राजस्थान में बहुत सी ऐसी परंपराएं है. जिसमें से एक है गणगौर की पूजन. वैसे तो राजस्थान हर जगह गणगौर का त्योहार मनाया जाता है जिसके लिए बहुत सी गणगौर भी हैं. लेकिन बीकानेर की इस गमगौर की ठाठ ही कुछ और है. यह सबसे कीमती गणगौर हैं इन्हें हथियारबंद पुलिसकर्मी द्वारा सुरक्षा प्रदान की जाती है.
क्या है गणगौर का त्योहार?
गणगौर राजस्थान, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के निमाड़, मालवा, बुंदेलखंड और ब्रज क्षेत्रों का एक त्यौहार है. यह चैत्र माह की शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाया जाता है. इस दिन कुंवारी लड़कियां और विवाहित महिलाएं भगवान शिव और पार्वती यानि मां गौरी की पूजा करती हैं. जिसमे कुंवारी लड़कियां मनपसन्द वर पाने की कामना करती हैं. वहीं विवाहित महिलायें अपने पति की दीर्घायु की कामना करती हैं.
कीमती गहनों से सजती हैं गणगौर
यह गणगौर सिर से लेकर पांव तक सोने- चांदी और हीरे मोती पहनी होती है. जिसकी वजह से उनकी सुरक्षा के लिए हथियारबंद पुलिसकर्मियों को तैनात किया जाता है. यह पुलिसकर्मी पूरे उत्सव के दौरान मूर्ति की कड़ी सुरक्षा में लगे रहते है. इस गणगौर को किसी को भी छूने तक नहीं दिया जाता है. महिलाओं में इस गणगौर को लेकर खासा आकर्षण का केंद्र बनी रहती है.
पुत्र कामना के लिए होती है पूजा
मान्यता है कि इस गणगौर के दर्शन करने के बाद पुत्र की मनोकामना पूरी होती है. महिलाएं यहां पुत्र प्राप्ति की कामना लेकर आती हैं. चांदमल ढ़ढ़ा की गणगौर के आगे समूह में नृत्य करती हैं. चांदमल ढ़ढ़ा की गणगौर की पूजा उनके पुत्र के साथ की जाती है.
चौक से बाहर नहीं निकली
चांदमल ढड्ढा की गणगौर प्रतिमा हवेली में विराजित रहती है. मूर्ति का साज श्रृंगार करने के बाद इस चौक पर पराजित किया जाता है. वैसे तो राजस्थान में गणगौर की पूजा के साथ उनकी सवारी भी निकाली जाती है लेकिन बीकानेर की गणगौर को आज तक कभी भी चौक से भी बाहर नहीं निकाला गया है.
गणगौर से जुड़ी अनोखी कथा
मान्यताओं के अनुसार, बीकानेर के एक साहूकार उदयमल के पास कोई पुत्र संतान नहीं थी, जिसके लिए उदयमल ने अपनी पत्नी के साथ पुत्र प्राप्ति की कामना लेकर राजपरिवार की गणगौर का पूजन किया. इसके एक साल बाद ही उदयमल की पत्नी को एक पुत्र की प्राप्ति हुई जिसका नाम चांदमल रखा गया. इसके बाद से ही उदयमल और उसकी पत्नी ने आम लोगों को भी गणगौर पूजा का अवसर देने के साथ ही सार्वजनिक रूप से गणगौर का पूजन शुरू करवाया. तब से ही गणगौर पूजन चांदमल के नाम से प्रसिद्ध हो गया और वह गणगौर चांदमल ढड्ढा की गणगौर कहलाई.