राजस्थान के उदयपुर में एक हिंदू टेलर की दो मुस्लिम कट्टरपंथियों ने जिस तरह दिन दहाड़े हत्या की और खुद उसका वीडियो वायरल किया, वो सिर्फ और सिर्फ शैतानियत है। इसे किसी भी कोण से जायज नहीं ठहराया जा सकता। यह केवल साम्प्रदायिक विद्वेष के कारण हुई हत्या का या महज आवेश में किए गए कत्ल का मामला नहीं है। यह एक व्यापक षडयंत्र के तहत एक निरपराध व्यक्ति का सरेआम मर्डर है और मनुष्य के प्रति मनुष्य के विश्वास की हत्या है।
जिस तरह भाजपा की पूर्व प्रवक्ता नूपुर शर्मा के पैगंबर मोहम्मद साहब को लेकर की गई विवादित टिप्पणी की वैश्विक प्रतिक्रिया हुई थी, उसी तरह इस पैशाचिक कत्ल की भी दुनिया भर में निंदा हो रही है। सरे बाजार मार दिए गए टेलर कन्हैयालाल का दोष सिर्फ इतना था कि उसने सोशल मीडिया में नूपुर शर्मा के बयान के समर्थन में कोई पोस्ट डाली थी। उदयपुर जैसे शांत शहर में जिस तरह इस घटना को अंजाम दिया गया, उसे निर्दयता से प्रचारित और प्रसारित किया गया, उससे साफ है कि यह सब कुछ भावावेश में किया गया काम नहीं है बल्कि देश में बढ़ रहे साम्प्रदायिक विद्वेष को और गहरा तथा जहरीला बनाने की अंतरराष्ट्रीय साजिश है।
उदयपुर की इस जघन्य हत्या से न सिर्फ पूरा देश स्तब्ध है बल्कि गुस्से में भी है। धर्म की आड़ में अगर इस तरह सरेआम हत्याएं होने लगेंगी तो देश किस गर्त में जा गिरेगा। हालांकि इससे पहले माॅब लिंचिंग, पत्थतरबाजी या एनकाउंटर के रूप में भी ऐसी घटनाएं होती रही हैं। लेकिन झूठ बोलकर किसी की जान ले लेने का यह बेहद निंदनीय ट्रेंड और अत्यंत खतरनाक ट्रेंड है। इसका दुष्परिणाम पूरे समाज को भुगतना पड़ेगा। उदयपुर की घटना में भी मुख्य आरोपियों मोहम्मद रियाज अत्तारी और गौस मोहम्मद ने टेलर कन्हैयालाल के दुकान में यह कहकर प्रवेश किया िक वो कपड़े सिलवाना चाहते हैं। टेलर ने कहा कि क्यों नहीं? कन्हैयालाल का ऐसा कहना स्वाभाविक था, क्योंकि इस देश में कम से कम काम-धंधा करने वाले हिंदू-मुस्लिम का भेद नहीं करते हैं। उनके लिए अमूमन ग्राहक भगवान की तरह ही होता है। क्योंकि यह धार्मिक आस्था से ज्यादा आजीविका से जुड़ा मामला है। लेकिन इस मामले में दोनो आरोपी झांसा देकर भीतर घुसे और कपड़े सिलाने की आड़ में कन्हैयालाल का सर कलम कर िदया। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में साफ हुआ है कि मृतक कन्हैयालाल के शरीर पर कई वार किए गए। निर्दयता की पराकाष्ठा तो यह थी कि दोनो में एक कन्हैयालाल के टुकड़े-टुकड़े करता रहा तो दूसरा इसका बेझिझक वीडियो बनाता रहा। गोया किसी इंसान को नहीं, बकरे को हलाल किया गया हो। ऐसा तो केवल कोई शैतान ही कर सकता है, जो इन दोनो ने कर दिखाया और कर के भाग निकले।
नूपुर शर्मा के समर्थन में सोशल मीडिया पर पोस्ट कन्हैयालाल के बच्चे ने डाली थी। इसका जिक्र 11 जून को धानमंडी पुलिस थाने में की गई रिपोर्ट में भी है। तो फिर आरोपियों ने कन्हैयालाल को इसकी सजा क्यों दी? शायद वो बाप को मार कर बेटे को सबक सिखाना चाहते थे। इसीलिए हत्या के कुछ दिन पहले हत्यारों ने कन्हैयालाल को जान से मारने की धमकी दी थी। इस मामले में उदयपुर पुलिस की लेतलाली भी सामने आ रही है। कन्हैयालाल की शिकायत को पुलिस ने हल्के में लिया ( जैसा कि अमूमन वह लेती है)। बताया जाता है कि एक एएसआई ने दोनो पक्षों के बीच समझौता कराकर मामले की इतिश्री कर दी। लेकिन वो भी षडयंत्र का हिस्सा भर था। समझौते बाद भी कन्हैयालाल के दुकान की रैकी की जाती रही और मौका मिलते ही उसे आम बेरहमी से मार दिया गया। यानी एक और विश्वासघात।
विश्वासघात तो किसी भी धर्म में जायज नहीं है। भले ही वो धर्म की सेवा या अपने आराध्य की इबादत के नाम पर िकया गया हो। क्योंकि वह मनुष्यता के खिलाफ है। मनुष्य से मनुष्य का रिश्ता परस्पर विश्वास पर टिकता है, फलता है, आगे बढ़ता है। नूपुर की टिप्पणी का जवाब प्रति िटप्पणी या आलोचना से तो दिया जा सकता है, लेकिन हिंसा और वो भी धोखेबाजी से नहीं। यह तो सिर्फ शैतानियत है। इस प्रवृत्ति को समय रहते कुचला नहीं गया तो देश में समुदायों के बीच ऐसी खाई पैदा हो जाएगी, जो किसी भी तरीके से भरी नहीं जा सकेगी।
उदयपुर की घटना की सभी ने निंदा की है। हर मुस्लिम इदारे से इसकी भर्त्सना की गई है। सभी ने कहा कि यह इस्लाम नहीं है। हालांकि राजनेताअोंके निंदा बयानों में राजनीतिक कटाक्ष ज्यादा है बजाय जरूरी संजीदगी के। इस घटना को लेकर पूरे देश में गुस्सा है। राजस्थान सरकार के एक मंत्री प्रताप सिंह ने तो आरोपियों को ‘ठोक देने’ की बात की है। यह दिलासा देने की कोशिश भी की जा रही है कि दोषियों को चार दिन में फांसी दी जाएगी, जोकि कानून के राज में न तो संभव है और न ही संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति द्वारा ऐसा कहना उचित है। उधर मृतक कन्हैयालाल के बच्चों ने भी मांग की है कि हत्यारों को फांसी दी जाए या उनका एनकाउंटर हो।
ऐसी स्थिति क्यों बन रही है, इस पर भी विचार होना चाहिए। हत्यारों ने तो खुद अपने निघृण कृत्य का वीडियो इस अंदाज में डाला है मानो उन्होंने कोई महान काम िकया हो। इस घटना के चश्मदीद गवाह मौजूद हैं। इसलिए हत्यारो को फांसी तक पहुंचाना बहुत मुश्किल नहीं होना चाहिए। हालांकि फांसी (अगर हुई तो) देना भी कानून के लंबे गलियारे से गुजर कर ही संभव होगा।
उदयपुर की घटना पर राजनीति भी शुरू हो गई है। अशोक गहलोत की सरकार कटघरे में है और राज्य में विपक्ष में बैठी भाजपा हमलावर है। लेकिन यह मामला राजनीति से कहीं आगे का है। धार्मिक कट्टरता के नाम पर युवाअों में िजस तरह का जहर भरा जा रहा है, उसका है। यही घृणा हिंसक रूप में प्रकट हो रही है। सवाल यह है कि यह कैसे थमे। प्राथमिक जांच में यह सामने आ रहा है कि दोनो आरोपियों में से एक पाकिस्तान जा चुका है और आंतकी ट्रेनिंग भी ले चुका है। हो सकता है कि कन्हैयालाल की हत्या किसी बड़ी भावी साजिश का ट्रेलर हो। अगर ऐसा है तो यह बहुत बड़ी चिंता की बात है। कन्हैयालाल के हत्यारों को कड़ी से कड़ी सजा होनी चाहिए, लेकिन इसके कारण समुदायो के बीच विश्वास का धागा तार-तार नहीं होना चाहिए। ऐसा हुआ आत्मविनाश से कोई भी नहीं बचेगा।
लेखक ‘सुबह सवेरे’ के वरिष्ठ संपादक है।