ग्राम बांसिया में वन निगम कर्मियों ने तोड़े आदिवासियों की झोपड़े, कलेक्टर को आवेदन देकर लगाई मदद की गुहार
-पानी गिरते में तोड़े आदिवासीयों के आशियाने
-खुले आसमान के नीचे रहने को मजबूर आदिवासीयों के परिवार
सलामतपुर रायसेन से अदनान खान की रिपोर्ट
मध्यप्रदेश सरकार एक तरफ तो आदिवासी परिवारों के लिए विभिन्न प्रकार की योजनाएं बना रही है कि उनको मुख्य धारा से जोड़ा जाए। वहीं दूसरी तरफ बारिश के मौसम में इन्ही आदिवासियों के घर तोड़े जा रहे हैं। ऐसा ही एक मामला रायसेन जिले के वन परीक्षेत्र के पश्चिम रेंज के अंतर्गत मुश्काबाद बीट में आने वाले ग्राम बांसिया में देखने को मिला है जहां पर ग्रामीण आदिवासीयों के झोपड़े वन विकास निगम ने तोड़ दिए हैं। जबकि ये परिवार कई वर्षों से इस भूमि पर टपरे बनाकर रह रहे थे। जिसमें कोई 20 साल से तो कोई 10 साल से तो कोई 7 साल से यहां रह रहे हैं। ऐसे में ग्रामीणों का आरोप है कि बगैर सूचना के वन निगम कर्मियों द्वारा आदिवासियों के टपरों में तोड़फोड़ कर दी हैं। वहीं आदिवासी ग्रामीणों ने आरोप लगाते हुए बताया कि वन निगम के कर्मचारियों ने उनके साथ मारपीट भी की है। जिसकी वजह से उनके शरीर मे कई जगह चोटें आई हैं इसी समस्या को लेकर ग्राम बांसिया के आदिवासी ग्रामीण रायसेन कलेक्ट्रेट कार्यालय भी पहुंचे। जहां पर अपर कलेक्टर को आवेदन देते हुए बताया कि ऐसे पानी गिरते में वन निगम के कर्मचारियों ने उनके घर तोड़ दिए हैं। अब सर छुपाने कहां जाएं छोटे-छोटे बच्चों को लेकर खुले आसमान में पड़े हुए हैं काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। उन्होंने शासन प्रशासन से मदद की गुहार लगाई है।
स्थानीय विधायक व मंत्री ने भी वन विभाग को पत्र लिखकर आदिवासियों के टपरे तोड़ने से किया था मना–
सांची विधानसभा क्षेत्र से विधायक व मध्यप्रदेश शासन में स्वास्थ्य मंत्री डॉ प्रभुराम चौधरी उस समय कांग्रेस की सरकार में स्कूल शिक्षा मंत्री थे ने भी वन विभाग भोपाल संभाग को पत्र क्रमांक 11803 दिनांक 25 अक्टूबर 19 को लिखकर आदिवासीयों के टपरे तोड़ने से मना किया था। उन्होंने पत्र में लिखा कि सुरेश वंशकार, देवीराम अहिरवार, नारायण सिंह आदिवासी, केराबाई आदिवासी, सबल सिंह आदिवासी, पप्पू सिंह आदिवासी, रशीद खाँ, इमरत अहिरवार एवं गोपी अहिरवार एवं अन्य आदिवासी लोग पी-11 में वर्षों से भूमि पर काबिज है। भारतीय वन अधिनियम 1927 की धारा 5 से 19 तक की जांच लंबित है। इसके बाद भी वन विभाग ने पीएफ-11 को सौपने का प्रस्ताव वन विकास निगम को किया है। जिसका ग्राम सभा मुश्काबाद ग्राम पंचायत अम्बाड़ी ने भी इस भूमि को वन विकास निगम को सौंपने का विरोध प्रस्ताव दिनांक 26.01.18 को पारित किया गया था। जिसमें ग्राम सभा की अनुमति, वन व्यवस्थापन अधिकारी की अनुमति व सहमति के बिना किया गया है। जिससे वर्षो से काबिज अनुसूचित जाति एवं जनजाति एवं अन्य लोगों को वन विकास निगम एवं वन विभाग द्वारा परेशान किया जा रहा है। एवं झूठे प्रकरण दर्ज किये जा रहे है।
इनका कहना है-
वन विभाग द्वारा 2017 में यह भूमि ट्रांसफर कर वन विकास निगम को दी गई थी। कि वह इस स्थान को पौधरोपण कर हरा भरा करके 10 या 20 वर्षों में वापस करेंगे। यहां पर जो भी अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई की गई है। वो निगम द्वारा ही कि गई होगी। इसकी जानकारी मुझे नही है।
सेवाराम अहिरवार, डिप्टी रेंजर पश्चिम रेंज
वन विकास निगम ने आदिवासियों के घरों को बारिश के मौसम में तोड़ दिया है। जबकि वह लोग यहां पर 25 वर्षों से रह रहे हैं। उनके घरों में रखा पूरा राशन जिसमें आटा, गेंहू सहित अन्य खाद्य साम्रगी खराब हो गई है।
चरण सिंह, जनपद सदस्य
बिना कोई सूचना दिए हमारे टपरे तोड़ दिए। लगभग 10 आदिवासियों व हरिजनों के टपरे तोड़े गए हैं। हमारा पूरा परिवार बारिश के मौसम में खुले आसमान के नीचे रहने को मजबूर है। शासन प्रशासन कोई भी हमारी मदद नही कर रहा है।
कमल सिंह आदिवासी, स्थानीय ग्रामीण
वन निगम कर्मचारियों ने घर तोड़ने के साथ ही हमारे साथ मारपीट तक करी है। जिसकी वजह से शरीर में कई जगह चोटें आईं हैं। रायसेन कलेक्टर से मदद की गुहार लगाने आए हैं।
वीरभान सिंह, स्थानीय ग्रामीण