• ‘सभी के जीवन में गुरू होना चाहिए’
• ‘लोकजीवन में कहानियां-मुहावरे गुरू के समान मार्गदर्शन करते हैं’
रायसेन। साँची बौद्ध-भारतीय ज्ञान अध्ययन विश्वविद्यालय में आज दो दिवसीय गुरू पूर्णिमा कार्यक्रम की शुरूआत की गई। इस अवसर पर विशिष्टअतिथि के तौर पर पातंजल योगवार्ता संस्थान विदिशा की निदेशक संन्यासिनी स्वामी दीक्षानंद सरस्वती ने कहा कि प्रत्येक व्यक्तिके जीवन में एक गुरू अवश्य ही होना चाहिए। दूसरे विशिष्ट वक्ता के रूप में साहित्यकार ऋषि कुमार मिश्रा ने कहा कि लोक जीवन में गुरू, कहानियां, लोकोक्तियां, कहावतें-मुहावरे किसी भी व्यक्ति का गुरू के समान मार्गदर्शन करती हैं।
विश्वविद्यालय के वैकल्पिक शिक्षा विभाग के सहायक प्राध्यापक डॉ. प्रभाकर पांडे ने कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा में गुरू को महत्व तो दिया गया है साथ ही साथ गुरू पर उत्तरदायित्व भी अत्यधिक डाला गया है। उन्होंने कहा कि यदि कोई शिष्य अपने जीवन में ग़लत कार्य करता है तो भारतीय ज्ञान परंपरा के अनुसार उसका दंड गुरू पर आता है क्योंकि उसने अच्छा शिष्य तैयार नहीं किया। डॉ. पांडे ने कहा कि इसलिए भारतीय ज्ञान परंपरा में गुरू और शिष्य दोनों को एक ईकाई माना गया है, दोनों एक दूसरे का मार्गदर्शन करते हैं।
योग विभाग के सहायक प्राध्यापक डॉ. उपेंद्र बाबू खत्री ने कहा कि प्रत्येक व्यक्ति के अंदर गुरू होता है और उसे गुरू समझना चाहिए। भारतीय दर्शन विभाग के सहायक प्राध्यापक डॉ. नवीन दीक्षित ने बताया कि गुरू बनने के लिए भारतीय ज्ञान परंपरा में कई मूल्य और उत्तरदायित्व दिए गए हैं। गुरू-शिष्य परंपरा का उद्देश्य व्यक्ति, समाज व विश्व का कल्याण है।
सांची विश्वविद्यालय के अधिष्ठाता प्रो. नवीन मेहता ने कार्यक्रम में उपस्थित सभी अतिथियों, शिक्षकों-छात्रों का स्वागत किया। उन्होंने कहा कि सांची विश्वविद्यालय के स्थापना का उद्देश्य भारतीय ज्ञान परंपरा के अनुसार ही व्यक्ति-समाज में मूल्यों की स्थापना करना है। इस अवसर पर छात्रों ने शिक्षकों को पुस्तकें भेंट कीं।
(