बहुजन समाज समाज पार्टी की प्रमुख मायावती ने अपने भतीजे आकाश आनंद को 10 दिसंबर 2023 को पार्टी के नेशनल कोऑर्डिनेटर बनाने के साथ-साथ अपना सियासी उत्तराधिकारी घोषित किया था. अब मायावती ने पांच महीने के बाद अपना फैसला वापस ले लिया है और कहा कि पूर्ण परिपक्व होने तक आकाश आनंद को दोनों जिम्मेदारियों से मुक्त किया जा रहा है. मायावती ने आकाश आनंद पर फैसला ऐसे समय लिया है जब 2024 के चुनाव के लिए तीसरे चरण की वोटिंग खत्म हुई थी, लेकिन अभी चार चरणों के चुनाव बाकी है. ऐसे में मायावती के एक्शन पर बहुजन समाज के लोगों को भी हैरत में डाल दिया है.
मायावती ने आकाश आनंद को अपना सियासी वारिस ऐसे समय घोषित किया था, जब बसपा अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है. कांशीराम के ज्यादातर साथी पार्टी छोड़कर जा चुके हैं या फिर उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है. बसपा का सियासी आधार भी लगातार खिसकता जा रहा है. बसपा से गैर-जाटव दलित वोट भी अब उनके साथ नहीं रहा. यूपी में भीम आर्मी के चीफ चंद्रशेखर आजाद दलित युवाओं के बीच अपनी पैठ जमाने में लगे हुए थे. ऐसी स्थिति में आकाश आनंद ने पार्टी की कमान संभाली और अपनी चंद रैलियों से सियासी हलचल पैदा कर दी थी.
बसपा के समर्थकों को निराश किया
दलित और आदिवासी संगठनों के राष्ट्रीय परिसंघ (NACDAOR) के अध्यक्ष अशोक भारती कहते हैं बसपा की कमजोर होती सियासत के बीच मायावती ने अपने भतीजे आकाश आनंद को अपना सियासी वारिस घोषित किया था, लेकिन जिस तरह चुनाव के बीच हटाया और उसे अपरिपक्क बताया है, उससे बसपा को चुनावी नुकसान हो सकता है. आकाश आनंद पर एक्शन लेने का दलित समुदाय और बसपा के लोगों में संदेश यही गया है कि मायावती ने ये फैसला बीजेपी के दबाव में आकर लिया है, क्योंकि आकाश अपनी रैलियों में सपा-कांग्रेस से ज्यादा बीजेपी को टारगेट कर रहे थे.
अब दलित युवाओं का झुकाव किधर?
अशोक भारती कहते हैं कि आकाश ने अपनी रैलियों से यूपी में बसपी समर्थकों के बीच एक नया जोश पैदा किया था.ऐसे में उन्हें हटाए जाने पर पार्टी के युवा मतदाता निराश महसूस कर रहा है. ऐसे में दलित युवाओं का झुकाव इंडिया गठबंधन की तरफ हो सकता है, क्योंकि बीजेपी के विकल्प में वही खड़ी नजर आ रही. आकाश के चलते बसपा से जुड़ने वाला युवा फिर से दूर छिटेगा. इसके अलावा मायावती पर बीजेपी की बी-टीम होने का आरोप इस फैसले से और मजबूत हो गया है. विपक्ष नहीं अब बसपा के लोगों को भी लगने लगा है कि मायावती कहीं न कहीं बीजेपी से मिली हुई हैं.
आकाश ने बीजेपी की टेंशन बढ़ा दी थी
वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ कलहंस भी यह मानते हैं कि मायावती ने सियासी तौर पर बहुत ही गलत फैसला लिया है और दलित समुदाय को हैरत में डाल दिया है. कलहंस कहते आकाश आनंद अपनी रैलियों में उन्हीं मुद्दों को उठा रहे थे, जो बहुजन समाज से जुड़े हुए हैं. वो संविधान बदलने के मुद्दे को धार दे रहे थे, उसको हिट कर रहे थे. बहुजनों के बीच एक दलित युवा नेता संविधान का मुद्दा उठा रहा था, जो मायावती का सियासी वारिस हैं. उसका असर दलितों के बीच तेजी से हो रहा था. इससे बसपा के युवा मतदाता उत्साह से भरे नजर आ रहे थे. दलित युवाओं को आकाश में अपना नेता नजर रहा था और राजनीतिक भविष्य नजर आने लगा. मायावती से छिटककर दलित मतदाताओं को आकाश आनंद जोड़े रखने में सफल होते दिख रहे थे, जो बीजेपी के लिए टेंशन बनती जा रही थी.
बीजेपी के दवाब में लिया गया फैसला?
सिद्धार्थ कलहंस का ये भी कहना है दलित समुदाय महसूस कर रहा है कि मायावती का फैसला उनका नहीं है बल्कि बीजेपी के दबाव में लिया गया है. बसपा का निराश युवा खासकर अंबेडकरवादी सपा और कांग्रेस की तरफ जा सकते हैं, क्योंकि वैचारिक रूप से संघ और बीजेपी के विरोधी हैं. आकाश पर एक्शन लेने और बसपा में बदले गए टिकटों से एक बात साफ हो गई है कि मायावती 2022 वाले मोड में चली गई है, जहां पर खुद जीतने के बजाय सपा-कांग्रेस को हराने की कोशिश में है, लेकिन इसमें वो अपना ही नुकसान कर रही हैं.
दलितों को असमंजस में डालने वाला फैसला
बसपा की सियासत को करीब से देखने वाले सैय्यद कासिम भी मानते हैं कि मायावती ने आकाश आनंद को पद से हटाकर बसपा का सियासी नुकसान किया है और इसका सीधा फायदा सपा को यूपी में होगा. आकाश आनंद ने बसपा के तमाम युवाओं को एक्टिव किया था, जो काफी समय से निराश बैठे हुए थे. आकाश ने यूपी में अपनी डेढ़ दर्जन से ज्यादा रैलियां करके बीजेपी में जा रहे बसपा के वोटों को रोकने का काम किया लेकिन मायावती के फैसले के बाद उनके लिए सपा के मजबूत विकल्प बन सकती है, लेकिन अखिलेश यादव जिस तरह से बसपा पर टिप्पणी कर रहे हैं, उससे दलितों को असमंजस में डाल रहा है.
सैय्यद कासिम कहते हैं कि आकाश आनंद ने मायावती के फैसला का जिस तरह से स्वागत किया है और बहुजन राजनीति के लिए अंतिम सांस तक समर्पित रहने की बात कही है, उसके जरिए उन्होंने अपनी मैच्योरिटी का परिचय दिया है. आकाश आनंद के ट्वीट आने के बाद अब लगता है बसपा को होने वाला सियासी नुकसान बहुत ज्यादा नहीं होगा, लेकिन युवा दलित निराश है.
दलित युवा निराश, बसपा को नुकसान नहीं
दलित चिंतक सुनील कुमार सुमन कहते हैं मायावती लगातार बहुजन सियासत को खत्म करती जा रही हैं और आकाश आनंद पर लेकर उन्होंने दलित समुदाय को निराशा किया है. आकाश आनंद अपने उग्र चुनावी भाषणों के जरिए, विशेष रूप से युवा दलितों के बीच लोकप्रियता हासिल करने के बाद वो खुद को एक फायरब्रांड नेता के तौर पर पेश किया है. ऐसा लगने लगा था कि बीजेपी सरकार को सत्ता से बेदखल करने पर अमादा हों और इससे सपा-कांग्रेस को सियासी फायदा होता दिख रहा था. शायद इसी वजह से मायावती ने आकाश आनंद को हटाकर हालात संभालने की कोशिश की है, लेकिन चुनाव के बीच यह संदेश सही नहीं गया.
सुनील सुमन कहते हैं मायावती के फैसला से बसपा पर कोई सियासी असर पड़ने वाला नहीं है. बसपा का अपना वोटबैंक है, जो आकाश आनंद से ज्यादा अभी भी मायावती को ही अपना नेता मानता है और उनके फैसले को स्वीकार करता है. बसपा के लोग भी मानते हैं कि मायावती का ये फैसला टंपरेरी हैं और कुछ दिनों के बाद दोबारा से उन्हें लाया जा सकता है, क्योंकि मायावती इससे पहले अपने भाई आनंद और भतीजे आकाश आनंद को लेकर उठा चुकी है. इसीलिए कोई ज्यादा फर्क होता नजर नहीं आ रहा है.ॉ चुनाव के समय इस फैसलों से मतदाताओं में ये संदेश गया है कि बसपा अपनी रणनीति को लेकर असमंजस में है. विपक्ष इसे अपना नैरेटिव बना रहा.
दलित समुदाय के सामने विकल्प
वरिष्ठ पत्रकार शिवदास भी मानते हैं कि आकाश आनंद पर लिए गए फैसले से बसपा को कोर वोटबैंक पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला. आकाश की पहचान मायावती से है. बसपा के मिशन और आंदोलन से निकले हुए नेता आकाश नहीं है बल्कि मायावती के भतीजे हैं. आकाश विदेश से पढ़कर आए हैं और उसका प्रयोग कर रहे हैं. विश्वविद्यालय के दलित युवाओं को अपने साथ जोड़कर आकाश अपनी राजनीति को आगे बढ़ा रहे थे, उनके साथ जो युवा जुड़े हुए हैं, वो वैचारिक और कैडर के रूप में मजबूत है. मायावती के फैसला से निराश तो हैं लेकिन विरोध नहीं करते नजर नहीं आ रहे हैं. दलित समुदाय है उसके समाने कोई विकल्प नहीं है. ऐसे में बसपा के साथ ही खड़ा रहेगा.
राजनीतिक विश्लेषक मान सिंह पटेल का मानना है मायावती बहुजन सियासत को पूरी तरह से खत्म करने पर अमादा है. आकाश आनंद पर एक्शन लेकर अपना ही राजनीतिक नुकसान किया है. आकाश आनंद मौजूदा सियासत में बीजेपी से जिस तरह के खतरा देख रहे थे, उसे ही अपनी रैलियों में उठा रहे थे. इस पर बसपा प्रमुख का एक्शन लेकना सही नहीं था, क्योंकि ऐसे ही बातें मायावती अपने शुरुआती सालों में राजनीतिक फायरब्रांड नेता थीं, तब उन्होंने विरोधियों के खिलाफ और भी मजबूत बयानबाजी का इस्तेमाल किया था. बहुजन समाज को भी इसी तरह की भाषा अच्छी लगती है और उससे रैलियों में उत्साह आता है. ऐसे में मायावती के फैसला से बसपा को लोग भी हैरत में है और उन्हें ये बात मजबूती से लगने लगी है कि वो बीजेपी के लिए काम कर रही है. यह नैरेटिव मजबूत होता है तो फिर दलित समुदाय का बड़ा तबका इंडिया गठबंधन के साथ जा सकता है.
आकाश आनंद में राजनीतिक संभावनाएं
जेएनयू के प्रोफेसर डॉ. विवेक कुमार कहते हैं कि आकाश आनंद बसपा प्रमुख मायावती के भतीजे हैं. आकाश आनंद में राजनीतिक संभावनाएं भी बहुत है. बहुजन मूवमेट को लेकर संजीदा है. उन्हें सियासत में लंबी पारी खेलनी है, जिसके चलते मायावती नहीं चाहती हैं कि वो फिलहाल अभी किसी मुश्किल में फंसे. आकाश को लेकर मायावती ओवर प्रॉटेक्टिव हैं. उन्होंने जो बाते अपनी ट्वीट में की है, उसे दलित समुदाय और बसपा के लोग गलत नजरिए से नहीं देख रहे हैं. मुझे लगता है कि मायावती का ये फैसला अल्पकलीन है और मामला शांत होने पर आकाश आनंद को दोबारा से पद दे सकती है,क्योंकि उन्होंने बहुत समय में खुद को साबित करने में सफल रहे हैं.
विवेक कुमार कहते हैं बसपा एक कैडर आधारित पार्टी है, जहां पर लोग मिशन के तहत काम करते हैं. इस तरह से फैसले से बसपा की राजनीति पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है. मायावती का फैसला बहुजन समाज के लोगों के लिए सर्वमान्य होता है. आकाश आनंद ने भी उनसे फैसला का जिस तरह से स्वागत किया और पूरी जिंदगी मिशन के लिए काम करने की बात कही है, उससे साफ जाहिर होता है कि उन्होंने उसे स्वीकार किया है और बसपा के लिए अपने आपको समर्पित कर दिया है. इसीलिए मुझे नहीं लगता है कि मायावती के फैसला का कोई राजनीतिक इफेक्ट हो रहा है.