हिंदू परंपराओं में ऋषि-मुनियों उच्च स्थान होता है। पुरातन काल में कई महान ऋषि हुए, इनमें से एक थे ऋषि अगस्त्य। कहते हैं कि उन्होंने एक बार समंदर का सारा पानी पी लिया था। उनमें इतनी ताकत थी कि विंध्याचल पर्वत को झुका लिया था। उन्होंने श्रीराम को ऐसा मंत्र दिया, जिससे रावण का वध करने में मदद मिली।
कहते हैं कि जगदगुरु ब्रह्मा ने धरती पर संतुलन बनाए रखने के लिए सप्तर्षियों की उत्पत्ति की थी। अगस्त्य ऋषि उनमें से एक थे। हालांकि कुछ कथाओं में कहा गया है कि अगस्त्य ऋषि का जन्म अगस्त्यकुंड में हुआ था। उनका अधिकतर जीवन दक्षिण भारत के क्षेत्र में बीता। इसलिए दक्षिण भारत के ग्रंथों में उनकी महिमा का बखान मिलता है। उनकी शादी विदर्भ देश की राजकुमारी लोपमुद्रा से हुआ था। लोपमुद्रा भी बहुत ज्ञानी महिला थीं। अगस्त्य ऋषि को राजा दशरथ का गुरु माना जाता है। ये भी कहा जाता है कि ऋग्वेद में कई मंत्रों की रचना अगस्त्य ऋषि ने की थी।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार एक बार देवताओं और राक्षसों के बीच भयंकर युद्ध हुआ। देवताओं ने वृतासुर नाम के प्रमुख राक्षस का वध कर दिया। अपने भयभीत होकर राक्षस इधर-उधर छिपने लगे। कुछ राक्षस समंदर में जाकर छिप गए। वे अंधेरे में बाहर निकलते और ऋषि-मुनियों, देवताओं एवं अन्य महान पुरुषों का वध करके वापस समंदर में छिप जाते।
इससे परेशान होकर सभी देवता विष्णुजी के पास पहुंचे। विष्णु ने कहा कि इसका एक ही उपाय है, अगर सारा समुद्र सूख जाए तो राक्षस बाहर आ जाएंगे। इस काम में सिर्फ एक ही महापुरुष मदद कर सकते हैं, वो हैं अगस्त्य ऋषि। इसके बाद सभी देवता अगस्त्य ऋषि के पास पहुंचे और अपनी चिंता बताई। अगस्त्य ने उनकी बातें सुनी और उनके साथ चल दिए।
अगस्त्य ऋषि ने समंदर का सारा पानी पी लिया। फिर छिपे हुए राक्षस नजर आ गए और देवताओं ने उनका वध कर लिया। जब समंदर पूरा सूख गया तो, देवताओं ने अगस्त्य ऋषि से पानी वापस भरने की अपील की। मगर अगस्त्य ने उनके सामने हाथ जोड़ लिए और कहा कि ये उनके बस का नहीं है। धरती पर अकाल का संकट आ गया। सभी देवी-देवता वहां ब्रह्माजी के पास पहुंच गए। ब्रह्मा ने कहा कि जब भागीरथ धरती पर स्वर्ग से गंगा लाने की कोशिश करेंगे, तब समुद्र फिर पानी से भर जाएगा।
अगस्त्य ऋषि से जुड़ी एक और कथा है। कहते हैं कि एक बार भारत के मध्य में बसे विंध्य पर्वत को मेरु पर्वत से जलन हो गई। वह मेरु पर्वत जितना बड़ा बनना चाहता था। विंध्य पर्वत ने खुद को इतना ऊंचा उठा लिया कि वो आसमान तक जा पहुंचा। इससे सूरज-चंद्रमा सारे छिप गए और धरती पर अंधेरा छाने लगा। तब कुछ लोग अगस्त्य ऋषि के पास आए और इसका उपाय निकालने के लिए कहा।
अगस्त्य ऋषि उस समय उत्तर भारत में रहा करते थे। उन्होंने विंध्य पर्वत से कहा कि नीचे झुको, मुझे दक्षिण की ओर जाना है। ऋषि की महानता को देख विंध्य पर्वत ने तुरंत हामी भर दी और अपना कद छोटा कर दिया। इससे धरती पर फिर से सूरज और चंद्रमा चमकने लगे। ऋषि ने ये भी कहा कि जब तक वे दक्षिण से उत्तर की ओर वापस न लौटें, तब तक वह अपना कद न बढ़ाए। विंध्य पर्वत ने उनकी ये बात भी मान ली। ऋषि अगस्त्य फिर दक्षिण आए और वहीं बस गए। वे कभी उत्तर की ओर नहीं गए और विंध्य पर्वत ने भी अपना कद नहीं बढ़ाया।