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चुनाव विश्लेषण::बहनो को सरकारी नेग अब चुनाव जीतने का शर्तिया फार्मूला !अजय बोकिल

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आलेख
अजय बोकिल

महाराष्ट्र में सत्तारूढ़ भाजपानीत महाआघाड़ी की प्रचंड जीत और विपक्षी कांग्रेसनीत महाविकास आघाड़ी की दारूण पराजय एवं झारखंड में झारखंड मुक्ति मोर्चा की अगुवाई में यूपीए की सत्ता में शानदार वापसी के मूल में काॅमन फैक्टर इन राज्यों में सत्तारूढ़ सरकारों द्वारा महिलाअों को सीधा आर्थिक लाभ देना है। महाराष्ट्र में यह कमाल युति सरकार की ‘लाडकी बहिण’ योजना ने तो झारखंड में झामुमो गठबंधन सरकार की ‘मइया सम्मान योजना’ ने किया।

उस पर योगी आदित्यनाथ के ‘बटेंगे तो कटेंगे’ नारे ने महाराष्ट्र में बहुसंख्यक वोटरों को महायुति और एनडीए के पक्ष में एकजुट होने को इस कदर प्रेरित किया कि महायुति के घटक अजित पवार की राकांपा द्वारा खड़े किए कुछ मुस्लिम उम्मीदवार भी इस लहर में तर गए। इसी नारे की बिना पर योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश की 9 विधानसभा सीटो के उपचुनाव में 7 पर भगवा फहरा गए। इस चुनाव ने अब महाराष्ट्र में असली व नकली शिवसेना तथा राष्ट्रवादी कांग्रेस की बहस को बेमानी करार दे दिया है, भले ही इसको लेकर कानूनी लड़ाई चलती रहेगी। महाराष्ट्र में पहली बार मतदाता ने ठाकरे परिवार के नेतृत्व चाहे उद्धव हो या राज ठाकरे, को लगभग नकार दिया है। सत्ता के लोभ में बालासाहब ठाकरे का हिंदुत्व छोड़कर कांग्रेस व शरद पवार की राकांपा के साथ जाने वाले शिवसेना (उद्धव गुट) के प्रमुख उद्धव ठाकरे और बरसों से महाराष्ट्र की राजनीति धुरी रहे शरद पवार के नेतृत्व की चमक को इस हार ने बहुत फीका कर दिया है। समग्रता में महाराष्ट्र के चुनाव को समझें तो शरद पवार की चाणक्य नीति को इस चुनाव में केन्द्रीय गृह मंत्री और भाजपा के चाणक्य अमित शाह ने न केवल जबर्दस्त पटखनी दी है बल्कि विपरीत विचारधारा के उद्धव को राज्य का मुख्‍यमंत्री बनाकर जो घोड़ापछाड़ दांव पवार ने भाजपा के खिलाफ चला था, शाह ने उसका ब्याज समेत बदला ले लिया है। नतीजा यह रहा कि ‍िजस राकांपा को मतदान के दिन तक मआवि का सबसे दमदार घटक माना जा रहा था, वह आघाड़ी की सबसे कमजोर कड़ी साबित हुई। अमित शाह ने संघ की आलोचना के बाद भी अजित पवार को साथ रखा। लोकसभा चुनाव में चाचा शरद से मात खाने के बाद भतीजे अजित पवार ने इस बार जमकर ताकत झोंकी और चाचा को साफ संदेश दे दिया कि अब उन्हें राजनीति से संन्यास ले लेना चाहिए। अगर महाराष्ट्र में इस चुनाव में भाजपा को अब तक की सर्वाधिक सीटें मिली हैं तो इसका श्रेय उप मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस की मेहनत, पार्टी अनुशासन का पालन और धैर्य को भी जाता है।


यूं तो महाराष्ट्र और झारखंड दोनो राज्यों के विधानसभा चुनाव परिणामों पर पूरे देश की नजर थी। लेकिन महाराष्ट्र के नतीजे देश की भावी राजनीति तय करेंगे। लोकसभा चुनाव के बाद देश में मोदी मैजिक फीका पड़ने और हिंदुत्व की धार भोंथरी होने की बात कही जा रही थी, वह जादू अब नए जलवे के साथ लौट रहा है। यह हमने हरियाणा के विस चुनाव में देखा और अब महाराष्ट्र व यूपी में देख रहे हैं। हालांकि झारखंड में यह जादू नहीं चला तो इसकी वजह बीजेपी की गलत रणनीति और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी से आदिवासियों में उनके प्रति उपजी सहानुभूति ज्यादा थी। लेकिन महाराष्ट्र में पार्टी की प्रचंड जीत ने झारखंड की हार के गम को काफी हद तक धो दिया है।


यह बात अब कांच की तरह साफ है कि महिलाअों को आर्थिक मदद देकर मतदाता के रूप में उनका समर्थन जीतने का जो लाजवाब गेमचेंजर नुस्खा मप्र में पूर्व मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने ईजाद किया था, वह न सिर्फ भाजपा बल्कि हर सत्तारूढ़ पार्टी के लिए जीत का शर्तिया नुस्खा साबित हो रहा है। यही कारण है कि महिलाएं बड़ी संख्या में वोट कर रही हैं और उस सत्तारूढ़ पार्टी के पक्ष में वोट कर रही हैं, जो हर माह उनके खाते में ‍निश्चित राशि सीधे जमा कर रही है। सभी मुख्‍यमंत्री इस आर्थिक मदद को राज्य की बहनों को ‘भाई का नेग’ करार दे रहे हैं। बदले में बहनाएं उन पर वोट न्यौछावर कर रही हैं। हरियाणा में हमने यह सैनी सरकार की ‘लाडो बहना योजना’ के रूप में तो महाराष्ट्र में ‘लाडकी बहिण’ और झारखंड में ‘मइया सम्मान योजना’ के रूप में देखा। अब बाकी राज्यो में भी सरकारें अपनी सत्ताएं बचाने इसी राह बढ़ेंगी। संक्षेप में कहें तो अब ‍महिलाएं ही सत्ता की रक्षक के रूप में उभर रही हैं। आश्चर्य नहीं कि केन्द्र में मोदी सरकार भी अगले आम चुनाव के पहले बहनों के लिए ऐसी ही कोई योजना लेकर आ जाए। इसमें खास बात यह है कि महिलाअों को लाभार्थी बनाने के वादे ‍िवपक्षी पार्टियां भी अपने घोषणा पत्रों में उसी शिद्दत के साथ कर रही हैं, लेकिन बहनो को वादों से ज्यादा शायद देवाल भाई पर भरोसा है।


महाराष्ट्र चुनाव नतीजों में योगी आदित्यनाथ के चर्चित नारे ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ का भी गहरा असर दिखा है। अधिकांश सीटों पर हिंदू वोट महायुति के पक्ष में एकजुट हुए हैं। यह एकजुटता भी प्रति-एकजुटता के रूप में ज्यादा है। क्योंकि ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ में यह कहीं भी नहीं कहा गया कि एकजुटता का यह आह्वान निश्चित रूप से किसके खिलाफ है। लेकिन मुसलमानों ने इसे अपने खिलाफ माना और वे मोदी, योगी व भाजपा के विरूद्ध एकजुट हुए। हिंदू समाज में इसका प्रति ध्रुवीकरण स्वयमेव भाजपा व महायुति के पक्ष में हुआ। इस पूरे ध्रुवीकरण में कांग्रेस असहाय सी दिखी। कांग्रेस नेता राहुल गांधी लोकसभा चुनाव की तरह इस बार भी हाथ में संविधान की प्रति लहराते संविधान बचाने की गुहार लगाते दिखे। लेकिन ‘संविधान बचाने’ का मुद्दा उस ‘काठ की हांडी’ की तरह साबित हुआ, जो दूसरी बार विस चुनाव के चूल्हे पर नहीं चढ़ सकी। योगी के बाद पीएम मोदी ने ‘एक हैं तो सेफ हैं’ का नारा दिया, उसका भी असर हुआ। मतदाताअो ने अपनी रोजमर्रा की तकलीफों, किसानों ने उपज का कम भाव मिलने की नाराजी, युवाअों ने बेरोजगारी जैसे जमीनी मुद्दों को दरकिनार कर महायुति को वोट किया।


महाराष्ट्र का यह पहला विस चुनाव है, जिसमें कोई भी पार्टी सदन में अधिकृत विपक्ष का दर्जा नहीं पा सकेगी। लोकसभा में अच्छा प्रदर्शन करने वाली कांग्रेस रणनीतिक असमंजस और कमजोर संगठन के कारण अपने न्यूनतम आंकड़े पर जा पहुंची है। इन नतीजों के बाद शरद पवार, उद्धव ठाकरे के साथ साथ कांग्रेस को भी अपने वजूद को टिकाए रखने की लड़ाई नए सिरे से लड़नी पड़ेगी। उधर यूपी में भी बाबा योगी आदित्यनाथ ने 9 में से 7 विधानसभा सीटें जीतकर 2027 के विस चुनाव का सत्ताधीश कौन होगा, इसकी इबारत लिख दी है।

-लेखक ‘सुबह सवेरे’ के कार्यकारी प्रधान संपादक हें।

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