मध्यप्रदेश में ग्राम पंचायतो को मिले अधिकार और निर्माण कार्यो की राशि में भ्रष्टाचार:: एक बड़ी समस्या -दीपक कांकर
सम्पादकीय
भारत में पंचायती राज प्रणाली एक महत्वपूर्ण प्रशासनिक ढांचा है, जिसका उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में स्थानीय स्वशासन और विकास को बढ़ावा देना है। मध्यप्रदेश राज्य ने भी इस प्रणाली को अपनाया है और ग्राम पंचायतों को कई महत्वपूर्ण अधिकार दिए हैं। हालांकि, इन अधिकारों और विकास कार्यों के लिए आवंटित धन में भ्रष्टाचार एक प्रमुख चिंता का विषय बना हुआ है। मध्यप्रदेश में ग्राम पंचायतों को मिले अधिकारों और निर्माण कार्यों की राशि में भ्रष्टाचार के मुद्दों पर विस्तृत चर्चा करने की आवश्यकता हें ।
देश में ग्रामीण विकास जैसा मह्त्वपूर्ण एवं चुनौतियों से भरा मंत्रालय मध्यप्रदेश ले पूर्व मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान को सोपा गया हे। ऐसे में ग्राम पंचायतो में बढ़ते भ्रष्टाचार और लगातार बढ़ रहे राजनैतिक और प्रशासनिक सरक्षण को कैसे अंकुश लगाया जायेगा यह चुनौती पूर्ण हे। ग्राम पंचायतो में सरपंच और सचिव दो महत्वपूर्ण इकाईया हे। जिनमे सचिव अधिक ताकतबर हे। क्योकि उनके पास पंचायत के सर्वाधिकार सुरक्षित हे। कभी दोनो सरपंच और सचिव मिलकर तो कभी अकेले सचिव ही विकास कार्यों के नाम से फर्जी बिल लगाकर राशि का आहरण कर लेते हे। ऐसी शिकायते कमोवेश अधिकाश जगह हे।
देखने में यह भी आता हे कि ग्राम पंचायतो पर अंकुश लगाने और उनके करियकलापों कि सतत मॉनिटरिंग करने जनपद पंचायते हे। लेकिन जनपद पंचायतो के अधिकारी सरपंच सचिवों नए भृष्ट कार्यकलापों पर अंकुश लगाने का प्रयास करते हे तो यह सरपंच सचिव लामबंद होकर उस अधिकारी के खिलाफ ही मोर्चा खोल देते हे। यह कहना गलत नही होगा कि इन लोगो को या तो राजनैतिक सरंक्षण मिला होता हे या फिर जिला पंचायत के अधिकारी उनके इन कृत्यो पर पर्दा डालते दिखाई देते हे।
अक्सर सरपंच सचिव की जोड़ी से जनपद के निर्वाचित सदस्यों और अध्यक्ष का तकराब होता रहता हे। इसके पीछे भी वही कहानी हे। सरपंच सचिव की जोड़ी मिलकर अपने हिसाब से मिले बजट को खर्च करते हे वही जनपद के सदस्यो का कहना हे कि कई पंचायतो को मिला कर जनपद का एक बार्ड बनता हे। ऐसे में जिन पंचायतो से वह बोट पाकर निर्वाचित हुए हे उन पंचायतो में गो रहे विकास कार्यों में उनकी मर्जी और सहभागिता हो। लेकिन ऐसा नही होता इसी कारण इनमें आपसी टकराव, गिले शिकबे और शिकायतो का दौर चलता रहता हे।
मध्यप्रदेश में ग्राम पंचायतों को मिले अधिकार और विकास कार्यों की राशि में भ्रष्टाचार एक गंभीर समस्या है, जो कि ग्रामीण क्षेत्रों के समुचित विकास में बाधा उत्पन्न कर रही है। इसके समाधान के लिए पारदर्शिता, जवाबदेही, प्रशिक्षण, कानूनी सख्ती, और प्रौद्योगिकी के उपयोग जैसे उपायों को अपनाना आवश्यक है। जब तक भ्रष्टाचार पर पूरी तरह से अंकुश नहीं लगेगा, तब तक ग्रामीण क्षेत्रों का संपूर्ण विकास संभव नहीं है। पंचायत प्रणाली का असली उद्देश्य तभी पूरा होगा, जब गांवों का वास्तविक विकास होगा और ग्रामीण जनता का जीवनस्तर उन्नत होगा।
ग्राम पंचायतों को स्थानीय कर, शुल्क, और अन्य राजस्व स्रोतों से धन एकत्रित करने का अधिकार है। राज्य सरकार द्वारा पंचायतों को विकास कार्यों के लिए धनराशि आवंटित की जाती है, जिसे ग्राम पंचायत अपनी प्राथमिकताओं के अनुसार उपयोग कर सकती है।
ग्राम पंचायतों को स्थानीय स्तर पर सड़कों, स्कूलों, स्वास्थ्य केंद्रों, और पेयजल सुविधाओं जैसे बुनियादी ढांचे के विकास के लिए परियोजनाएं बनाने और उन्हें लागू करने का अधिकार है।
पंचायतों को राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय योजनाओं के तहत सामाजिक और आर्थिक विकास के लिए विभिन्न कार्यक्रमों का कार्यान्वयन करना होता है। इसमें मनरेगा, स्वच्छ भारत अभियान, और अन्य योजनाएं शामिल हैं। लेकिन सब्बे ज्यादा भृष्टाचार की शिकार यही योजनाएं हो रही हे।
ग्राम पंचायतों को स्थानीय विवादों का निपटारा करने, जन्म और मृत्यु प्रमाण पत्र जारी करने, और अन्य प्रशासनिक कार्यों का संचालन करने का अधिकार है। लेकिन किआम आदमी आज भी सुविधा शुल्क अदा कर ही इन सबका लाभ ले पा रहा हे। जिला मुख्यालय पर कलेक्टर द्वारा आयोजित होने बाली जनसुनबाई में अधिकाश शिकायते ग्राम पंचायतो से मिलने बाले लाभ से बंचित रहने की ही होती हे।
ग्राम पंचायतों को मिले अधिकारों और विकास कार्यों की राशि में भ्रष्टाचार कई स्तरों पर होता है, जिसमें प्रमुख रूप से इन बिंदुओं पर ध्यान देना आवश्यक या।
विकास कार्यों के लिए आवंटित धनराशि का गलत उपयोग एक आम समस्या है। पंचायत सदस्य और स्थानीय अधिकारी अक्सर निर्माण कार्यों में अनुचित तरीकों से धन का दुरुपयोग करते हैं, जिससे परियोजनाओं की गुणवत्ता पर असर पड़ता है।
मनरेगा और अन्य विकास योजनाओं के तहत मजदूरों को भुगतान करने के लिए नकली बिल और फर्जी मस्टर रोल बनाए जाते हैं। इसमें मजदूरों के नाम पर धन निकालकर खुद उपयोग कर लिया जाता है।
विकास कार्यों के ठेके देने में कमीशन और रिश्वतखोरी का चलन है। ठेकेदारों से कमीशन लेकर अनुबंध देना और ठेकेदारों द्वारा परियोजनाओं में घटिया सामग्री का उपयोग करना आम है।
पंचायतों के कार्यों में पारदर्शिता और जवाबदेही की कमी भी भ्रष्टाचार को बढ़ावा देती है। परियोजनाओं की निगरानी और मूल्यांकन सही तरीके से नहीं होता, जिससे भ्रष्टाचार को छुपाना आसान हो जाता है।
भ्रष्टाचार के कारण विकास कार्य सही तरीके से नहीं हो पाते, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों का समुचित विकास नहीं हो पाता। इससे सड़कों, स्कूलों, स्वास्थ्य केंद्रों जैसी बुनियादी सुविधाओं की कमी बनी रहती है।
भ्रष्टाचार के कारण सरकारी धन का दुरुपयोग होता है, जिससे आर्थिक नुकसान होता है। इसका सीधा असर ग्रामीण जनता पर पड़ता है, जो कि विकास योजनाओं का लाभ नहीं उठा पाती।
विश्वास में कमी पंचायतों में भ्रष्टाचार के कारण ग्रामीण जनता का विश्वास सरकार और पंचायत प्रणाली से उठ जाता है। इससे शासन प्रणाली की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिन्ह लग जाता है।
पंचायतों के कार्यों में पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ावा देने के लिए निगरानी और मूल्यांकन प्रणाली को सुदृढ़ करना आवश्यक है। इसमें नागरिक समाज और स्थानीय संगठनों की भागीदारी महत्वपूर्ण है।
पंचायत सदस्यों और अधिकारियों को सही प्रशिक्षण और जागरूकता कार्यक्रमों के माध्यम से भ्रष्टाचार के दुष्प्रभाव और इसके निराकरण के तरीकों के बारे में जानकारी दी जानी चाहिए।
भ्रष्टाचार के मामलों में कानूनी सख्ती बरतनी चाहिए और दोषियों को उचित दंड मिलना चाहिए। इससे भ्रष्टाचारियों में भय व्याप्त होगा और वे गलत कार्य करने से बचेंगे।
ग्राम पंचायतों के कार्यों में प्रौद्योगिकी का उपयोग करके पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ावा दिया जा सकता है। ऑनलाइन निगरानी प्रणाली, डिजिटल भुगतान, और जीआईएस आधारित योजना प्रणाली इसके उदाहरण हो सकते हैं।
–दीपक कांकर एडिटर इन चीफ एमपी टुडे