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राइट क्लिक-मप्र: लोस उम्मीदवारी के लिए बड़े नामो को उछालने का खेल…! -अजय बोकिल

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आलेख

जय बोकिल

विपक्षी पार्टियों के इंडिया गठबंधन में दरार और 15 राज्यों की 56 राज्यसभा सीटों पर चुनाव के ऐलान के साथ ही मध्यप्रदेश में लोकसभा सीटों पर संभावित उम्मीदवारी के लिए बड़े नामों को उछालने का दिलचस्प खेल शुरू हो चुका है। इसलिए भी कि मामला दो पूर्व मुख्यमंत्रियों से जुड़ा है। मजेदार बात यह है कि इस संभावित उम्मीदवारी पर वो लोग ज्यादा कुछ नहीं बोल रहे हैं, जिनके नाम चलने शुरू हो गए हैं। ऐसे में लोग इस ‘ब्रेकिंग न्यूज’ के पीछे की रणनीति भांपने की कोशिश की जा रही है कि गणित क्या है। क्या यह नामों की आड़ में निपटाने का खेल है या फिर चुनावी चुनौती को धारदार बनाने का दांव है? क्योंकि पूर्व मुख्‍यमंत्री और अब भाजपा‍ विधायक शिवराजसिंह चौहान की संभावित उम्मीदवारी का ऐलान केन्द्रीय मंत्री रामदास आठवले के मुख से कराया गया तो दूसरी तरफ एक और पूर्व मुख्यमंत्री, कांग्रेस नेता ‍और वर्तमान राज्यसभा सांसद दिग्विजयसिंह का नाम भी लोकसभा चुनाव के लिए संभावित प्रत्याशी के रूप में चलाया गया, जिसका दिग्विजयसिंह ने यह कहकर खंडन कर दिया कि अभी तो मैं राज्यसभा में हूं।
मध्यप्रदेश के करीब 18 साल तक सीएम रहे शिवराजसिंह चौहान के राजनीतिक भविष्य और उनकी अपनी पार्टी भाजपा में उनकी हैसियत को लेकर दो महीने से लगातार सवाल उठ रहे हैं। कभी कहा गया कि पार्टी उन्हें बड़ी जिम्मेदारी देने जा रही है तो कभी बताया गया कि शिवराज अब दक्षिणी राज्यों में भाजपा को मजबूत बनाने में जुट गए हैं। वैसे मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव में भाजपा की बम्पर जीत के बाद शिवराज ने परोक्ष रूप से पांचवी बार भी अपनी दावेदारी यह कहकर जताई थी कि उनका लक्ष्य अब मप्र की सभी 29 लोकसभा सीटों पर विजय का हार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को भेंट करने का है। विस चुनाव में जीत के तुरंत बाद उन्होंने उस छिंदवाड़ा जिले की यात्रा की, जो शेष राज्य में भगवा लहर के बावजूद कांग्रेस के पंजे में ही रहा था। गौरतलब है कि छिंदवाड़ा वरिष्ठ कांग्रेस नेता और पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ का गढ़ 40 सालों से है। शिवराज ने छिंदवाड़ा जाकर यह संदेश देने की कोशिश की थी कि वो असंभव को संभव बनाने के लिए ही यहां आए हैं। ऐसे में यह अटकलें जोर पकड़ने लगी थीं कि इस बार राज्य की 29 वीं सीट भी जीतने के मकसद से पार्टी शिवराज को छिंदवाड़ा सीट से भाजपा प्रत्याशी बना सकती है।
इसी अटकल को बल मिला केन्द्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता राज्यमंत्री रामदास आठवले के भोपाल में दिए बयान से। आठवले खुद भाजपा में नहीं हैं, लेकिन उनका दल रिपब्लिकन पार्टी आॅफ इंडिया (आठवले) केन्द्र में सत्तारूढ़ एनडीए का सदस्य है। उन्होंने भाजपा के मीडिया सेंटर में पत्रकार वार्ता की और ऐलान कर दिया कि पूर्व मुख्‍यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने मप्र में अच्छा काम किया, इसीलिए उन्हें तीन बार मुख्यमंत्री बनाया गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को हर कास्ट को न्याय देना था इसीलिए वे नया अोबीसी चेहरा सामने लाए। आठवले ने दावे से कहा कि शिवराज सिंह चौहान पहले दिल्ली जाएंगे और आगे मोदी मंत्रिमंडल में आएंगे। केन्द्र में कैबिनेट मंत्री बनाकर उनका आदर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करेंगे।’ चूंकि यह बात भाजपा मीडिया सेंटर में एक गैर भाजपा नेता ने कही, इसका सीधा अर्थ यही है कि शिवराज की संभावित उम्मीदवारी का ऐलान सोची समझी रणनीति के तहत रामदास आठवले के मुंह से कराया गया।

क्योंकि आठवले की बात का न तो किसी भाजपा नेता ने खंडन किया और न ही स्वयं शिवराज की अोर से इस बारे में कोई प्रतिक्रिया आई। वैसे अगर चुनाव लड़ना ही पड़ा तो शिवराज की पहली पसंद तो उनकी अपनी पुरानी लोकसभा सीट विदिशा होगी, लेकिन पार्टी हाइकमान उन्हें इतनी आसान सीट से लड़ाएगा, इसकी संभावना कम ही है। अगर शिवराज को छिंदवाड़ा से उतारा गया तो मुकाबला वाकई कांटे का होगा और आश्चर्य नहीं कि शिवराज कमलनाथ पर भारी पड़ जाएं। और ‍िशवराज को तगड़ी टक्कर देने के लिए छिंदवाड़ा से अपने बेटे नकुलनाथ को उतारने की जगह खुद को मैदान में उतरना होगा।


दूसरा मामला एक दूसरे पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजयसिंह का है। कहीं से यह सुरसुरी फैलाई गई कि इस बार ‍िफर दिग्विजयसिंह लोकसभा चुनाव लड़ सकते हैं। इसके पीछे कांग्रेस की यह रणनीति बताई जाती है कि मप्र में हाल में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा द्वारा कई सांसदो और बड़े चेहरों को मैदान में उतारने का भाजपा को काफी फायदा हुआ। ऐसे अधिकांश प्रत्याशी खुद तो जीते ही, आसपास की सीटों को भी जितवाया। लिहाजा कांग्रेस इसी फार्मूले को अब लोकसभा चुनाव में अप्लाई करना चाहती है। ऐसे में कांग्रेस में सबसे ब़़ड़ा नाम तो‍ दिग्विजयसिंह का ही है। गौरतलब है कि 2019 में मप्र के तत्कालीन मुख्‍यमंत्री कमलनाथ ने भोपाल में एक पत्रकार वार्ता में ऐलान किया था कि दिग्विजयसिंह को किसी मुश्किल सीट से लोकसभा का चुनाव लड़ना चाहिए। चाहें तो वो भोपाल से लड़ सकते हैं। कमलनाथ के उस बयान में आग्रह के साथ आदेश भी था। यह ऐलान दिग्विजयसिंह की सहमति से हुआ था या नहीं, यह कभी साफ नहीं हुआ। ऐलान हो जाने के बाद दिग्विजयसिंह के लिए पीछे हटना संभव नहीं था। यह जानते हुए भी भोपाल लोस सीट पिछले 35 सालों से भाजपा का अभेद्य दुर्ग बनी हुई है। फिर भी दिग्विज‍यसिंह ने यहां से चुनाव लड़ने का जोखिम उठाया और वो एक एक अल्पज्ञात भाजपा प्रत्याशी प्रज्ञासिंह ठाकुर से साढ़े तीन लाख वोटों से हार गए। इस बार चर्चा चली कि दिग्विजयसिंह को अपनी पुरानी लोकसभा सीट राजगढ़ से फिर लड़ना चाहिए। क्योंकि वो पूर्व में दो बार इस सीट से लोकसभा जीत चुके हैं और अभी भी वहां से कांग्रेस प्रत्याशी को जिताने की तैयारी में जुट गए हैं। जहां तक खुद उनके अपने चुनाव लड़ने की बात है तो लगता है कि दिग्विजय जमीनी हालात को समझ गए हैं। इसलिए उन्होंने चुनाव लड़ने की अटकलों को यह कहकर खारिज कर दिया कि उनका राज्यसभा का सवा दो साल का कार्यकाल अभी बाकी है। वैसे इस बार भाजपा और कांग्रेस दोनो पार्टियां लोकसभा में दिग्गज चेहरे उतारने के मूड में ज्यादा हैं। इसकी एक वजह तो कोप भवन में बैठे पार्टी प्रत्याशियों को मुख्‍य धारा में लाना और हैवी वेट कैंडिडेट के रूप में उन्हें चुनाव मैदान में उतारना है ताकि जीत सुनिश्चित की जा सके। इनमें कुछ विस चुनाव में हारे हुए प्रत्याशी भी हो सकते हैं। भाजपा राज्य की सभी 29 लोकसभा सीटें जीतने की फिराक में है तो कांग्रेस अपनी परंपरागत छिंदवाड़ा सीट बचाने के साथ साथ कुछ दूसरी सीटें जीतने की उम्मीद बांधे हुए है।


लेखक-‘सुबह सवेरे’ के  वरिष्ठ संपादक हें।

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