रामभरोस विश्वकर्मा, मंडीदीप रायसेन
औद्योगिक नगर में पर्यूषण पर्व के छठे दिन सुगंध दशमी का पर्व का हर्षाेल्लास से मनाया गया। साथ ही उत्तम संयम धर्म की विशेष पूजा-अर्चना कर अष्टकर्माे के नाश को हवन कुंड में आहुति दी गई।सभी जिनालयों में छठे दिन सुगंध दशमी के पर्व पर कार्यक्रम आयोजित किया गया। इस दौरान मंदिर में प्रथम शांति धारा की गई। मंदिर जी में श्रद्धालुओं ने अष्टकर्माे के नाश को हवन कुंड में निर्वाण कांड पढ़ आहुति दी। इस दौरान शुक्रवार को अपने प्रवचन में मुनिराज निराकुल सागर ने कहा कि दशलक्षण पर्व का छठा दिन अपनी इंद्रियों को वश में कर संयम से रहने की सीख देता है। संयम से जीवन व्यतीत करने वाला प्राणी सुखी रहता है। जिस मनुष्य ने अपने जीवन में संयम धारण कर लिया है, उसका मनुष्य जीवन सार्थक और सफल है। उत्तम संयम के पालन से मानव आत्मा से परमात्मा की ओर जाता है। संयम के दो भेद होते हैं, इंद्रिय संयम और प्राणी संयम। स्पर्श, रसना, ध्राण, चक्षु और कर्ण ये पांच इंद्रियां है। इन इंद्रियों के विषय में आसक्त हुआ।
उन्होने कहा कि यह मोही प्राणी अपने स्वभाव को भूल रहा है। अपनी अज्ञानता का परिणाम है कि सामर्थ शक्तिमान होते हुए भी इस का दास बना है।एकाग्रता के साथ हर व्यक्ति को ध्यान करना चाहिए तभी जीवन सार्थक होता है। अनमने मन से बगैर एकाग्र हुए किया गया ध्यान दूरगामी परिणाम नहीं दे सकता है। जहां पवित्रता, सुचिता होती है वहां शौच धर्म है। स्वभाव की पवित्रता में आ जाए तो उसी का नाम शौच धर्म होता है। लोभ- क्रोध, अहंकार, माया, मान, कशाय की जड़ है। इससे बचना है। तो जीवन मे सुचिता, पवित्रता को प्रथम स्थान पर रख कर कार्य करना होगा। पर्युषण पर्व पर महिलाओं ने सुगंध दशमी का व्रत रखा है।