ईरान-इजराइल की लड़ाई लगातार बढ़ती जा रही है, जिसके चलते कच्चे तेल के दामों को लेकर चिंता बनी हुई है. फ़िलहाल कच्चे तेल की मांग में कोई उछाल नहीं है और आगे के लिए मांग के अनुमान भी कमजोर बने हुए हैं. लेकिन इसकी कीमतें तेजी के साथ 90 डॉलर प्रति बैरल के स्तर के करीब बनी हुई है. क्रूड ऑयल की कीमतों में ये तेजी मिडिल ईस्ट में जारी संकट की वजह से है.
ईरान के इजराइल के साथ संघर्ष में सीधे तौर पर उतरने से स्थिति और खतरनाक हो गई है. बाजार ईरान के एक कदम को लेकर काफी चिंतित है, अगर ईरान ने ये कदम उठा लिया तो पेट्रो-डीजल से लकर सस्ते कर्ज तक मे राहत की उम्मीदें खत्म हो सकती हैं. आइए जानते हैं बाजार जानकारों को किस कदम का डर है.
क्या है सबसे बड़ी टेंशन?
बाजार जानकारों के मुताबिक, ईरान-इजराइल संघर्ष को रोकने की कोशिशें लगातार की जा रही हैं लेकिन ऐसी स्थिति में तेल गैस की कीमतों में उछाल देखने को मिलेगा अगर ईरान होरमुज जल संधि या स्ट्रेट ऑफ़ होरमुज में आंशिक या पूरी घेराबंदी कर दे. ये जलसंधि बेहद संकरी जलसंधि है. सबसे संकरे क्षेत्र में ये कुल मिलाकर 40 किलोमीटर ही चौड़ी है और यहां जहाज सिर्फ 2 किलोमीटर चौड़े रूट पर ही चल सकते हैं.
ऐसे में यहां घेराबंदी करना बेहद आसान है और इसका असर भी काफी पड़ सकता है. खास तौर पर तब जबकि तेल के कारोबार का 21 फीसदी हिस्सा और ग्लोबल एलएनजी ट्रेड का 20 फीसदी हिस्सा यहां से होकर गुजरता है. सबसे बड़ी चिंता की बात ये है कि इस क्षेत्र से गुजरने वाले तेल को घेराबंदी की स्थिति में दूसरा रूट मिल सकता है लेकिन गैस के लिए कोई वैकल्पिक रूट नहीं है.
क्या होगा असर
अगर जलसंधि से आने जाने वाले ट्रैफिक पर असर पड़ता है तो पेट्रोल और डीजल से लेकर लोन में राहत की जल्द उम्मीदें खत्म हो सकती हैं, सप्लाई पर असर पड़ने से कच्चे तेल की कीमतों में उछाल तय है. इसके अलावा सप्लाई घटने और फ्यूल कीमतों में बढ़ोतरी से दूसरे उत्पादों की कीमतों में भी असर देखने को मिलेगा जिससे महंगाई दर में एक बार फिर उछाल दर्ज हो सकता है और केंद्रीय बैंकों को एक बार फिर सख्त नीतियों पर फोकस बनाए रखना होगा. मूडीज पहले ही कह चुका है कि कच्चे तेल की कीमतों में उछाल महंगाई दर पर दबाव बढ़ा सकती हैं और इससे केंद्रीय बैंकों के लिए और मुश्किलें बढ़ जाएंगी.