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मंदसौर में अफीम की खेती की लागत बढ़ी लेकिन किसानों को दाम मिल रहे पुराने

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मंदसौर। मंदसौर संसदीय क्षेत्र में अफीम के पट्टे, औसत और उसके दाम को लेकर काफी हद तक चुनाव भी प्रभावित होते रहे हैं। इसका असर यह होता हैं कि लोकसभा के चुनावी घोषणा पत्र में अफीम की सरकारी खरीद में दाम 10 हजार रुपये किलो तक कराने का वादा किया जाता हैं। पर 10 साल से भी ज्यादा समय हो गया हैं दाम में एक रुपये की बढ़ोतरी नहीं हुई हैं। जबकि हर साल अफीम किसानों को राजनीतिक दल कुछ न कुछ लालीपाप देते ही रहते हैं।

मंदसौर-नीमच जिले में काश्तकारों के नाम पर राजनीति

पांच साल पहले सांसद सुधीर गुप्ता ने गांवों में किसानों से कहा था कि अफीम खरीदी के दाम न्यूनतम 5 हजार रुपए किलो तक हो गए हैं। उस समय किसानों ने गांव-गांव में स्वागत कर मालाएं भी पहनाई थी पर अभी भी किसानों न्यूनतम 850 रुपये से अधिकतम 3500 रुपये किलो तक के ही दाम तय हैं। हालांकि किसानों को औसत 1100 से 1800 रुपये किलो का ही भुगतान होता हैं। संसदीय क्षेत्र में आने वाले मंदसौर-नीमच जिलों में अफीम काश्तकारों के नाम पर खूब राजनीति होती है। केंद्र के सत्ताधारी दल के जनप्रतिनिधि पट्टे के रकबे और अफीम के दाम को लेकर किसानों के सामने अच्छे-खासे दावे भी करते हैं। ऐसा ही मामला लंबे समय से सरकार द्वारा खरीदी जा रही अफीम के मूल्य से जुड़ा हुआ है।

किसानों को 1100-1200 रुपये प्रति किलो मिल रहे औसत दाम

लंबे समय तक क्षेत्र से सांसद रहे स्व. डॉ. लक्ष्मीनारायण पांडेय, पूर्व सांसद मीनाक्षी नटराजन भी समय-समय पर अफीम नीति में परिवर्तन कराने के साथ ही दाम बढ़ाने के भी वादे करते रहे पर दाम वही के वहीं रहे। वर्तमान सांसद सुधीर गुप्ता इन सबसे आगे निकल गए। जनवरी-फरवरी 2017 में बही पार्श्वनाथ फंटे पर अफीम किसानों के धरने पर जाकर घोषणा की थी कि अब सरकार अफीम के दाम 5 हजार रुपये प्रतिकिलो देगी। इससे किसान भी खुश हुए और सांसद का कई गांवों में स्वागत कर साफे भी बांधे। हालांकि उसके बाद छह साल हो गए हैं। हर साल अफीम की तुलाई हो रही है पर केंद्र सरकार ने न्यूनतम 850 रुपये से अधिकतम 3500 रुपये प्रतिकिलो के दाम ही तय कर रखे हैं। हालांकि किसानों को औसत दाम 1100-1200 रुपये प्रतिकिलो ही मिल रहे हैं।

गांवों में पट्टाधारी किसान का अलग ही सम्मान

अंग्रेजों के शासनकाल में मंदसौर संसदीय क्षेत्र और इससे सटे राजस्थान के चित्तौड़, कोटा, प्रतापगढ़ व झालावाड़ में अफीम की खेती शुरू की गई थी। मंदसौर जिले की समशीतोष्णत जलवायु इसके अनुकूल होने से सर्वाधिक 20 हजार से अधिक पट्टे इसी जिले में हैं। गांवों में अफीम पट्टाधारी किसान को अलग ही सम्मान मिलता हैं इसलिए वह कड़ाके की सर्दी में रात में भी खेतों में रखवाली करते हैं। डोडे में चीरा लगाने से पहले मां कालिका की पूजा करते हैं। जेब से रुपये लगाकर भी अफीम की खेती करता हैं। इधर बाजार में अफीम के सह उत्पाद पोस्तादाना के भाव 2000 रुपये किलो तक हो गए हैं पर सरकार ने अफीम के दाम अभी तक नहीं बढ़ाए हैं।

जब पट्टे मार्फीन के आधार पर तो दाम अफीम पर क्यों

किसान संतोष पाटीदार बालागुड़ा, पुष्कर पाटीदार, रामेश्वर शर्मा, बद्रीलाल धनगर, राहुल पाटीदार दलौदा रेल, शांतिलाल पाटीदार धमनार, राधेश्याम पाटीदार दलौदा रेल, अनिल शर्मा जवासिया, राजेश शर्मा जवासिया, राजेश पाटीदार ने बताया कि विभाग द्वारा मार्फीन के प्रश को आधार मानकर पट्टे दिये जा रहे हैं जबकि किसानों को मूल्य देते समय अफीम की गाढ़ता को मानक आधार मान रहे हैं। जब मार्फीन का आधार मानकर लाइसेंस दिये जा रहे हैं तो किसानों को उपज का मूल्य भी इसी आधार पर दिया जाना चाहिये। उच्च क्वालिटी की अफीम के भाव 3500 रुपये आज तक किसी किसान को नहीं दिए गए हैं। यह केवल दिखावा मात्र है। किसानों को उच्च क्वालिटी की अफीम के 1460 रुपये से लगाकर 1800 रुपये तक का भुगतान किया जा रहा हैं। इस भाव से अफीम लेकर किसानों को ठगा जाता है। अफीम नीति निर्धारण में राजनीति को दूर रखकर किसानों उपस्थिति सुनिश्चित की जाये। सहित बड़ी संख्या में किसान उपस्थित रहे।

10 हजार रुपये किलो मिलना चाहिए

ग्राम दौरवाड़ा के खूबचंद शर्मा ने बताया कि अफीम फसल को बच्चों की तरह पालते हैं लागत अधिक लगती है। हंकाई, जुताई, बंधाई, बीज, खाद दवाइयां और मजदूरी कुल मिलाकर 10 आरी में अब 80 से 90 हजार रुपये तक खर्च आता है। लागत के आधे भाव भी नहीं मिलने से किसान परेशान और दुखी है। अफीम के भाव न्यूनतम 10 हजार रुपये प्रतिकिलो से प्रारंभ किए जाए ताकि किसानों को उसकी लागत मूल्य का भाव मिल सके।

निशुल्क बीमा एवं बोनस का लाभ मिले

यह केंद्र सरकार की फसल है। जिस प्रकार केंद्रीय कर्मचारियों को प्रतिवर्ष बोनस और महंगाई भत्ता मिलता है उसी प्रकार अफीम काश्तकार को फसल का निशुल्क बीमा एवं बोनस का लाभ मिलना चाहिए। जो काश्तकार फसल की अच्छी उपज देता है उसका राष्ट्रीय स्तर पर सम्मान होना चाहिए। आज भाव सही और नीति स्पष्ट नहीं होने से किसान परेशान और दुखी हैं। – योगेंद्र जोशी, आकोदड़ा

अफीम के खेत में 15-20 दिन की लुणी चीरनी का खर्च 30 हजार रुपये होता है। खाद-बीज, हंकाई, जुताई, निदाई-गुढ़ाई वह सभी अलग हैं। विभाग किसानों से 870 रुपये किलो की न्यूनतम दर पर खरीदता है। इससे तो लागत भी नहीं निकलती है। – कांतिलाल पाटीदार, आकोदड़ा

अफीम किसानों की समस्याओं को दूर करने के लिए काफी कुछ कार्य किया है। कई लोगों के पट्टे वापस भी कराए हैं। अफीम के दाम बढ़ाने के लिए वित्त मंत्रालय के टेरिफ कमीशन तक मांग की जा चुकी है। जल्द ही इसके भी अच्छे परिणाम मिलेंगे। – सुधीर गुप्ता, सांसद

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