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बचपन में मिली सजा ने सैयद हैदर रजा को बना दिया बिंदु शैली में चित्रकारी का उस्ताद

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भोपाल। दुनिया के मशहूर चित्रकार सैयद हैदर रजा की आज पुण्यतिथि है। उनका जन्म मध्यप्रदेश के मंडला जिले में 22 फरवरी 1922 को हुआ था।60 साल तक फ्रांस में रहने के बाद वह 2011 में भारत लौटे थे। 12 साल की उम्र में ही ब्रश उठाने वाले रजा 94 की उम्र में भी हर दिन कैनवास पर रंग भरते थे। इसी उम्र में उन्होंने अंतिम सांस ली थीं। मृत्य से पहले वह दो माह तक आइसीयू रहे। रजा अपनी बिंदु शैली में चित्रकारी के लिए दुनिया में मशहूर हुए। बाद में उन्होंने इस शैली को पंचतत्व से जोड़ दिया। उसमें चटख रंगों को भरा। इस शैली ने उन्हें नाम, पहचान और न जाने कितने सम्मान दिलाए। इसे सीखने की उनकी कहानी काफी दिलचस्प है।

उनके पांच पेंटिंगों को आज भारत भवन की रूपंकर ललित कला संग्रहालय में देखा जा सकता है। इनकी पेंटिंग की कीमत करोड़ों रुपये है। भोपाल में उनके कई शिष्य हैं। चित्रकार भार्गव बताते हैं कि वह जब भी भोपाल आते थे युवा चित्रकारों को हमेशा प्रोत्साहित करते थे। मैं आज भी उनकी कहीं बातों को अमल करता हूं। 2010 में उनकी पेंटिंग 16.42 करोड़ रुपये में बिकी थी। इसे क्रिस्टी आक्शन हाउस ने खरीदा था। इसके बाद वे भारत के सबसे महंगे माडर्न कलाकारों में से एक बन गए थे। 2015 में फ्रांस का सर्वोच्च नागरिक सम्मान द लिजियन आफ आनर मिला। 1981 में पद्मश्री और ललित कला अकादमी की मानद सदस्यता मिली। 2007 में उन्हें पद्मभूषण और 2013 में पद्मविभूषण मिला।

पढ़ाई में थोड़ा कमजोर थे हैदर रजा

उनके बरीबी बताते हैं कि सैयद हैदर रजा पढ़ाई में थोड़ा कमजोर थे। अध्यापक जब क्लास में पढ़ाते तो उनका ध्यान कहीं और रहता था। एक बार अध्यापक ने दीवार पर एक ब्लैक डाट बना दिया। रजा से कहा कि तुम जमीन पर बैठकर उसे देखते रहो। इसका उनके दिल और दिमाग पर काफी असर हुआ।

शुरू में अलग-अलग शैली में करते थे चित्रांकन

रजा बड़े हुए तो शुरुआत में कई साल अलग-अलग शैली पर काम करते रहे। लेकिन बाद में जब कुछ नया करना चाहा तो उन्हें स्कूल में मिली सजा याद आई और बिंदु शैली ईजाद की। उनकी ज्यादातर पेंटिंग आयल कलर या एक्रेलिक में बनी हैं। उनमें रंगों का इस्तेमाल अधिक हुआ है।

मेरा काम, मेरे अंदर की अनुभूति है

रजा कहते थे कि मेरा काम, मेरे अंदर की अनुभूति है। इसमें प्रकृति के रहस्य शामिल होते हैं। जिसे मैं कलरए लाइनए स्पेस और लाइट द्वारा जाहिर करता हूं। रज़ा रहते फ्रांस में थे पर उनका दिल हिंदुस्तान में ही रहता था। उन्होंने भारत के शहरों में दंगों के बाद के रंग को अपने ब्रश से उकेरा।

महरूम शहरों, आबादी रहित इमारतों को दर्शाते थे

रजा के चित्र लोगों से महरूम शहरों, आबादी रहित इमारतों को दर्शाते हैं, जिनमें कोई पक्षी तक नहीं है। निर्जन शहर जो शायद भूतों से भरे हुए हैं, बिना किसी आवाज के मृत कंकालों से पूछते हैं। क्या तुम अभी भी एक मुसलमान हो…। क्या तुम अभी भी एक हिंदू हो…। रजा के गुरु ब्राह्मण थे। 1950 में वे फ्रांस गए। वहां उन्हें स्कालरशिप मिली थी। पेरिस में ही रहते हुए 1959 में उन्होंने जेनाइन मोंगिलेट से शादी कर ली। जेनाइल पहले उनकी स्टूडेंट थीं। उन्हें रंगों और रेखाओं के महत्व को समझने के लिए 30 वर्षों का समय लगा था।

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