मुकेश साहू दीवानगंज रायसेन
दीवानगंज सहित आसपास के ग्रामीण इलाकों मैं खेतों में फसल की कटाई होते ही डंठलों में आग लगा देने के कारण हरी घास का अकाल सा हो गया है, जिसके चलते पशुओं का स्वास्थ्य गिरने लगा है। पशु पालक कन्हैया धाकड़, दिनेश साहू , सुरेश साहू , सुरेंद्र विश्वकर्मा , मोतीराम धाकड़ आदि पशु पालक कहते हैं कि पहले पशुओं को खेतों अथवा जंगल में छोड़ देते थे, जो चारे की तलाश में घूम कर पेट भरते थे। लेकिन अब खेतों में डंठल जलाने और जंगलों में आग लगने से मेड़ों पर सूखी घास से पशु अपनी भूख मिटा रहे हैं। गर्मी व बढ़ते तापमान के बीच चारे का संकट गहरा गया है।
गेहूं की फसल कटने पर सूखे पड़े खेत जली डंठलों के राख के साथ उड़ रही धूल के बीच भूखे पशु खेत में खड़े डंठल व मेड़ पर खड़ी बची सूखी घासों के सहारे हैं। पशु पालकों ने बताया कि गर्मी के मौसम में बाजरा, बरसीन हरे चारे का साधन है, लेकिन निजी साधन से सिंचाई महंगा पड़ता है। इसलिए पशुओं को खेतों में चरने के लिए छोड़ देते हैं। शाम को घर में भूसा और खली आटा देते हैं। पशुपालक मुकेश साहू ने कहा कि डंठल जलाने से चारे का संकट बढ़ गया है। किसान पशुओं को भूसा तो खिला देते हैं, लेकिन उसमें हरा चारा नहीं मिला पा रहे हैं। गड्ढ़े, तालाब के सूख जाने, पानी न आने की वजह से पशुओं को पानी की भी समस्या हो रही है। जिससे पशुओं में जहां दूध की मात्रा गिर रही है, वहीं पशुओं का स्वास्थ्य भी खराब हो रहा है। तेज धूप से बचने के लिए पशु पेड़ छाया का सहारा ले रहे हैं। डंठलों को जला देने के कारण भूसा भी 500 /700 रुपये क्विंटल में बिक रहा है।खेतों से फसल काटने के बाद अवशेष जलाने के कारण हरा चारा नमी न मिलने के कारण गर्मी में कम उगता है। हरा चारा न मिलने से पशुओं की दुग्ध उत्पादन क्षमता पर असर पड़ रहा है।
दीवानगंज सहित आसपास ग्रामीण इलाकों में इस समय आवारा पशुओं को खेतों में चरने के लिए कुछ भी नहीं मिल रहा है केवल खेतों में काली मिट्टी ही मिट्टी दिख रही है। क्षेत्र में कई दिनों से खेत की नरवाई में आग लगाई जा रही थी। जिसका परिणाम यह हुआ कि आवारा पशुओं को अब खाने के लिए खेतों में कुछ नहीं बचा है। अगर यही स्थिति रही तो आने वाले समय में पशुपालक पशुपालन करना छोड़ देंगे।
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