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भारतीय इतिहास की दुर्दशा गाने का वक्त बीता, अब गौरव गान का समय

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सांची विवि और अखिल भारतीय इतिहास संकलन समिति का आयोजन
-दो दिवसीय राष्ट्रीय युवा इतिहासकार संगोष्ठी शुरु

इतिहास को बिगाड़ना, बदलना नहीं बल्कि भारतीय दृष्टि से परिभाषित करना


साँची/रायसेन। भारतीय इतिहास की दुर्दशा गाने का वक्त बीत गया है और अब हमारी संस्कृति की गौरव गाथा गाने का समय है। ये विचार इतिहास पाठ्यक्रम वर्तमान परिप्रेक्ष्य और चुनौतियां पर केंद्रित राष्ट्रीय युवा इतिहासकार संगोष्ठी में व्यक्त हुए। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि और महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विवि के कुलपति प्रो रजनीश शुक्ल ने कहा कि हमें इतिहास को ना बिगाड़ना है, ना बदलना है और ना ही नई दृष्टि से लिखना है बल्कि भारत की दृष्टि से परिभाषित करना है।

मूल भाषाओं को जाने बिना लिखे इतिहास को श्रम करके स्त्रोतों के आधार सामने लाने का आव्हान करते हुए प्रो शुक्ल ने कहा कि यूरोप को तो 17वीं सदी तक इतिहास लिखना नहीं आता था जबकि 11वी सदी में राजतंरगिणी में साहित्यिक, ऐतिहासिक, सांस्कृतिक आधार पर इतिहास का वर्णन मिलता है।

अखिल भारतीय इतिहास संकलन समिति के राष्ट्रीय संगठन सचिव डॉ बालमुकंद ने कहा कि भविष्य के सपने वही देख सकता है जो पूर्वजों पर गौरव करे लेकिन हमें तो पढ़ाया जा रहा है कि हम गंवार और अंधेरे में जीते हुए समाज थे। उन्होने आव्हान किया कि गहन अध्ययन करें और भारतीय संदर्भों के आधार पर इतिहास लेखन करें। डॉ बालमुकुंद ने बुद्ध, महावीर और शंकराचार्य के समय को जानने के लिए dating project पर सांची विवि के साथ प्रोजेक्ट पर कार्य करने की भी बात की।


कार्यक्रम की अध्यक्ष और सांची बौद्ध-भारतीय ज्ञान अध्ययन विश्वविद्यालय की कुलपति डॉ नीरजा गुप्ता ने कहा कि इतिहास लेखन में गुफा, ग्रंथ, नदियां, भाषा, कला और किले का अध्ययन अहम होता है लेकिन इसे नजरअंदाज किया गया।


कार्यक्रम का बीज वक्तव्य देते हुए प्रो हिमांशु चतुर्वेदी ने कहा कि हमें इतिहास में पढ़ाया जाता है कि इस्लाम के आगमन तक भारत की कोई स्पष्ट संस्कृति नहीं थी। उन्होने कहा कि तथ्यों को सही संदर्भ में पेश किया जाना चाहिए। डॉ चतुर्वेदी ने कहा कि बाल गंगाधर तिलक ने स्वदेश, स्वराज, स्वशासन का विचार पेश किया था। उनके अनुसार सोवियत रूस के खात्मे के बाद स्पष्ट हो गया कि बिना अतीत की कल्पना के भविष्य स्पष्ट नहीं है।


भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद के सदस्य सचिव प्रो सच्चिदानंद मिश्र ने कहा कि पश्चिम का इतिहास राज्य केंद्रित है जबकि भारत का इतिहास सांस्कृतिक और समाज केंद्रित है। कार्यक्रम में भारतीय दर्शन परिषद के सदस्य सचिव प्रो कुमार रत्नम ने भी अपने विचार व्यक्त किये।

 

सांची विवि के कुलसचिव और कार्यक्रम के स्थानीय सचिव प्रोफेसर अलकेश चतुर्वेदी ने धन्यवाद ज्ञापित किया। ’इतिहास पाठ्यक्रम: वर्तमान परिप्रेक्ष्य व चुनौतियाँ‘‘ विषय पर केंद्रित इस संगोष्ठी में भारत के प्रामाणिक इतिहास लेखन, तथ्य संकलन, इतिहास और दर्शन पुनर्लेखन, शोध के क्षेत्र में कार्य करने वाले 250 युवा इतिहासकार जुटे है। प्रशासन अकादमी में हो रहे सम्मेलन में 5 सत्रों में 150 से ज्यादा शोध पत्र पढ़े जाएंगे।

न्यूज़ सोर्स-जनसम्‍पर्क शाखा
सॉंची बौद्ध-भारतीय ज्ञान अध्‍ययन विश्‍वविद्यालय,भोपाल

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