–श्री लक्ष्मी नारायण मंदिर में चल रही श्रीमद् भागवत कथा का विश्राम
अदनान खान विदिशा
श्री लक्ष्मी नारायण मंदिर में चल रही श्रीमद्भागवत कथा में राष्ट्रीय कथावाचक गौवतस पं अंकितकृष्ण तेनगुरिया वटुकजी महाराज ने कहा कि सुदामा से परमात्मा ने मित्रता का धर्म निभाया। राजा के मित्र राजा होते हैं रंक नहीं, पर परमात्मा ने कहा कि मेरे भक्त जिसके पास प्रेम धन है वह निर्धन नहीं हो सकता। कृष्ण और सुदामा दो मित्र का मिलन ही नहीं जीव व ईश्वर तथा भक्त और भगवान का मिलन था। आज दोस्ती विश्वास पूर्ण तरीके से निभाई जा रही है इसलिए सच्चे मित्र वही होते हैं जो संकट के समय काम आए, जो धन को देखकर दोस्ती करता है। वह रिश्ते कभी सच्चे नहीं होते, इसलिए धनवान से भले ही आप दूर रहें लेकिन गरीब को अपना मित्र समझे महाराज श्री बटुक जी ने कहा कि द्वारका के द्वारपाल और वहां की प्रजा भी इस दोस्ती को देखकर अचंभित रह गए थे। आज मनुष्य को ऐसा ही आदर्श प्रस्तुत करना चाहिए। महाराज श्री बटुक जी ने कहा कि कृष्ण और सुदामा जैसी मित्रता आज कहां हैं। यही कारण है कि आज भी सच्ची मित्रता के लिए कृष्ण-सुदामा की मित्रता का उदाहरण दिया जाता है। द्वारपाल के मुख से पूछत दीनदयाल के धाम, बतावत आपन नाम सुदामा, सुनते ही द्वारिकाधीश नंगे पांव मित्र की अगवानी करने पहुंच गए। लोग समझ नहीं पाए कि आखिर सुदामा में क्या खासियत है कि भगवान खुद ही उनके स्वागत में दौड़ पड़े। श्रीकृष्ण ने स्वयं ¨सहासन पर बैठाकर सुदामा के पांव पखारे। कृष्ण-सुदामा चरित्र प्रसंग पर श्रद्धालु भाव-विभोर हो उठे।
उन्होंने आगे कहा कि श्रद्धा के बिना भक्ति नहीं होती तथा सच्चे हृदय में ही भागवत टिकती है। भगवान के चरित्रों का स्मरण, श्रवण करके उनके गुण, यश का कीर्तन, अर्चन, प्रणाम करना, अपने को भगवान का दास समझना, उनको सखा मानना तथा भगवान के चरणों में सर्वश्व समर्पण करके अपने अन्त:करण में प्रेमपूर्वक अनुसंधान करना ही भक्ति है पंडित अंकित कृष्ण तेंगुरिया ने कहा कि श्रीकृष्ण को सत्य के नाम से पुकारा गया। जहां सत्य हो वहीं भगवान का जन्म होता है। भगवान के गुणगान श्रवण करने से तृष्णा समाप्त हो जाती है। परमात्मा जिज्ञासा का विषय है, परीक्षा का नहीं। इसलिए हमें सच्चे मन से भगवान की भक्ति में लगे रहना चाहिए, ईश्वर जरूर हम पर कृपा करते हैं कथा के यजमान और मंदिर समिति के सदस्यों ने यज्ञ में अपनी पूर्णाहूति दी और अंत में कथा विश्राम दिवस के अवसर पर सभी श्रद्धालुओं को महा प्रसादी का वितरण भी किया गया। महाराज श्री बटुक जी ने कथा आयोजन समिति श्रीलक्ष्मी नारायण मंदिर की सभी श्रद्धालुओं और समिति सदस्यों का आभार जताया । इस कथा में शहरी नहीं आसपास के श्रद्धालुओं ने भी बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया और धर्म का लाभ लिया।