मुकेश साहू दीवानगंज रायसेन
अक्टूबर के महीने में धान की कटाई और गेहूं की बुवाई शुरू हो जाती है। इस दौरान किसानों को पराली की समस्या से जूझना पड़ता है। अधिकांश किसान पराली को जला देते हैं, जिससे प्रदूषण बढ़ता है। हालांकि, पराली से छुटकारा पाने के लिए कुछ ऐसे यंत्र हैं, जिनकी मदद से पराली का प्रबंधन किया जा सकता है। इसके बावजूद भी क्षेत्र में लगातार पराली जलाने का सिलसिला बरकरार है। रोज क्षेत्र कहीं ना कहीं पराली जल रही है। अक्टूबर का महीना आते ही धान की कटाई शुरू हो जाती है और गेहूं की बुवाई होने लगती है।
अधिकतर किसान धान की कटाई के लिए कंबाइन हार्वेस्टर का उपयोग करते हैं, जिससे फसल अवशेष खेतों में ही रह जाते हैं। किसान खेतों के इन अवशेषों यानी पराली को जला देते हैं, जिसकी वजह से दीवानगंज और आस-पास के इलाकों में प्रदूषण की स्थिति गंभीर हो जाती है। पराली के धुएं से लोगों को सांस संबंधी रोग हो जाते हैं। इसके अलावा पराली जलाने से मिट्टी में रहने वाले लाभकारी कीट भी नष्ट हो जाते हैं। इतना कुछ होने बावजूद भी लगातार पराली जलाने का सिलसिला चालू है। रात और दिन क्षेत्र के चारों ओर धुंआ ही धुंआ दिखता है।