वसंत ऋतु के आगमन का समाचार और विद्या की देवी सरस्वती के जन्मदिन की खुशियों को लेकर आज वंसत पंचमी का त्यौहार आया है. प्रकृति और विद्या के प्रति अपने समर्पण को दर्शाने का यह सबसे बेहतरीन मौका है. ठंडी के बाद मौसम अपने सबसे रंगीन रुप में करवट लेता है और पेड़ों पर निकली नई कोपलें इस शुभ-संकेत देती हैं. आज के दिन पितृ तर्पण और कामदेव की पूजा का भी विधान है. वसंत पंचमी को श्री पंचमी तथा ज्ञान पंचमी भी कहते हैं.
वसंत पंचमी मुख्यत: मां सरस्वती के प्रकट होने के उपक्ष्य में मनाया जाता है. धार्मिक ग्रंथों में ऐसी मान्यता है कि इसी दिन शब्दों की शक्ति मनुष्य की झोली में आई थी. हिंदू धर्म में देवी शक्ति के जो तीन रूप हैं -काली, लक्ष्मी और सरस्वती, इनमें से सरस्वती वाणी और अभिव्यक्ति की अधिष्ठात्री हैं. सृष्टि के प्रारंभिक काल में भगवान विष्णु की आज्ञा से ब्रह्माजी ने मनुष्य योनि की रचना की. पर अपने प्रारंभिक अवस्था में मनुष्य मूक था और धरती बिलकुल शांत थी. ब्रह्माजी ने जब धरती को मूक और नीरस देखा तो अपने कमंडल से जल लेकर छिटका दिया., जिससे एक अद्भुत शक्ति के रूप में चतुर्भुजी सुंदर स्त्री प्रकट हुई. जिनके एक हाथ में वीणा एवं दूसरा हाथ वर मुद्रा में था. इस जल से हाथ में वीणा धारण किए जो शक्ति प्रगट हुई, वह सरस्वती कहलाई. उनके वीणा का तार छेड़ते ही तीनों लोकों में कंपन हो गया (यानी ऊर्जा का संचार आरंभ हुआ) और सबको शब्द और वाणी मिल गई.
सरस्वती कला, ज्ञान और विद्या की देवी है. उन्हें पवित्रता, सिद्धि, शक्ति और समृद्धि की देवी भी माना गया है. इनकी सबसे पहले पूजा श्रीकृष्ण और ब्रह्माजी ने ही की है. देवी सरस्वती ने जब श्रीकृष्ण को देखा तो उनके रूप पर मोहित हो गईं और पति के रूप में पाने की इच्छा करने लगीं. भगवान कृष्ण को इस बात का पता चलने पर उन्होंने कहा कि वे तो राधा के प्रति समर्पित हैं. परंतु सरस्वती को प्रसन्न करने के लिए उन्होंने वरदान दिया कि प्रत्येक विद्या की इच्छा रखनेवाला माघ मास की शुक्ल पंचमी को तुम्हारा पूजन करेगा. यह वरदान देने के बाद स्वयं श्रीकृष्ण ने पहले देवी की पूजा की.
देवी भागवत में उल्लेख है कि माघ शुक्ल पक्ष की पंचमी को ही संगीत, काव्य, कला, शिल्प, रस, छंद, शब्द शक्ति जीव को प्राप्त हुई थी. सरस्वती प्रकृति की देवी भी हैं. वसंत पंचमी पर पीले वस्त्र पहनने, हल्दी से सरस्वती की पूजा और हल्दी का ही तिलक लगाने का विधान है. यह सब भी प्रकृति का ही श्रृंगार है. पीला रंग इस बात का भी द्योतक है कि फसलें पकने वाली हैं. पीला रंग समृद्धि का सूचक कहा गया है.
यह त्यौहार आज अपने मूल रुप से थोड़ा कमजोर नजर आता है लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि जीवन में विद्या के बिना कुछ भी पाना बेहद जटिल है. विद्या की देवी के पूजन के साथ आज हमें प्रकृति के प्रति अपना आभार प्रकट करना चाहिए.