राजीव जैन औबेदुल्लागंज रायसेन
जैसे पानी का स्वभाव शीतलता है अग्नि का स्वभाव उष्णता है उसी प्रकार हमारी आत्मा का स्वभाव क्षमा भाव है क्रोध आना आत्मा का स्वभाब नहीं है। कहते हैं इस क्रोध का उत्पन्न होना हमारे खानपान पर निर्भर करता है हमें जीवन में सदैव क्षमा धर्म को धारण करने के लिए अभक्ष्य वस्तुएं मांस मदिरा आदि का त्याग करना चाहिए उक्त बात चर्या शिरोमणि आचार्य विशुद्ध सागर महाराज की के परम प्रभाव शिष्य ब्रह्मचारी मनोज भैया सोनीपत ने नगर में चल रहे पर्युषण पर्व के प्रथम दिवस दसलक्षण धर्म के प्रथम धर्म उत्तम क्षमा धर्म के बारे में विस्तार से समझाते हुए कहा।
इस अवसर पर उन्होंने बताया कि महावीर भगवान ने कहा है कि अहिंसा परमो धर्मा हिंसा करने वाला व्यक्ति जीवन में क्षमा धर्म को धारण नहीं कर सकता इसलिए क्रोध समाप्त करने के लिए मनुष्य को सात्विक होना चाहिए ।रात के भोजन का त्याग अभक्ष्य वस्तु का त्याग ही हमारे जीवन को दयावान बना सकता है।
हमारी आत्मा का स्वभाव तो शांति माय हैं लेकिन हम लोग अशांति दुखमय जीवन जी करके आत्मा को अंकलेषित कर रहे है।आज हम उत्तम धर्म के दिन में जीवन में क्रोध को त्याग करने के लिए अपने जीवन में इस भौतिक युग में बाहरी आडंबरो का त्याग करके सात्विक आहार ग्रहण करें और जीवन को शांत बनाए ।
किसी ने कहा भी है जैसा खाए अन्न बेसा होगा मन।
जैसे पियोगे पानी बेसी होगी बानी ।
इसके पूर्व नगर में 10 लक्षण पर्व का प्रारंभ किया गया इसके प्रथम दिवस ब्रह्मचारी मनोज भैया सोनीपत के द्वारा उपस्थित सभी जन समुदाय को पूजन अभिषेक करने की विधि बताई एवं शांति धारा का पाठ किया तो वही सामूहिक रूप से संगीत मय तरीके से पूजन की गई।
प्रातः की बेला में ब्रह्मचारी मनोज भैया के द्वारा तत्वार्थ सूत्र का वाचन कर उसका अर्थ भी विधिवत रूप से समझाया और कहा कि इसके सुनने मात्र से ही हमें एक उपवास का फल मिलता है तो वही संध्या के समय मंदिर जी मे सामूहिक रूप से भक्ति में तरीके से आरती, नृत्य ,एवं सांस्कृतिक कर्यक्रम किए गए।