्छी नहीं होती । अच्छा और साफ सुथरा उच्चारण भी व्यक्तित्व को निखारता है । खेद है बोलने के अंदाज़ और उच्चारण दोष दूर करने का प्रशिक्षण स्कूलों में नहीं दिखाई देता ।
लेखक- देश के ख्यात वरिष्ठ पत्रकार हैं।