विदिशा से अदनान खान की रिपोर्ट
लक्ष्मीनारायण जगदीश धाम मंदिर में चल रही श्रीमद्भागवत कथा महोत्सव के चतुर्थ दिवस गौवत्स पं.अंकितकृष्ण तेनगुरिया’वटुकजी’ महाराज ने कहा कि भगवान अपने भक्तों के भाव और प्रेम से बंधे है।उनसे भक्तों की दुविधा कभी देखी ही नहीं जाती। वे अपने भक्तों की कामना की पूर्ति तो करते ही है साथ ही उनके साथ अपने स्नेह बंधन निभाने खुद इस धरा पर आते हैं।मंच संचालक पं.सतीश व्यास एवं पं.मनमोहन शर्मा (मुखियाजी) ने बताया कि कथा के दौरान वामन अवतार,समुंद्र मंथन, श्रीराम जन्मोत्सव और भगवान श्री कृष्ण के जन्मोत्सव का सुंदर और भाव पूर्ण वर्णन किया।
महाराजश्री ने कहा कि भगवान अपने भक्तों के साथ सदा हर पल खड़े रहते हैं, वे भक्तों के हाथों से प्रेम और भाव के साथ दी गई वस्तु उसी तरह ग्रहण करते हैं, जिस तरह से उन्होंने द्रौपदी का पत्र और गजेंद्र का पुष्प ग्रहण किया। भगवान ने काल रुपी मकर से भक्त गजराज की रक्षा की तो द्रौपदी के पुकार पर उसका संकट मिटाने स्वयं दौड़े चले आये।यह सारी कथाएं ये प्रमाणित करती हैं कि भक्तों के भाव से सदा बंधे रहनेवाले भगवान भक्तों के साथ अपना स्नेह निभाने खुद आते हैं। भगवान सिर्फ यह कभी नहीं चाहते कि उसके भक्त के पास अहंकार रहे., भगवान अपने भक्त से ये भी कहते हैं कि मुझे, वो वस्तु अर्पित कर, जो मैंने तुझे कभी नहीं दी,ठाकुरजी कहते हैं- ऐसी कोई वस्तु जो मैंने तूझे नहीं दी, वह अहंकार है। यह मैंने तुझे नहीं दिया,बल्कि तूने खुद इसे अपने भीतर तैयार किया है।महाराजजी ने कहा भगवान को अगर पाना है तो मन में इस भाव को बसा लेना होगा कि मेरा सब कुछ मेरे भगवान का है। मेरे पास अपना कुछ भी नहीं जो कुछ भी है सो मेरे ठाकुरजी का ही है। गजेंद्र मोक्ष पाठ की महिमा बताते हुए महाराजश्री ने कहा कि जो भी यह पाठ करता है, उस पर ठाकुरजी की कृपा सदा बनी रहती है। संकट उस पर सपने में भी नहीं आते।वटुकजी महाराज ने कहा कि माता-पिता और गुरु के चरण पकड़ लो,किसी और की चरण वंदना की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी।महाराजजी ने कहा कि जीवन में सब कुछ जरूरी है पर एक मर्यादा के अंदर सभी हो तो तभी तक सब ठीक है।
महाराजजी ने समुंद्र मंथन से जुड़ी कई रोचक कथाएं सुनाईं।उन्होंने कहा कि अहंकार बुद्धि और ज्ञान का हरण कर लेता है,ठीक उसी प्रकार जैसे अहंकार से ग्रसित दानवों ने समुंद्र मंथन के समय बासुकी नाग के मुख को पकड़ना श्रेयस्कर समझा और भगवान के मोहिनी रूप पर मंत्र मुग्ध हो उठे।
भगवान के वामन अवतार को तीन कदम आश्रय स्थली दान में देने के बाद राजा बलि को पाताल लोक की शरण लेनी पड़ी। इसलिए कुछ भी करो,सोच समझ कर करो,जो कुछ भी तोल-मोल कर बोलो,मीठा और मधुर बोलो। इस दौरान भगवान बालकृष्ण प्रभु का प्राकट्योत्सव उत्साह एवं उमंग के साथ मनाया गया, नंद घर आनंद भयो जय कन्हैयालाल की उद्घोष के संपूर्ण परिसर गूंज उठा, भक्तों ने भजनों की धुन पर थिरकते हुए श्री कृष्ण जन्मोत्सव मनाया,इस आयोजन समिति से कमल सिलाकारी, के.एन.कनकने, विष्णु नामदेव, वी.के.चौबे, आर.पी.गोयल,राजेश यादव, जीतेन्द्र यादव आदि उपस्थित रहे।कथा आज बालकृष्ण प्रभु की मनमोहक बाल लीलाओं के साथ श्री गोवर्धननाथ प्रभु को छप्पन भोग लगाये जायेंगे, आयोजन समिति ने शेष दिनों में सभी श्रद्धालुओं से अधिक से अधिक संख्या में सम्मिलित होने की अपील की।