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बिहार: क्या भाजपा के लिए गेम चेंजर होगा, माता सीता का मंदिर ? -अजय बोकिल

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आलेख
अजय बोकिल

घनघोर जातिवाद के चक्रव्यूह में घिरे बिहार मं सीता माता का भव्य मंदिर बनाने की घोषणा क्या आगामी विधानसभा चुनाव में भाजपा के लिए ‘गेमचेंजर’ साबित होगी? क्या राम मंदिर आंदोलन की तरह सीता मंदिर का मुद्दा भी बिहार में जातीय गोलबंदी को तोड़ने में कामयाब होगा? क्या भाजपा इसे लहर में बदल कर राज्य में अपना वोट बैंक 20 फीसदी से ज्यादा बढ़ा पाने में कामयाब होगी? क्या नीतीश की अगुवाई में फिर एनडीए और प्रकारांतर से भाजपा की सरकार बनेगी? भाजपा के हिंदुत्ववादी एजेंडे के मद्देनजर क्या नीतीश चुनाव बाद भी एनडीए में रहेंगे या फिर पहले ही पाला बदलकर लालू के साथ हो जाएंगे? यह भी कि कल तक खुद को परिवारवाद से ऊपर बताने वाले नीतीश कुमार पिछले दरवाजे से अपने इकलौते बेटे निशांत की ताजपोशी की जो जमावट कर रहे हैं, उसका नतीजा क्या होगा? और क्या अब तक हाशिए पर पड़ी कांग्रेस कन्हैया कुमार की अगुवाई में अपनी खोई जमीन‍ फिर पाने में कामयाब होगी? ये कुछ ऐसे अहम सवाल हैं, जिन पर राजनीतिक विश्लेषकों की गहरी नजर है। बिहार में विस चुनाव यूं तो इस साल अक्टूबर या नवंबर में संभावित हैं, लेकिन राजनीतिक गोटियां अभी से चली जाने लगी हैं। इनमें भी सबसे अहम है केन्द्रीय मंत्री अमित शाह द्वारा राज्य में सीता माता का मंदिर बनाने का ऐलान और नीतीश पुत्र निशांत की सियासत के रिंग में पेश कदमी।


बिहार में अपने दम पर सत्ता में आना या कम से कम अपनी अगुवाई में सरकार बनाना भाजपा का पुराना सपना है। लेकिन बिहार का जातीय और राजनीतिक गणित कुछ ऐसा जटिल है कि जाति के आगे वहां हर मुद्दा फेल हो जाता है। यह शायद अकेला राज्य है, जहां व्यक्ति की पहचान उसकी योग्यता से ज्यादा उसकी जाति से होती है। हालांकि भाजपा की यही कोशिश रही है कि बिहार के लोग जातीय गोलबंदी से निकलकर धार्मिक छतरी में लामबंद हो जाएं। राज्य के 82 फीसदी बहुसंख्यक हिंदू समाज भगवा रंग में रंगकर एकजुट हो। इसकी जमीन तैयार का जिम्मा बाबा बागेश्वर जैसे कथा वाचकों को सौंपा गया है। संघ भी इसी मिशन में लगा है। लेकिन अगड़े, पिछड़े, अति पिछड़े, दलित और महादलित में बुरी तरह बंटा हिंदू समाज भगवा रंग में रंग में कितना रंग पाएगा, कहना मुश्किंल है। क्योंकि अयोध्या में राम मंदिर का उद्घाटन भी लोकसभा चुनाव के दौरान बिहार में बहुत ज्यादा असर नहीं दिखा पाया। भाजपनीत एनडीए को जो कामयाबी मिली, वो वोटों की सटीक जातीय गोलबंदी के कारण ज्यादा थी। बिहार में जाति के साथ राजनीतिक वर्चस्व और दबंगई की लड़ाई भी साथ चलती है। ऐसे में भाजपा ने इस बार अपने तरकश से ‘सीता माता मंदिर’ का ब्रह्मास्त्र निकाला है। अगर अयोध्या सीताजी की ससुराल है तो बिहार के मिथिलाचंल का सीतामढ़ी सीता मैया का मायका है। हालांकि सीता मंदिर को लेकर कोई धार्मिक तनाव और जमीन का झगड़ा नहीं है ( एक धोबी, जिसे तबका सोशल मीडिया मानें तो उसके द्वारा रावण की कैद में सीता के चरित्र पर उठाई उंगली को छोड़ दें)। अलबत्ता ‘सीताराम चरित अति पावन’ होने की वजह से यह मुद्दा हिंदू महिलाअो को गहरे तक प्रभावित कर सकता है। सीता माता एकनिष्ठ पत्नी और अपने चरित्र की निष्कलंकता सिद्ध करने के लिए अग्नि परीक्षा से गुजरने वाली दिव्य स्त्री के रूप में पूजनीय है और पुरूष प्रधान समाज में आदर्श भारतीय नारी की परिकल्पना का मूर्तिमंत स्वरूप हैं।


गौरतलब है कि केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने गुजरात की राजधानी गांधीनगर में पिछले दिनो आयोजित ‘शाश्वत मिथिला महोत्सव 2025’ में ऐलान किया कि मिथिला (बिहार का मिथिलांचल) में जल्द ही माता सीता का भव्य मंदिर बनेगा। उन्होंने कहा कि ‘संवाद से समाधान’ की परंपरा मिथिला की भूमि से ही विकसित हुई है। शाह ने यह भी कहा कि मिथिलांचल माँ सीता की जन्मभूमि और उनके पिता जनक जैसे विद्वान राजर्षि की भूमि है। उल्लेखनीय है कि मिथिला के राजा जनक की पुत्री और राजकुमारी होने के कारण सीताजी को मैथिली भी कहा जाता है।
मिथिलांचल दरअसल बिहार का उत्तर-पूर्वी इलाका है, जिसमें राज्य के 21 जिले आते हैं। इसमें नेपाल से लगा सीतामढ़ी जिला भी शामिल है।सीतामढ़ी जिले का पुनौरा धाम माता सीता का जन्म स्थान माना जाता है। यहां हर साल फाल्गुन माह के कृष्णपक्ष की अष्टमी को सीता जयंती मनाई जाती है। माना जाता है कि सीताजी राजा जनक को खेत में हल चलाते समय मिली थीं। धार्मिक पर्यटन के नक्शे में सीतामढ़ी रामायण सर्किट का हिस्सा है, जो रामायण में वर्णित 15 महत्वपूर्ण स्थानों का एक समूह है। सीतामढ़ी में एक प्राचीन जानकी (सीता) मंदिर पहले से है।
वैसे अमित शाह ने इसका ऐलान अभी किया हो, लेकिन सीतामढ़ी में सीता माता का मंदिर बनाने के प्रयास पहले से जारी हैं। राज्य सरकार ने मौजूदा मंदिर के आसपास 50 एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया है। यह जमीन उस 16.63 एकड़ के अतिरिक्त है, जिसे बिहार सरकार ने मौजूदा मंदिर परिसर के आसपास पुनर्विकास के लिए पहले से अधिग्रहित किया हुआ है। इसके लिए बिहार सरकार ने 72 करोड़ रू. आवंटित भी किए थे। कहा जा रहा है कि सीता मंदिर का निर्माण राम मंदिर की तर्ज पर एक सार्वजनिक ट्रस्ट के जरिए पैसे जुटाकर किया जाएगा। अयोध्या राम मंदिर के आर्किटेक्ट आशीष सोमपुरा प्रस्तावित मंदिर स्थल का दौरा पहले ही कर चुके हैं। सीता मंदिर के लिए 51 शक्ति पीठों से मिट्टी मंगवाई जाएगी। मंदिर में माता सीता की 251 फीट ऊंची भव्य प्रतिमा स्थापित होगी। मं दिर ‍िनर्माण की कार्यवाही रामायण रिसर्च काउंसिल के तत्वावधान में हो रही है। काउंसिल के ट्रस्टी राजीव कुमार सिंह के अनुसार मां जानकी (सीता) के मंदिर का निचला भाग वृत्ताकार होगा। उसके चारों ओर से मां के 108 विग्रह (स्वरूपों) को प्रदर्शित किया जायेगा।
यूं सीताजी का जन्मस्थान और मायके को लेकर और भी मान्यताएं हैं। मसलन पटना के बक्सी मोहल्ला में भी सीता माता का मंदिर है। माना जाता है कि श्रीराम से विवाह के बाद ससुराल जाते समय माता सीता की पालकी (डोला) इसी स्थान पर रखी गई थी। सीताजी का एक मंदिर उत्तराखंड में चमोली जिले के जोशीमठ क्षेत्र में स्थित चांई गांव में भी है। जहां केवल सीताजी की ही मूर्ति है। इसी प्रकार नैनीताल में जिम कॉर्बेट पार्क में सीतावनी मंदिर है। मान्यता है कि निर्वासन के बाद सीता माता ने यहां भी कुछ साल व्यतीत किए थे। इसी तरह
नेपाल के जनकपुर धाम को भी सीता का मायका माना जाता है। यही कारण है कि श्रीराम का ससुराल पक्ष होने के कारण जनकपुर वासियों ने अयोध्या में राम मंदिर में भगवान राम की प्रतिमा निर्माण के लिए नेपाल से काली गंडकी नदी से निकाली गई राम शिला भेजी थी। वैसे सीतामढ़ी और जनकपुर में करीब 53 किमी की दूरी बताई जाती है।


सीतामढ़ी में ही सीताजी का मंदिर बने, इस पर विपक्ष की राजनीतिक आपत्ति के अलावा शायद ही किसी को ऐतराज हो। लेकिन क्या यह मंदिर भाजपा की राजनीतिक रामायण का सुंदरकांड भी साबित होगा, इसको लेकर कई सवाल हैं। सीता मंदिर निर्माण के ऐलान में छिपे राजनीतिक बारूद को भांपते हुए बिहार में विपक्षी दल राजद ने कहा कि ‘बिहार को मंदिर से ज्यादा अस्पताल, सड़क और रोजगार की जरूरत है।‘ बिहार में 18 फीसदी मुस्लिम वोट हैं। राजद व अन्य सहयोगी पार्टियां मंदिर निर्माण का खुलेआम समर्थन कर इस वोट बैंक को फिसलने देना नहीं चाहतीं। राजद का मुख्य जनाधार 27.12 फीसदी अोबीसी और 18 फीसदीमुस्लिम वोट हैं। जबकि राज्य में 36.01 प्रतिशत अति पिछड़े यानी ईबीसी की का बड़ा हिस्सा नीतीश कुमार के साथ हैं। यही नीतीश की ताकत है और इसी कारण भाजपा नीतीश का दामन चाह कर भी छोड़ नहीं पा रही है। नीतीश की पार्टी जद यू को भी थोड़ा बहुत मुस्लिम वोट मिल जाता है। जबकि भाजपा का वोट बैंक तमाम कोशिशों के बाद भी 20 प्रतिशत से आगे नहीं बढ़ पा रहा है और यह वोट भी मुख्यगत: अगड़ी जातियों का है। दूसरी तरफ कांग्रेस का वोट बैंक कुछ अगड़े और कुछ मुस्लिम वोटों से बनता है।

राज्य में कन्हैया कुमार को आगे कर कांग्रेस ने यह संदेश देने की कोशिश की है कि वह विस चुनाव दमदारी से लड़ेगी और राजद के मुस्लिम वोटो में भी सेंध लगाएगी। चाहे उसे अकेले ही क्यों न लड़ना पड़े। जानकारों के अनुसार अगर ऐसा हुआ तो ज्यादा नुकसान भाजपा को होगा, क्योंकि अगड़ा वोट दोनो पार्टियों में बंट सकता है। सो भाजपा को लग रहा है कि सीता मैया की कृपा रही तो कम से कम अगड़ा वोट तो उसके साथ रहेगा ही और पिछड़ों में भी सेंध लग सकती है। हालांकि पिछड़ों में भी यादव लगभग पूरी तरह से राजद के साथ हैं। हालांकि सीता मंदिर का समर्थन जद यू ने और चिराग पासवान की दलित पार्टी लोजपा ने भी ‍िकया है। जिनकी आबादी प्रदेश में 19.65 प्रतिशत है। पासवान इस बार एनडीए के साथ ही चुनाव लड़ेंगे। राज्य में एनडीए का सम्मिलित वोट 45 फीसदी से ज्यादा है। अब देखना यह है कि सीतामढ़ी में सीता मंदिर का शिलान्यास कब होता है, विस चुनाव से पहले या उसके बाद?

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लेखल ‘सुबह सवेरे’ के कार्यकारी प्रधान संपादक हें।

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