छत्तीसगढ़ में पंचायती राज व्यवस्था का कमजोर होना बेहद दुर्भाग्यपूर्ण- हुलास साहू
सुरेन्द्र जैन धरसीवां
छत्तीसगढ़ ग्राम विकास एकता समिति के प्रदेश अध्यक्ष हुलास साहू ने कहा कि छत्तीसगढ़ में पंचायती राज व्यवस्था का कमजोर होना बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है, महात्मा गाँधी जी ने सत्ता के विकेंद्रीकरण और गाँवों के सशक्तिकरण के लिए पंचायती राज व्यवस्था की जो भूमिका सोची थी उसे साकार करते हुए प्रधानमंत्री राजीव गांधी जी ने जिस पंचायती राज को लेकर आए थे। उसे अब तक सरकारों ने ध्वस्त कर दिया है। देश के समग्र विकास के लिए जिस पंचायती राज व्यवस्था की शुरुआत समाज पर जबरदस्त असर हुआ लेकिन अफसोस के साथ कहना पढ़ रहा है कि यह अब कम हो रहा है। पंचायती राज के मोर्चे पर जितना आगे बढ़ने का काम होना था हम उससे पीछे लौट रहे हैं। इतिहास देखें तो पता चलता है कि राजतन्त्र में राजा- पहली सत्ता होता था, प्रजा अन्तिम। परन्तु 26 जनवरी 1950 को पहली लोकतंत्र दिवस मनाया था और हमारे देश के संविधान में लिखा है कि लोकतन्त्र में संसद तीसरी सरकार होती है, विधानसभा दूसरी और ग्रामसभा पहली सरकार लेकिन ऐसा नही हुआ। आज संसद को पहली सरकार, दूसरी विधानसभा और तीसरी सरकार ग्रामसभा को बना दिया गया है। पंचायती राज व्यवस्था में ग्रामसभा को मजबूत करने की अत्यंत आवश्यकता है, पंचायती राज व्यवस्था पर अफ़सरशाही बेलगाम हो गई है इसलिए ग्राम सभाओं को उनका संवैधानिक अधिकार वापस दिलाना होगा।
साहू ने कड़े शब्दों कहा कि अंग्रेजों के द्वारा बनाई व्यवस्था जिलाधिकारी आधारित व्यवस्था में चल रही है, ये कहना गलत नही होगा कि पंचायती राज व्यवस्था में ग्राम पंचायत तथा जनता द्वारा चुनी गई जनप्रतिनिधि बंधुआ मजदूर की तरह बन गई है। वर्तमान में राजतंत्र तथा अफसर राज हावी है लोगो को समझना होगा कि राजतंत्र हमारे इस लोकतंत्र में प्रजातंत्र के लिए कितना घातक है, भ्रष्टाचार की दीमक अंदर ही अंदर पंचायती राज व्यवस्था को खोखला कर रही है। जनता को सत्ता के केन्द्र में रखने के बजाय पंचायती राज व्यवस्था के मूलमंत्र के बुनियाद को जमीदारी प्रथा के तरफ पीछे ढकेल दिया गया है, यानेकी पंचायती राज व्यवस्था में केन्द्रीयकरण व्यवस्था चल रही है।
छत्तीसगढ़ ग्राम विकास एकता समिति के प्रदेश सचिव धर्मेन्द्र बैरागी जे कहा कि बोलचाल की भाष में सबसे बड़ी ग्रामसभा कहने का मतलब है कि संसद से बड़ा ग्राम सभा है यू कहे तो पहली संसद ग्रामसभा है। लेकिन ग्रामसभा को तीसरी सरकार बना दिया गया है, सत्ता के केंद्र बिंदु के पिरामिड को उलटा रख दिया गया है। परन्तु सत्ता नीचे से कहाँ चल रही है। सारा झगड़ा तो सत्ता का ऊपर एक संसद और विधानसभा में केन्द्रित होने के कारण ही तो है। पंचायती राज व्यवस्था कानून का मकसद, सत्ता को विकेन्द्रित कर ग्रामसभााओं के हाथ में दे देना ही तो था। वह पंचायत की भूमिका, पंचायती राज के वर्तमान संवैधानिक ढाँचे के साथ-साथ उन मूल्यों और दायित्वों में देखते हैं, जिनके साथ कभी गाँवों में परम्परागत पंचायतें चला करती थीं। इतिहास उठाकर देखें तो पता चलेगा कि जब-जब इस हद तक केंद्रीकरण हुआ है, व्यवस्थाएं धराशायी हो गई हैं।