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भागवत कथा के छठवें दिन श्री कृष्ण और मां कर्मा देवी को गांव का भ्रमण कराया 

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-कथा में श्री कृष्ण रुक्मणी विवाह का वर्णन किया गया

मुकेश साहू दीवानगंज रायसेन

ग्राम अंबाडी में मैं चल रही भागवत कथा के छठवें दिन बुधवार को श्री कृष्ण और मां कर्मा देवी को गांव के भ्रमण के दौरान भव्य शोभायात्रा निकाली गई। जिसमें पालकी को सजा कर श्री कृष्ण और मां कर्मा देवी की प्रतिमाओं को श्रृंगार करते हुए रखा गया था। नगर भ्रमण के दौरान श्रद्धालु गणेश मंदिर प्रांगण से अयोध्या धाम मंदिर, शिव मंदिर, चांदनी चौक शिव मंदिर , से होते हुए साहू मदिर व अन्य मंदिरों एवं धार्मिक स्थलों से गुजरे। इस अवसर पर श्री कृष्ण के जय घोष, जय श्री राम, जय श्री कृष्ण, राधे राधे, जय हनुमान, जय भोलेनाथ, जय मां कर्मा देवी के जयकारे लगाए जा रहे थे। वहीं नगर भ्रमण में शामिल लोगों के स्वागत के लिए जगह जगह साफ सफाई कर फूल बरसाया गया। इस दौरान कई जगह शरबत और पानी की व्यवस्था भी की गई थी। वही नगर भ्रमण के दौरान देव प्रतिमाओं के दर्शन को ग्रामीण उत्साहित दिखे। इस दौरान भजन कीर्तन और आतिशबाजी से पूरा वातावरण गुंजायमान हो उठा।
साहू मंदिर पहुंचने के बाद भागवत कथा में पंडित राजीव माधवाचार्य ने श्री कृष्ण रुक्मणी विवाह का वर्णन करते हुए कहा वेद-पुराणों और साहित्य पर विश्वास किया जाए तो श्रीकृष्ण की 8 रानियां थीं, जिनसे उन्होंने विधिपूर्वक विवाह किया था और इन 8 रानियों में सबसे पहली रानी रुक्मिणी देवी थीं।


विदर्भ राज्य के राजा भीष्मक के एक पुत्र और एक पुत्री थी। पुत्र का नाम रुक्‍मी और पुत्री का नाम रुक्मिणी था। राजा भीष्मक अपनी पुत्री से बहुत प्रेम करते थे और उनके विवाह के लिए योग्य वर की तलाश में थे। इस विषय में राजा भीष्मक के सबसे करीबी मित्र एवं महाभारत कालीन मगध राज्य के नरेश जरासंध को भी पता था। जरासंध को उस वक्त का शक्तिशाली राजा माना जाता था और ऐसा भी कहा जाता था कि जरासंध का वध कोई नहीं कर सकता है। जरासंध देवी रुक्मिणी को अपनी पुत्री जैसा ही मानते थे और इसलिए वह खुद भी रुक्मिणी के लिए योग्य वर की तलाश में थे। मगर रुक्मिणी के मन में शुरू से ही भगवान श्रीकृष्ण की छवि बसी हुई थी। बड़े-बड़े महारथी को परास्त करने वाले श्रीकृष्ण की कथा रुक्मिणी कई लोगों के मुंह से सुन चुकी थीं। देवी रुक्मिणी ने श्रीकृष्ण के विषय में सुनकर ही यह तय कर लिया था कि वह उन्हीं से विवाह करेंगी।
मथुरा के राजा कंस को झटके में ढेर करने के बाद तो श्रीकृष्ण की ख्‍याती और भी बढ़ गई थी। उनकी वीरता के चर्चे चौतरफा गूंज रहे थे। मगर वहीं श्रीकृष्ण ने कंस का वध करके बहुत से राज्यों को अपना दुश्मन भी बना लिया था, जिसमें से एक था मगध का राजा जरासंध। दरअसल, कंस जरासंध का दामाद था और इसलिए वह श्रीकृष्ण से घृणा करता था।जब जरासंध को इस विषय में ज्ञात हुआ कि रुक्मिणी को श्रीकृष्ण से प्रेम है , तो देवी रुक्मिणी के भाई रुक्‍मी के साथ मिलकर जरासंध ने छेदी नरेश शिशुपाल के साथ रुक्मिणी का विवाह तय कर दिया। मगर विधि को तो कुछ और ही मंजूर था, इसलिए यह विवाह कभी हो ही नहीं सका। रुक्मिणी ने अपने पिता को यह बात पहले ही बता दी थी कि वह विवाह केवल श्रीकृष्‍ण से ही करेंगी क्योंकि वह मन ही मन उन्हें अपना पति मान चुकी हैं। ऐसे में रुक्मिणी के पिता ने भी उन्हें सहयोग देने की ठान ली। मगर जरासंध और देवी रुक्मिणी के भाई को जैसे ही इस बात की भनक लगी उन्होंने राजा भीष्मक और राजकुमारी देवी रुक्मिणी को कारागार में डाल दिया।
श्रीकृष्‍ण जब विदर्भ देश पहुंचे तो वहां देवी रुक्मिणी का स्वयंवर चल रहा था। कृष्ण और देवी रुक्मिणी के भाई रुक्मी के बीच भयानक द्वंद्व हुआ। लोक कथाओं के अनुसार श्रीकृष्‍ण ने रुक्‍मी का वध करने के लिए अपना सुदर्शन भी उठा लिया था मगर देवी रुक्मिणी के आग्रह पर उन्होंने रुक्‍मी को छोड़ दिया भरी सभा में देवी रुक्मिणी को अपहरण कर उन्हें अपने साथ ले गए।
रुक्मिणी तो पहले ही श्री कृष्‍ण से प्रेम करती थीं और मन ही मन उन्हें अपना पति मान चुकी थीं। इस बात को श्रीकृष्ण भली भांति समझते थे और इसलिए अपहरण के बाद जब वह श्रीकृष्ण का रथ गुजरात राज्‍य के छोटे से गांव माध्‍वपुर पहुंचा , तो वहां श्रीकृष्ण ने देवी रुक्मणी से विवाह कर लिया। रुक्मिणी से विवाह के बाद श्रीकृष्‍ण उन्हें अपनी द्वारका नगरी ले गए, जहां उनका धूमधाम से स्वागत किया गया।
गुरुवार को प्राण प्रतिष्ठा के पश्चात नगर भंडारे का आयोजन होगा जिसमें आसपास गांव के भक्तगण प्रसाद के रूप में भोजन ग्रहण करेंगे।

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