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थाई अमरूद की खेती दे रही मुनाफा

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बसनोहा (उन्नाव), उत्तर प्रदेश। चार साल पहले तक 58 वर्षीय रामकुमारी कुशवाहा अपने पति को साल भर खेती में मेहनत करते देखती, लेकिन फिर भी उनकी कमाई न होने पर वो परेशान रहती। रामकुमारी उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के बसनोहा गाँव की रहने वाली हैं, वो गाँव कनेक्शन से कहती हैं, “2018 में मैंने अपने गाँव में महिलाओं को संगठित करने और इस तरह से खेती करने का फैसला किया जो लाभदायक हो और जिसमें कम मेहनत की भी लगे। कुल 10 महिलाएं आगे आईं और हमने एक स्वयं सहायता समूह शुरु किया, जिसका नाम हमने चंद्रिका मां समूह रखा है।” एसएचजी की 10 महिलाओं ने उत्तर प्रदेश राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन [एसआरएलएम] के जिला मिशन प्रबंधक से सलाह लेने के बाद सितंबर 2021 में थाई अमरूद की खेती करने का फैसला किया और लगभग एक साल बाद, उनके प्रयासों का फल मिला और महिलाएं बिक्री से पैसा कमाना शुरू कर दिया है। “यह पहला स्वयं सहायता समूह है जो जिले में थाई अमरूद की खेती कर रहा है। हम ऐसा करने के लिए और अधिक महिला एसएचजी को जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं, “एसआरएलएम के उन्नाव जिला मिशन प्रबंधक अशोक कुमार ने गाँव कनेक्शन को बताया। “इन महिलाओं को कुशल तरीके से अपने उत्पादन की मार्केटिंग करना भी सीखाया गया। वे जानती हैं कि अमरूद से जैम, जेली और अन्य पैकेज योग्य उत्पाद कैसे बनाए जाते हैं। कुमार ने महिलाओं को थाई अमरूद की खेती करने की सलाह दी है, क्योंकि उनके अनुसार फलों की खेती सबसे बढ़िया मुनाफा दे सकती हैं, क्योंकि सभी महिलाएं खेती बाड़ी से जुड़ी हैं। आज, रामकुमारी के पति के कुल तीन बीघा [एक हेक्टेयर का लगभग चौथाई] जममीन में से एक बीघा थाई अमरूद की खेती की गई है – थाई अमरूद उष्णकटिबंधीय फल की एक किस्म जो हाल ही में शहरी बाजारों में लोकप्रिय हुई है। ये फल न केवल अमरूद की देशी किस्मों की तुलना में आकार में बड़े होते हैं, बल्कि बाजार मूल्य से लगभग तीन गुना अधिक कीमत भी प्राप्त करते हैं।

स्थानीय स्तर पर उगाए जाने वाले अमरूद से ज्यादा में बिक रहे हैं। स्थानीय अमरूद 10 रुपये से 15 रुपये प्रति किलोग्राम जबकि थाई अमरूद 40 रुपये से 45 रुपये प्रति किलोग्राम के थोक भाव पर बिक रहा है। रामकुमारी कुशवाहा गाँव कनेक्शन को बताती हैं कि थाई अमरूद के एक पौधे की कीमत 280 रुपये प्रति पौधा है और अकेले रोपण पर कुल 80 हजार रुपये खर्च किए गए हैं। साथ ही, पौधों की सिंचाई में 40,000 रुपये का खर्च आता है, जो कुशवाहा के अनुसार किफायती है। “हमने टपक तकनीक [ड्रिप इरिगेशन] से पौधों की सिंचाई की। यह न केवल पानी बचाता है इससे हर एक पौधे में पानी पहुंचता है, “राजकुमारी ने आगे कहा। एसएचजी के 60 वर्षीय सदस्य भगवान देई ने गर्व से गाँव कनेक्शन को बताया कि थाई अमरूद की खेती में ‘रासायनिक खाद’ का इस्तेमाल नहीं किया जाता था। “मैंने, नौ महिलाओं के साथ, एक बीघे ज़मीन पर काम किया है। सितंबर 2021 में बरसात के बाद हमने पौधे लगाए थे। शुरू में हमने एक दूसरे से आठ फीट की दूरी पर गड्ढा खोदा और उन गड्ढों में गाय का गोबर डाला। यूरिया या रसायनों का कोई उपयोग नहीं किया गया था, ”देई ने कहा। “सरकार ने हमें मध्य प्रदेश से पौधे दिलवाए। ये पेड़ अभी भी बहुत ज्यादा बड़े नहीं हुए हैं और अभी पूरी तरह से विकसित नहीं हुए हैं लेकिन पिछले दो महीनों से इनमें फल देना शुरू हो गया है। एक अमरूद का पेड़ लगभग 20 वर्षों तक फल देता है और एक पेड़ एक ही मौसम में 30 किलोग्राम से 40 किलोग्राम फल पैदा करता है और यह साल में दो बार फल देता है। किसान के अनुसार, थाई अमरूद की एक एकड़ भूमि पर खेती की जाती है, जिससे एक फसल के मौसम में 100,000 रुपये तक और एक साल में 200,000 रुपये तक की कमाई की जा सकती है, क्योंकि पेड़ दो बार फल देता है। खेती करना आसान और बाजार में मिलता है बढ़िया दाम उन्नाव के धौरा प्रखंड के कृषि विज्ञान केंद्र में वैज्ञानिक के तौर पर काम करने वाले बागवानी विशेषज्ञ धीरज तिवारी गाँव कनेक्शन को बताते हैं कि थाई अमरूद की खेती कई तरह की मिट्टी में की जा सकती है। “यह एक बहुत ही लाभदायक फसल है। किसान हाल के वर्षों में थाई अमरूद की खेती में काफी रुचि ले रहे हैं। इसके अलावा, यह प्रधान फसलों की तरह इसमें बहुत ज्यादा मेहनत नहीं है और इसके लिए बहुत कम लागत की जरूरत होती है। इन विशेषताओं के साथ, आने वाले वर्षों में इसका रकबा कई गुना बढ़ने के लिए तैयार है, ”तिवारी ने कहा। इस बीच, स्वयं सहायता समूह के सदस्य भगवान देई भी धीरज तिवारी की बातों से सहमत हैं। “हम धान और गेहूं जैसी फसलों की खेती में कड़ी मेहनत करते-करते थक गए हैं। किसान अब थाई अमरूद जैसी फसलों के महत्व को महसूस कर रहे हैं।”

पारंपरिक सब्जियों का सही दाम न मिलने से परेशान उत्तर प्रदेश के उन्नाव में महिलाओं के एक स्वयं सहायता समूह ने थाई अमरूद की खेती शुरू की है। विदेशी फल स्थानीय रूप से उगाए जाने वाले अमरूद की कीमत से लगभग तीन गुना अधिक दाम में बेचा जाता है और ग्रामीण महिलाओं को बेहतर कमाई का मौका मिल गया है।

देश में बढ़ रही फलों की खेती

कृषि मंत्रालय के दूसरे अग्रिम अनुमान के मुताबिक देश में फसलों का उत्पादन वर्ष 2019-20 में पैदा हुए 102.08 मिलियन टन की तुलना में साल 2020-21 में 102.76 मिलियन टन होने का अनुमान है। बागवानी फसलों को लेकर पिछले दिनों केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा था कि सरकार की किसान हितैषी नीतियों, किसानों के अथक परिश्रम व वैज्ञानिकों के शोध के फलस्वरूप वर्ष 2020-21 में बागवानी उत्पादन 329.86 मिलियन टन (अब तक का सबसे अधिक) होने का अनुमान है, जिसमें 2019-20 की तुलना में करीब 9.39 मिलियन टन (2.93%) की वृद्धि अनुमानित है। मध्य प्रदेश में करीब 398.62 हजार एकड़ में फलों की खेती हो रही है।

अगर सिर्फ अमरुद की खेती की बात करें तो साल 2018-19 में पूरे देश में 276 हजार हेक्टेयर अमरुद की खेती हुई थी, जिससे 4257 हजार मीट्रिक टन उत्पादन हुआ था, वहीं 2020-21 के दूसरे अग्रिम अनुमान के मुताबिक देशभर में 304 हजार हेक्टेयर में अमरुद की खेती हुई। जिसमें से 4433 हजार मीट्रिक टन उत्पादन अनुमानित है।

थाई अमरूद की बीएनआर किस्म

वे बताते हैं, ” थाई अमरूद की बीएनआर-1 किस्म का फल आकार में बढ़ा, चमकदार होता जिसकी न्यूट्रीएंट वैल्यू (पोषण गुणवत्ता) अच्छी होती है। पौधे लगाने के 18 महीनों बाद ही फल आने लग जाते हैं। यदि बगीचे का सही तरीके से रखरखाव किया जाए तो लगभग 20-25 सालों तक फल लिए जा सकते हैं।”

बग्गड़ के मुताबिक नींबू समेत दूसरे बागवानी पौधों की तुलना में इसके पौधे भी अधिक लगते हैं और उत्पादन भी ज्यादा होता है। एक एकड़ में तकरीबन 800 पौधे लगते हैं। एक बार बगीचा तैयार होने के बाद सब्जियों या अन्य फसलों की तुलना में लागत कम आती है।’

40 किलो तक उत्पादन

बग्गड़ बताते हैं कि अमरुद की इस किस्म से परिपक्व अवस्था (पेड़ पूरी तरह तैयार) होने पर हर पेड़ से करीब 40 किलो तक उत्पादन लिया जा सकता है।

वो कहते हैं, “एक पेड़ से 40 किलो अमरुद तो मिल ही सकते हैं साथ ही फल तुड़ाई के 20 दिनों बाद तक खराब नहीं होता है। इसलिए इसे मंडियों तक ले जाना आसान हो जाता है। मुंबई, दिल्ली, कोलकाता, कोच्ची, बैंगलुरू, इंदौर जैसे शहरों के साथ साथ यूके तक फसल बेचते हूं।”

फल-सब्जियों का बड़ा भाग हर साल खेत से मंडी पहुंचने तक खराब हो जाता है। फल के अच्छे दाम मिलें और वो खराब भी न हो इसलिए बेहतर रखरखाव जरुरी है। बागड़ तुड़ाई के बाद फलों की प्रॉपर पैकेजिंग की जाती है।

वो बताते हैं, “20 किलो ग्राम के बॉक्स तैयार किए जाते हैं। फलों का अच्छा दाम मिले इसके लिए जब डेढ़ महीने का फल हो जाता है तब ”थ्री लेयर” बैगिंग की जाती है। पहले फल को फ्रूट लेयर, फिर पॉलीथिन और अंत में पेपर से ढंका जाता है। इससे धूप, पक्षियों आदि से होने वाला 15 फीसदी नुकसान बच जाता है। वहीं फल तुड़ाई के बाद चमकदार और एक जैसा मिलता है।”

मुनाफे का पूरा गणित समझे

खेती जोखिम भरा काम है लेकिन अगर वैज्ञानिक पद्धितियों और सुझावों के साथ अमरुद की खेती की जाए तो किसानों को इससे अच्छा मुनाफा मिल सकता हैं। दिनेश बताते हैं ” शुरुआत में बगीचा लगाने में प्रति एकड़ डेढ़ से दो लाख रुपये का खर्च आता है। इसके बाद हर साल 15-20 रुपये प्रति किलो की लागत पड़ती है। हर साल लगभग 65 टन का उत्पादन लेते हैं। थोक भाव में 50 से 100 रुपये किलो तक फल बिकता है। इस तरह 30 से 45 लाख रुपये की कुल फसल बिक जाती है। यदि 20 फीसदी लागत कम कर दी जाती है तो 1.2 हेक्टेयर से सालाना 25 से 30 लाख का शुद्ध मुनाफा हो जाता है।” (नोट- फल-सब्जियों की बिक्री, लागत, मुनाफा हर किसान के हिसाब से अलग-अलग हो सकता है। जो जमीन, जलवायु,मार्केट और सूझबूझ पर निर्भर करता है)

थाई अमरूद की तोड़ाई अक्टूबर माह से फलों की तुड़ाई शुरू हो जाती है, जो फरवरी-मार्च तक चलती है। बग्गड़ रासायनिक खाद एवं उर्वरकों का उपयोग न के बराबर करते हैं। अधिक उत्पादन के लिए वर्मी कम्पोस्ट और गोबर खाद का उपयोग करते हैं।

थाई अमरूद की खासियतें

विटामिन सी, फाइबर और फोलिक एसिड से जैसे तत्वों से भरपूर थाई अमरूद औषधीय गुणों से भरपूर होता है। इसका सेवन डायबिटीज मरीजों के लिए अच्छा माना जाता है। वहीं, अमरूद की देशी और अन्य किस्मों की तुलना में यह जल्दी फल देने लगता है। यदि सही रखरखाव किया जाए तो इसमें 18 महीनों में ही फल आने लग जाते हैं।

बागवानी में अच्छी संभावनाएं

खेती में नवाचार के लिए बग्गड़ को धार स्थित कृषि विज्ञान केंद्र द्वारा सम्मानित किया जा चुका है। केवीके धार के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. जीएस गाठिए के मुताबिक उनका संस्थान जिले के किसानों को उच्च तकनीक उद्यानिकी के साथ-साथ बीज उपचार, पौध प्रबंधन, पोषक तत्व प्रबंधन, खरपतवार प्रबंधन एवं जल संरक्षण की वैज्ञानिक तकनीकों से समय समय देता रहता है, जिससे किसानों का फायदा मिला है। बागड़ की बागवानी से देखकर कई दूसरे किसान भी प्रेरित हो रहे हैं।

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