Let’s travel together.
Ad

पश्चिम बंगाल में लोकसभा चुनाव में हिंसा के बीच बंपर वोटिंग, क्या है इसके पीछे की कहानी?

0 23

पश्चिम बंगाल के तीन लोकसभा केंद्रों जलपाईगुड़ी, अलीपुरद्वार और कूचबिहार में छिटपुट हिंसा के बीच मतदान हो रहा है. पश्चिम बंगाल के तीन लोकसभा सीटों के साथ मतदान देश के 21 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेश के 102 लोकसभा सीटों पर हो रहे हैं, लेकिन मतदान के दौरान हिंसा की वारदातें केवल पश्चिम बंगाल में हो रही है. सिलीगुड़ी के पास जलपाईगुड़ी लोकसभा में डाबग्राम-फुलबारी विधानसभा क्षेत्र के वलहवासा चौराहे पर भाजपा बूथ कार्यालय संख्या 86 को कथित तौर पर जलाने का आरोप लगा है.

इसी तरह से कूचबिहार के देवचराई में तृणमूल बीजेपी के बीच झड़प की घटना घटी है, लेकिन हिंसा के बीच पश्चिम बंगाल में अन्य राज्यों की तुलना में सबसे ज्यादा मतदान हुआ है. दोपहर एक बजे तक जहां देश के अन्य राज्यों में मतदान का प्रतिशत 35 फीसदी था, वहीं, पश्चिम बंगाल में 41 डिग्री तापमान में भी मतदान का प्रतिशत का आंकड़ा 50 फीसदी पार कर गया था, जबकि शाम तीन बजे मतदान का प्रतिशत 66.34 फीसदी रहा, जो केवल त्रिपुरा से कम था, जबकि शाम पांच बजे तक पश्चिम बंगाल में 77.57 फीसदी मतदान हुए , जो देश में सर्वाधिक हैं.

दोपहर एक बजे तक मतदान का औसत प्रतिशत 50.96% रहा. इसमें अलीपुरद्वार में 51.58%, कूचबिहार में 50.69% और जलपाईगुड़ी में 50.65% मतदान का प्रतिशत रहा है. वहीं, शाम पांच बजे कूचबिहार में 77.73 फीसदी, अलीपुरद्वार में 75.54 फीसदी और जलपाईगुड़ी में 79.33 फीसदी मतदान हुए हैं. बता दें कि औसतन पश्चिम बंगाल में मतदान का प्रतिशत ज्यादा होना और चुनाव के दौरान हिंसा होना सामान्य बात है, लेकिन इस चुनाव में भी मतदान का ग्राफ हाई दिख रहा है.

हिंसा से बीजेपी के कार्यकर्ता ज्यादा प्रभावित

राजनीतिक विश्लेषक पार्थ मुखोपाध्याय बताते हैं कि यह सत्तारूढ़ दल तृणमूल कांग्रेस के प्रति असंतोष को दर्शा रहा है. बंगाल के जिन तीन लोकसभा सीटों अलीपुरद्वार, जलपाईगुड़ी और कूचबिहार में मतदान हो रहे हैं. वे उत्तर बंगाल में हैं और उत्तर बंगाल में पिछले लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने बहुत अच्छा प्रदर्शन किया था. हालांकि पंचायत चुनाव में बीजेपी का प्रदर्शन खास नहीं था, लेकिन विधासनभा चुनाव में अलीपुरद्वार की सात विधानसभा सीटों में से छह पर बीजेपी ने जीत हासिल की थी. केवल एक सीट पर टीएमसी का कब्जा हुआ है.

उन्होंने कहा कि वोट प्रतिशत साफ बता रहा है कि बीजेपी मतदाताओं को एकजुट करने में सफल रही है. मतदान के दौरान हुई हिंसा से सबसे प्रभावित बीजेपी के कार्यकर्ता हुए हैं. तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ता हिंसा में जो घायल हुए हैं, वे चुनाव पूर्व हिंसा में घायल हुए हैं. मतदान के दौरान कई टीएमसी कैंप खाली दिखाई दे रहे हैं, जिनसे मतदाताओं को स्लिप दिया जाता है. कई लोगों को मानना है कि यह ममता बनर्जी और टीएमसी के प्रति असंतोष को दर्शाता है.

क्या ममता बनर्जी के खिलाफ है असंतोष?

शुक्रवार को ममता बनर्जी ने मुर्शिदाबाद में सभा की. इस सभा के माध्यम से सीएम ममता बनर्जी ने अल्पसंख्यकों को लुभाने की कोशिश की है. ममता बनर्जी ने साफ कहा कि यदि सीएए लागू होता है, तो अल्पसंख्यक विदेशी हो जाएंगे. वह किसी भी कीमत पर राज्य में एनआरसी लागू होने नहीं देगी. लेकिन बंगाल के जिन तीन लोकसभा सीटों पर मतदान हो रहे हैं. उनमें अल्पसंख्यकों का प्रतिशत बहुत ही कम है और इन इलाकों में आदिवासी और जनजाति समुदाय का बाहुल्य है. इन समुदाय पर बीजेपी की पकड़ मानी जाती है. इन इलाकों में चाय बगानों की संख्या बहुत ही अधिक है और वे बंद हैं. आवास योजना के पैसे लोगों के पास नहीं पहुंचे हैं. 100 दिनों के काम के पैसे में धांधली हुई है. देश के दूसरे राज्यों में जो श्रमिक जाते हैं. उनमें उत्तर बंगाल के श्रमिक सबसे अधिक हैं. ऐसे में ममता बनर्जी के प्रति असंतोष है. ऐसे में पश्चिम बंगाल में मतदान का आंकड़ा 80 फीसदी पार कर जाए, तो इसमें आश्चर्य नहीं होगा.

वोटर्स राजनीतिक रूप से सजग

दूसरी ओर, बंगाल के लोग राजनीतिक रूप से काफी सजग होते हैं और वे चुनाव को एक त्यौहार के रूप में देखते हैं और खुलकर अपने मताधिकार का प्रयोग करते हैं. इसके पहले भी 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान पश्चिम बंगाल में सर्वाधिक मतदान 81.7 फीसदी हुआ था. उसके बाद मतदान का प्रतिशत असम में 81.6 फीसदी और आंध्र प्रदेश में 80.3 फीसदी थी. पिछले छह लोकसभा चुनावों में बंगाल में मतदान का प्रदर्शन अधिक रहा है. मतदान प्रतिशत में वृद्धि गई है. 1998 के लोकसभा चुनाव में, पश्चिम बंगाल में 79.2 प्रतिशत मतदान रहा है

इसका मुख्य कारण यह है कि पश्चिम बंगाल में राजनीतिक चेतना और राजनीतिक आकांक्षाओं का स्तर अन्य भारतीय राज्यों की तुलना में अधिक है, जो इन विशेष राज्यों में अधिक मतदान का कारण हो सकता है. इन क्षेत्रों में समुदायों की जरूरतों को संबोधित करने में राजनीतिक शक्ति की केंद्रीय भूमिका के कारण ग्रामीण भारत में वोट शेयर अधिक होते हैं. ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक मतदान का एक अन्य कारण यह है कि ग्रामीण मतदाता सामूहिक मतदान निर्णय लेते हैं, जबकि शहरी मतदाता अधिक व्यक्तिवादी होते हैं। जब किसी समूह द्वारा मतदान का निर्णय लिया जाता है, तो समूह के सभी सदस्यों पर मतदान द्वारा इसे लागू करने का नैतिक दबाव होता है।

Leave A Reply

Your email address will not be published.

जंगलों में मोर करती है विचारण सुबह-सुबह खेतों में आती है नजर     |     मौसम बदला 2 दिन से पड़ रही है ठंड और कोहरा     |     TODAY :: राशिफल गुरूवार 21 नवम्बर 2024     |     सतीश राठौर बने जनपरिषद के गुना चैप्टर के अध्यक्ष     |     शैक्षिक गुणवत्ता एवं छात्र छात्राओं को सुविधा देना सरकार की प्राथमिकता     |     सीएम हेल्पलाईन में शिकायतें लंबित पाए जाने पर सहायक प्रबंधक, दन्त रोग चिकित्सक एवं सहायक ग्रेड-3 को कारण बताओ नोटिस जारी     |     रोड पर बह रहा सीवेज का गंदा पानी , 20 से 25 गांव के ग्रामीण हो रहे हैं परेशान     |     कुल्हाड़ियां गांव के पास 12 दिन से  लावारिस हालत में खड़ा है एक ट्रक     |     दीवानगंज और सेमरा गांव में भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ा आंगनबाड़ी केंद्र     |     विधायक डॉ.प्रभुराम चौधरी ने सांची में ढाई करोड़ के निर्माणों का किया भूमि पूजन      |    

Don`t copy text!
पत्रकार बंधु भारत के किसी भी क्षेत्र से जुड़ने के लिए इस नम्बर पर सम्पर्क करें- 9425036811