आलेख
अजय बोकिल
मध्यप्रदेश में कांग्रेस के इन दो दिग्गज नेताओं के बीच आपसी रिश्ते कैसे हैं, यह सभी को पता है। लेकिन इस रिश्तेदारी में गालियां खाने का अधिकार पत्र (मुख्त्यारनामा) देना और उसका सार्वजनिक रूप से एलान जरा नई बात है।
सियासत में ये अंदाज भला नया हो, लेकिन हकीकत नई नहीं है। मध्यप्रदेश कांग्रेस में एक विधानसभा सीट पर टिकट वितरण के विवाद को लेकर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और पार्टी के सीएम पद के दावेदार कमलनाथ ने कांग्रेस सांसद और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह से सरेआम कहा कि ‘मैंने गालियां खाने की पावर ऑफ एटर्नी आपको दे रखी है। ये पावर ऑफ एटर्नी आज भी वैलिड है। आप पूरी गालियां खाइए। चाहे मेरी गलती हो या न हो।‘
कैसे हैं आपसी रिश्ते?
मध्यप्रदेश में कांग्रेस के इन दो दिग्गज नेताओं के बीच आपसी रिश्ते कैसे हैं, यह सभी को पता है। लेकिन इस रिश्तेदारी में गालियां खाने का अधिकार पत्र (मुख्त्यारनामा) देना और उसका सार्वजनिक रूप से एलान जरा नई बात है। कुछ लोग इसे दोनो नेताओं के बीच मधुर सम्बन्धों का नकली ‘गाली एंगल’ मान रहे हैं तो कुछ की निगाह में यह आपसी कलह की ‘पावर ऑफ एटर्नी की सार्वजनिक स्वीकारोक्ति है। यूं भारतीय राजनीति में राजनेताओं और राजनीतिक दलों के बीच आए दिन गालियों के आदान- प्रदान की परंपरा नई नहीं है।
चुनावों के समय तो यह अपने चरम पर होती है। कई बार ये गालियां शालीनता के अंतिम छोर को भी पार करने की दुर्भावना से प्रेरित होती हैं। ऐसी गालियों का तो एक अलग शब्दकोश तैयार किया जा सकता है। यह मान्यता अब आम हो चली है कि सियासत में एक दूसरे को कोसने अथवा दोषी ठहराने के लिए जितने घटिया और अमानुष शब्दों का इस्तेमाल किया जाएगा, वोटों की हांडी उतनी ही ज्यादा पकेगी। ऐसे में मर्यादा शब्द का अर्थ ही अमर्यादा में तब्दील हो जाता है।
वहीं, भोपाल में कमलनाथ ने जो कहा वो इस मायने में अलग है कि उन्होंने उन्हें पड़ने वाली सार्वजनिक गालियों को खाकर हजम करने का अधिकार पत्र अपने ही एक समकालीन नेता को दिया है। कानूनी अर्थ में पावर ऑफ एटार्नी एक लीगल डाक्यूमेंट होता है, जिसके जरिए एक व्यक्ति किसी दूसरे को अपनी प्रॉपर्टी मैनेज करने के लिए अधिकृत करता है ताकि वो ऐसा करने के लिए जरूरी फैसले भी ले सके।
ऐसे पावर ऑफ एटर्नी प्राप्तकर्ता को कानून की भाषा में एजेंट और यह अधिकार देने वाले को ग्रांटर कहा जाता है। अब कमलनाथ ने जो कहा उसका तात्पर्य यह है कि वो भी अच्छे फैसले करें, उसका क्रेडिट सीधे उनके खाते में होगा और जो गलत या विवशता भरे फैसले करें, उसकी डिसक्रेडिट दिग्विजयसिंह के खाते में ट्रांस्फर होगी।
दोनो नेताओं के बीच जो नोंक झोंक हुई
हालांकि, भोपाल में कांग्रेस पार्टी के 1209 वचनों के पत्र विमोचन अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में दोनो नेताओं के बीच जो नोंक झोंक हुई, उसमें दिग्विजय ने इस अयाचित और अनपेक्षित पावर ऑफ एटर्नी का यह कहकर विरोध किया कि ‘भैया, ए फॉर्म और बी फॉर्म में दस्तखत किसके होते हैं, पीसीसी चीफ के। तो कपड़े किसके फटने चाहिए, बताओ। गलती कौन कर रहा है, ये भी पता होना चाहिए।
अब शंकरजी का काम यही है विष पीने का, तो पीएंगे। यानी कि जो हुआ, उसमें मैं कहां हूं? ऐसे में गालियां खाने की पावर ऑफ एटर्नी मुझे क्यों? इसके पहले जो वीडियो वायरल हुआ था, उसमें कमलनाथ राज्य की कोलारस सीट पर घोषित टिकट का विरोध करने वालों से कहते दिखे कि (टिकट तो दिग्विजय ने बांटे हैं, इसलिए) कपड़े फाड़ने हैं तो दिग्विजय और उनके बेटे जयवर्द्धन सिंह के फाड़ो।
यहां सवाल यह भी है कि किसी एक व्यक्ति को दी गई गालियां दूसरा कोई क्यों अपने करंट अकाउंट में डलने दे। फिर जो गालियां दी गई हैं, उसके पीछे क्या कुछ कारण हैं? हालांकि अकारण दी गई गालियों को रिटर्न या खारिज किया जा सकता है। लेकिन यह उस व्यक्ति पर निर्भर है, जिसे पावर ऑफ एटर्नी दी गई है।
यहां दिग्विजय ने बिन मांगी गालियों को यह कहकर लौटाने की कोशिश की कि जिस वजह से गालियां मुझे ट्रांस्फर की जा रही हैं, उसमें मेरा कोई हाथ नहीं है। यानी ये उधार का सिंदूर मेरे माथे क्यों? इसी संदर्भ में दिग्विजयसिंह ने एक सोशल मीडिया पोस्ट भी डाली। उन्होंने कहा कि ‘जब परिवार बड़ा होता है तो सामूहिक सुख और सामूहिक द्वंद्व दोनों होते हैं। समझदारी यही कहती है कि बड़े लोग धैर्यपूर्वक समाधान निकालें।’ इस कसक पर कपड़ा डालने के अंदाज में कमलनाथ ने कहा- मैंने मजाक और प्यार में ये बात कही थी। इस पर किसी को नाराज नहीं होना चाहिए।‘
दरअसल, राजनीति में राजी नाराजी जताने के तरीके भी अलग होते हैं। राजनीति के नियम विज्ञान की तरह स्पष्ट और प्रमाण आधारित नहीं होते। लेकिन राजनीतिक प्रयोगशीलता सियासत आत्मा है। अमूमन यहां जो दिखता है, वो वैसा होता नहीं है और जो होता है, वह कई बार किसी और ही रूप में दिखाई पड़ता है। ताजा प्रकरण में गालियों की पावर ऑफ एटर्नी देने का अर्थ केवल ‘विषपान के अधिकार’ से है। जैसा कि खुद दिग्विजयसिंह ने भी कहा।
यह बात अलग है कि कई बार खुद दिग्विजय अपने ही विवादित बयानों के कारण कटघरे में खड़े होते हैं और फिर ‘हर फिक्र को धुएं में उड़ाने’ के अंदाज में उस कटघरे से बाहर निकलने की कोशिश करते हैं। इसका निहितार्थ इतना ही है कि राजनेता को हमेशा मोटी चमड़ी वाला होना चाहिए।
छुईमुई भाव से सियासत नहीं होती। क्योंकि सियासत के रास्ते फूलों और कांटो से एक समान भरे हैं। यहां हर बात का श्रेय लेने का उद्दाम घोष और आत्ममुग्धता में डूबे रहने का सुभीता भी है तो वक्त पड़े गम और गालियां खाते रहने की फजीहत भी है। सियासत में विरोधियों के कपड़े फाड़ सकने की कूवत भी चाहिए और अपने फटे कपड़ों को लेकर राजनीतिक हमदर्दी कबाड़ सकने का माद्दा भी चाहिए।
यही भी सचाई है कि आज राजनीति में ज्यादातर बड़े नेता इस तरह गालियां खाने अथवा उसे पचा जाने की ‘पॉवर ऑफ एटर्नी’ अघोषित तौर पर किसी न किसी को दिए ही रहते हैं। बल्कि यूं कहें कि ये ‘पावर ऑफ एटर्नी’ किसी न किसी को लेनी ही पड़ती है। क्योंकि कई बार किसी आला नेता के सार्वजनिक बयान, जो कितने ही अतार्किक या मूर्खतापूर्ण क्यों न हों, की व्याखा करने और उसे उचित ठहराने का नैतिक दायित्व अमूमन उन प्रवक्ताओं अथवा समर्थक नेताओं कार्यकर्ताओं का होता है, जो किसी भी दल में होते ही इसीलिए हैं।
ताकि पार्टी में शीर्ष स्तर के मुखारविंद से जो और जैसा कहा गया है, उसकी कुतर्कीय व्याख्या अथवा संदर्भ से परे विवेचना करने का कौशल दिखाया जाए। यही गतकेबाजी किसी भी राजनीतिक ‘पावर ऑफ एटर्नी’ का वांछित गुणधर्म है।
इसके पीछे मान्यता यही है कि जो एक बार कह दिया गया है, वो सौ टंच सही है और अकाट्य है। अगर आप उसकी काट पेश भी करना चाहते हैं तो आपको उससे बड़ा विवादित और मूर्खतापूर्ण बयान देकर सुर्खियां जुटानी होंगीं।
–लेखक मप्र के वरिष्ठ पत्रकार हे।