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सियासत में ‘‘ज्योति‘‘ की सीख और ‘‘दिग्गी‘‘ का धन्यवाद-अरुण पटेल

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आलेख
अरुण पटेल

ग्वालियर के महाराजा और राघौगढ़ के राजा के बीच चाहे एक पार्टी में रहे हों या अलग-अलग पार्टी में तकरार की खबरें हमेशा सामने आती रही हैं। कुछ राजनीतिक गलियारों में यह भी कहा जाता रहा है कि डेढ़ दशक बाद सत्ता में आई कांग्रेस की कमलनाथ सरकार का पतन भी इसी की परिणति थी। लेकिन यह सही है कि कभी खुलकर तो कभी लुके-छिपे दोनों के समर्थक एक-दूसरे पर निशाना साधते रहे हैं। जबसे ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस पार्टी छोड़कर भाजपा का दामन थामा और प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बनवाई और स्वयं पहले सांसद बने उसके बाद केंद्रीय मंत्री, उस समय से यह तकरार अक्सर मीडिया की सुर्खी बनती रही है।
बीते माह और बीतने जा रहे माह में महाराजा और राजा के बीच तकरार की कुछ और रंगत देखने में नजर आ रही है। सोशल मीडिया इन दिनों राजनेताओं के लिए आरोप-प्रत्यारोप का आसान जरिया बना हुआ है। सिंधिया ने दिग्विजय सिंह का एक वीडियो शेयर करते हुए उन पर कांग्रेस कार्यकर्ताओं के साथ दुर्व्यवहार करने की बात कही, इसके साथ ही उन्होंने दिग्विजय सिंह को अहंकार त्यागने की सीख तक दे डाली। अब बारी राजनीति के मजे-मंजाये खिलाड़ी दिग्विजय सिंह की थी, वे कहां पीछे रहने वाले थे उन्होंने भी सोशल मीडिया के जरिए जवाब देते हुए सिंधिया द्वारा उनको दी गयी सीख के लिए धन्यवाद दे डाला और कहा कि सीख के लिए धन्यवाद महाराज। यह मामला 24 मई का है जब दिग्विजय सिंह बुरहानपुर जिले के दौरे पर थे। वहां की बैठक का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ जिसमें दिखाई दे रहे एक कार्यकर्ता से उनकी बहस हो रही है, उसके बाद दिग्विजय ने उसे बाहर जाने का कह दिया। इसका वीडियो आने के बाद भाजपा उन पर आक्रामक हो गयी। इसको लेकर केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया दिग्विजय सिंह पर हमलावर हो गये और अहंकार त्यागने की नसीहत दे डाली।
सिंधिया ने वीडियो शेयर करते हुए कहा कि अपनी पार्टी के ही नेताओं व कार्यकर्ताओं के साथ षडयंत्रकारी तरीके से पेश आने व दुर्व्यवहार करने की दिग्विजय सिंह की पुरानी आदत रही है, उन्हें लगता है कि सभी उनके इशारे पर रिमोट की तरह काम करेंगे। आगे उन्होंने लिखा राजा साहब दिग्विजय सिंह जी अहंकार त्यागें, लोगों को अपनाना और सम्मान देना सीखें। दिग्विजय ने भी फौरन ही सोशल मीडिया के जरिए उत्तर देते हुए लिखा कि आपकी सीख के लिए धन्यवाद महाराज। ताजा संदर्भों में दोनों के बीच यह पहली तकरार नहीं थी। अप्रैल माह में कांग्रेसजनों को एकजुट करने उज्जैन पहुंचे दिग्विजय सिंह ने सिंधिया पर तंज कसते हुए कहा था कि ‘‘हे महाकाल, कांग्रेस में कोई ज्योतिरादित्य सिंधिया पैदा न हो।‘‘ उन्होंने यहां तक कहा था कि जब कमलनाथ की सरकार को गिराया गया उस समय महाराजा भाजपा के हाथों बिक गये जबकि अनुसूचित जाति, जनजाति वर्ग के विधायकों को भाजपा ने 25 से 50 करोड़ रुपये तक का आफर दिया लेकिन उन्होंने कांग्रेस को धोखा नहीं दिया। इसके बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भी तीखा पलटवार किया और ट्वीटर पर जवाब देते हुए लिखा कि ‘‘हेे प्रभु महाकाल कृपया दिग्विजय सिंह जी जैसे देश विरोधी और मध्यप्रदेश के बंटाढार भारत में पैदा न हों।‘‘
एक तरफ तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा नये संसद भवन का उद्घाटन 20 विपक्षी दलों के बहिष्कार के बीच हो गया है तो इस उद्घाटन के पूर्व भाजपा विधायक नारायण त्रिपाठी ने पत्र लिखकर प्रधानमंत्री से अनुरोध किया कि भगवान राम की चरण पादुका यानी खड़ाऊं नये संसद भवन में स्थापित की जायें। उनका तर्क है कि भारतीय संस्कृति व इतिहास में भगवान राम की खड़ाऊं से बेहतर सत्ता हस्तांतरण का प्रतीक और कुछ नहीं हो सकता। इसलिए रामराज्य की स्थापना के लिए भगवान राम की खड़ाऊं को नये संसद भवन में स्थापित किया जाए। उनका कहना था कि बाबा साहब भीमराव आम्बेडकर, महात्मा गांधी से लेकर भारत रत्न अटलबिहारी वाजपेयी जी ने देश में रामराज्य की परिकल्पना साकार करने का स्वप्न देखा था। यदि ऐसा किया जाना संभव हो तो यह पारदर्शी ,समदर्शी और निष्पक्ष रामराज्य की सनातनधर्मी विचारधारा का वास्तविक सम्मान होगा और जिन विकृत मानसिकता के नेताओं ने खड़ाऊं सत्ता को नकारात्मक और कहीं और से संचालित होने वाली मान रखा है उनको भी सबक मिल सकेगा। इस प्रकार त्रिपाठी ने बिन मांगे ही सलाह दे डाली है। क्योंकि कुछ राजनेता अपने आपको सर्वज्ञ व सर्वज्ञानी समझते हैं और बिन मांगे सलाह देने का कोई अवसर हाथ से नहीं जाने देते हैं ।

लेखक सुबह सवेरे के प्रबंध संपादक हैं
-सम्पर्क: 9425010804, 7999673990

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