–सरपंच ने अनोखी पहल करते हुए आदिवासी बच्चों की शिक्षा के लिए अपने मानदेय की राशि से रखा टीचर, करा रहे हैं पढ़ाई
सलामतपुर रायसेन से अदनान खान की रिपोर्ट
पढ़ेगा इंडिया तो बढ़ेगा इंडिया यह नारा उस तस्वीर के आगे फीका पड़ता दिखाई देता है। जिसमें स्कूल जाने की उम्र में बच्चे मज़दूरी करते दिखाई देते हैं। जी हां हमारे सिस्टम की उदासीनता कहें या बाल संरक्षण के प्रति लापरवाही। शिक्षा के लिए करोड़ों रुपए की योजनाएं बनती है, मगर जमीनी स्तर पर आकर कितनी सही साबित होती हैं यह तस्वीर देखकर आप अंदाजा लगा सकते हैं। यह मामला है रायसेन जिले के सांची विधानसभा के ग्राम पंचायत सरार के एक टोला गांव का जहां 30आदिवासी बच्चे स्कूल दूर होने की वजह से पढ़ाई ही छोड़ देते हैं। लेकिन शासन प्रशासन इन आदिवासी बच्चों की कोई सुध नही लेता है। वहीं सरार गांव के सरपंच ने मिसाल कायम करते हुए अपने मानदेय की मिलने वाली राशि से आदिवासी बच्चों की पढ़ाई के लिए टीचर रखा है। ये 30 आदिवासी बच्चे प्राथमिक स्कूल दूर होने की वजह से स्कूल नही जा पा रहे थे। और उनकी पढ़ाई भी प्रभावित हो रही थी। ये पूरा मामला सांची विकासखंड के ग्राम पंचायत सरार के अंतर्गत आने वाले टोला गांव का है। पंचायत सरपंच नरेश चौधरी को जब इन आदिवासी बच्चों के बारे में जानकारी मिली तो उन्होंने अनोखी पहल करते हुए ग्राम पंचायत सरार से 2 किलोमीटर दूर सेमरी टोला गांव के 30 आदिवासी बच्चे जो स्कूल दूर होने की वजह एवं अन्य कारणों से पढ़ने नहीं जा पाते थे ।
सरपंच नरेश चौधरी द्वारा आदिवासी बच्चों को शिक्षित करने के लिए अपनी तरफ से एक पहल की गई है। सरपंच नरेश चौधरी ने सरपंची के लिए मिलने वाला हर महीने का 1750 रुपए मानदेय को आदिवासी बच्चों को शिक्षित करने के लिए टीचर गांव में लगा दिया है। जिससे आदिवासी बच्चे शिक्षित हो सके और भविष्य अंधकारमय होने से बच जाए। नरेश चौधरी ने बताया कि लगभग 2 महीने से बच्चे पढ़ रहे हैं। शनिवार को जाकर उन्होंने निरीक्षण किया तो बच्चों को काफी कुछ पड़ना आने लगा है। वह अंग्रेजी भी काफी अच्छी आने लगी है। वहीं उन्होंने प्रशासन से भी अपील की है वह भी इन बच्चों के लिए आगे आकर इनकी शिक्षा के लिए प्रयास करें। ताकि यह आगे जाकर पढ़ लिखकर कुछ बन सके।