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वैशाखी अमावस्या की शाम दीपदान करने का क्या है महत्व? दूर होता है पितृ दोष!

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 हिन्दू धर्म में हर साल वैशाखी अमावस्या का पर्व बड़े ही उत्साह के साथ मनाया जाता है. वैशाखी अमावस्या पर पितरों की शांति के लिए दीपदान करने का बहुत महत्व है. इस दिन शाम के समय अगर कोई दीपदान करता हैं तो उसके पूर्वजों को शांति मिलती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है. इस दिन दीपदान करने से लोगों को आकाल मृत्यु का भय भी नहीं सताता है.

वैशाखी अमावस्या के दिन शाम के समय दीपदान करने से लोगों को संयम, आत्मबल और आत्मविश्वास प्राप्त होता है. इस अमावस्या पर तेल का दीपक जलाने सेल लोगों को शनि के दोषों से मुक्ति मिलती है. इसके अलावा इस दिन पितरों के शांति और उनको मुक्ति दिलाने के लिए निमित्त तर्पण करना चाहिए. इससे उन्हें जल्द ही मोक्ष मिल जाता है और साथ ही उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है.

ऐसे दूर होगा पितृ दोष

अगर आपके घर में पितृ दोष है तो उसके निवारण के लिए वैशाख अमावस्या के दिन पितरों के नाम से गरीबों को भोजन करवाएं और इस दिन डूबते सूर्य को जल में तिल डालकर अर्घ्य देने से ग्रह दोष दूर होते हैं. इसके अलावा वैशाख अमावस्या पर पीपल के पेड़ के नीचे तेल का दीपक अवश्य जलाएं. इससे घर में घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है.

ऐसे करें दीपदान

शास्त्रों के अनुसार, दीपदान कई तरह के होते हैं, जिसमें देवी-देवता के समझ, विद्वान ब्राह्मण के घर, नदी पर या फिर नदी के किनारे या फिर पितरों के नाम पर दीपदान कर सकते हैं. दीपदान करते समय अपनी कामना अवश्य कहनी चाहिए. पितरों के लिए दीपक जला रहे हैं, तो दक्षिण दिशा की ओर दीपक का मुख करके रखें. इसमें सरसों का तेल और 2 लंबी बाती रखकर जला दें. जलाते समय पितरों से सुख-समृद्धि की कामना करें.

दीपदान का महत्व

धर्म शास्त्रों के अनुसार, वैशाख अमावस्या के दिन प्रदोष काल के समय यानी शाम के समय दीपदान करना शुभ माना जाता है. इस दिन दीपदान करने से अकाल मृत्यु का भय समाप्त हो सकता है. इसके साथ ही पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है. इसके साथ-साथ मां लक्ष्मी और विष्णु जी समझ दीपक जलाने से धन-धान्य की बढ़ोतरी होती है. इसके अलावा हर तरह की बलाओं, गृह क्लेश, रोग-दोष आदि से छुटकारा मिलता है.

ये हैं पौराणिक कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, धर्मवर्ण नाम का एक ब्राह्मण था. एक बार उसने किसी महात्मा के मुख से सुना कि कलयुग में भगवान विष्णु के नाम का स्मरण करने से ज्यादा पुण्य किसी भी काम में नहीं मिलता है. इसके बाद धर्मवर्ण ने सांसारिक जीवन छोड़ दिया और संन्यास लेकर भ्रमण करने लगा. एक दिन घूमते हुए वे पितृलोक पहुंच गए. वहां उनके पितर बहुत कष्ट में थे. पितरों ने बताया कि ऐसी हालत तुम्हारे संन्यास के कारण हुई है, क्योंकि उनके लिए पिंडदान करने वाला कोई नहीं है.

पितरों ने उस ब्राह्मण से कहा कि अगर तुम वापस जाकर गृहस्थ जीवन की शुरुआत करो, संतान उत्पन्न करो और साथ ही वैशाख अमावस्या के दिन विधि-विधान से पिंडदान करो और शाम के समय दीपदान करो. तो उन्हें शांति मिल सकती है. इसके बाद धर्मवर्ण ने उन्हें वचन दिया कि वह उनकी ये इच्छा जरूर पूरी करेंगे. इसके बाद उन्होंने संन्यासी जीवन छोड़कर फिर से सांसारिक जीवन अपनाया और वैशाख अमावस्या पर विधि-विधान से पिंडदान और दीपदान कर अपने पितरों को मुक्ति दिलाई.

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