कुणाल कांकर
रायसेन जिला ऐतिहासिक दृष्टि से देश में नहीं अपितु दुनिया में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। मानव जीवन के सांस्कृतिक विकास की यह प्रारंभिक क्रीड़ास्थली रहा है। रायसेन क्षेत्र विंध्य की श्रेणियां एवं वन्य क्षेत्र से भरपूर है। इसी क्षेत्र में आदिमानव ने अपनी कला के प्रारंभिक अभिव्यक्ति व्यक्त की है और उसे चित्रों के माध्यम से गुफाओं में उकेरा है।
रायसेन क्षेत्र के शैलाश्रयो की दीवारों पर प्रथम बार मानव ने चित्रों के माध्यम से अपनी कला को अभिव्यक्त किया। रायसेन जिले के भीमबेटका के उत्खनन से प्रागेतिहासिक काल से गोंडकाल तक के अनवरत अवशेष और साक्ष्य प्रकाश में आए हैं। नर्मदा नदी घाटी में मानव सभ्यता ने शुरुआती कदम लिए है जिसके प्रमाण भी यहाँ मिलते है। रायसेन जिले मुख्यालय से मात्र 22 km की दूरी पर स्तिथ उरदेन रायसेन के शैलाश्रय शैलचित्र। यह स्थान रायसेन के इतने नजदीक होने के बाद भी उतना ही अनजान और गुमनाम है। गुमनाम इतना की रायसेन में जिस से भी इस स्थान से बारे में पूछा सटीक जानकारी नहीं मिल सकी। यहाँ उरदेन ग्राम रायसेन में रहने वाले भी इसके बारे में नहीं बता सके।यदि आप भी यहाँ जाने की योजना बनाये तो अकेले बिलकुल भी नहीं जाये। किसी स्थानीय व्यक्ति को अवश्य साथ ले जाये। यह क्षेत्र घने जंगल में है और दुर्गम भी है। मैंने इस साइट को जितना छोटा समझा था पर उसके विपरीत यह उतनी बड़ी साइट है।यहाँ के शैलाश्रय लगभग 4 km के दायरे में फैले हुए है और पूरा दिन चाहिए इसे कवर करने में फिर भी जितना संभव हुआ उतना मैने इसको कवर किया और अधिक से अधिक फोटो लेने का प्रयास किया ।
यहां पर प्रागैतिहासिक काल के शैल चित्र अंकित है। यहां के शैल चित्रों में प्रारंभिक काल के गोलाशम उपकरणों का और प्राकृतिक शिलाखंडो का अंकन है। यहां के शैलाश्रय में कबीले की लड़ाई रेखाओं में है। यहां के चित्रों में लोगों के हाथ में लकड़ी के हथियार दिखाए गए हैं। यहां से प्राप्त क्षेत्र में कई जानवरों जैसे बारहसिंघा, मोर,शतुरमुर्ग शेर, तेंदुए, नीलगाय आदि का भी चित्रण मिलता है। यहां के कुछ शैला श्रय में शंख लिपि का भी अंकन हुआ है। इसके अलावा यहां से प्राप्त चित्रों में रथ का दृश्य, युद्ध, अश्व आदि का भी अंकन हुआ है।
PHOT BY – KUNAL KANKAR