आलेख
अरुण पटेल
वर्ष 2023 में जिन राज्यों में चुनाव होने वाले हैं उनमें भाजपा यात्राओं के सहारे अपना भविष्य संवारने के अभियान में भिड़ने जा रही है। इस साल होने वाले राज्य विधानसभाओं के चुनाव में अभी से भाजपा ने विभिन्न राजनीतिक यात्रायें निकालना प्रारंभ कर दिया है। जहां प्रारंभ नहीं हुई वहां शीघ्र ही यात्राएं आरंभ करने का रोडमैप तैयार किया जा रहा है। इसका मकसद जनता से सीधे जुड़ने, उनकी समस्यायें समझने और उन्हें विश्वास में लेकर भाजपा का मजबूत वोट बैंक तैयार करना है ताकि इसके सहारे वह अपना भविष्य संवार सके।
वैसे कई राजनीतिक विश्लेषक इसे 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव के पहले सेमीफायनल के रुप में देख रहे हैं, लेकिन यदि 2018 में हुए विधानसभा चुनाव को देखा जाए तो भले ही राज्यों में कोई भी पार्टी जीती हो, वह भाजपा के चुनावी रथ को लोकसभा चुनाव में रोक नहीं पाई। मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान और कर्नाटक में या तो गठबंधन या खुद अपने बूते पर सरकार बनाने वाली कांग्रेस पार्टी को लोकसभा चुनाव में करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा था । यहां तक कि राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में अपनी सरकार होने के बाद भी कांग्रेस कोई गुल नहीं खिला पाई और मोदी लहर में भाजपा ने शानदार सफलता प्राप्त की थी। क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चमत्कारिक नेतृत्व के सामने कोई नेता टिक नहीं पाता है।
राज्यों के चुनाव नतीजे और केन्द्र के चुनाव नतीजे एक जैसे हों यह कतई जरुरी नहीं। एक दल जो राज्यों में सफल हो वह लोकसभा चुनाव में उसी सफलता को दोहरा पाये यह संभव नहीं होता। पश्चिम बंगाल का उदाहरण लिया जा सकता है , जहां भाजपा ने 18 सीटें जीती थीं और ममता बनर्जी कुछ आगे थीं लेकिन वह अपने यहां उतने एमपी नहीं जिता पाईं जितने 2019 के पूर्व उनकी पार्टी के थे। लेकिन विधानसभा चुनाव में ममता बनर्जी की पार्टी फिर पहले से अधिक मजबूत होकर उभरी। यह बात अलग है कि वहां अब भाजपा भी एक मजबूत प्रतिपक्ष के रुप में सफल रही। वहां कांग्रेस तथा वामपंथी गठबंधन एक प्रकार से अप्रासांगिक हो गये। इस प्रकार यदि भाजपा राज्यों के चुनावों में हार भी जाए तो भी लोकसभा चुनाव में उसकी जीत की संभावनायें इसी आधार पर धुंधली नहीं हो जाती हैं बल्कि चमकीली बनी रहेंगी वशर्ते कि कोई नेता मोदी के विरुद्ध उतना नहीं तो उनसे कुछ कमतर आकर्षण मतदाताओं में अपने प्रति पैदा कर सके। राजस्थान में कांग्रेस ने सरकार बनाई लेकिन लोकसभा में उसे वहां एक भी सीट नहीं मिल पाई, यहां तक कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बेटे अपने पिता की गोद में बैठकर भी लोकसभा नहीं पहुंच पाये, हालांकि मध्यप्रदेश में तत्कालीन मुख्यमंत्री कमलनाथ के बेटे नकुलनाथ अपने पिता की गोद में बैठकर लोकसभा पहुंच गये, लेकिन पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस उम्मीदवार के रुप में अपनी गुना सीट नहीं बचा पाये और लगभग एक लाख मतों से चुनाव हार गये। यहां पर कांग्रेस को 29 में से केवल एक सीट पर ही सफलता मिल सकी। छत्तीसगढ़ में इन राज्यों की तुलना में कांग्रेस की स्थिति जरा-सी बेहतर रही और वहां मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के नेतृत्व में 11 में से 2 लोकसभा सीटें कांग्रेस जीत पाई, इनमें एक छत्तीसगढ़ विधानसभा अध्यक्ष चरणदास महंत की पत्नी ज्योत्सना महंत थीं और दूसरी सीट कांग्रेस को आदिवासी बहुल बस्तर संभाग में मिली।
भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह लगातार चुनावी राज्यों के दौरे पर जाकर पार्टी की रणनीति को जहां पैनापन दे रहे हैं वहीं कार्यकर्ताओं को भी ऊर्जित कर रहे हैं। सबसे पहले त्रिपुरा में फरवरी में चुनाव होने की संभावना है ऐसे में यहां के सभी 60 विधानसभा क्षेत्रों में आठ दिन की जन विश्वास यात्रा शुरु हुई है। यह यात्रा एक हजार किमी की दूरी तय करेगी। यात्रा में 200 से ज्यादा सभायें होंगी, 100 से ज्यादा पदयात्राएं और करीब 50 रोड-शो होंगे। राजस्थान में भी भाजपा ने अलग-अलग कुछ यात्राएं निकाली हैं और आगे भी यह अभियान जारी रहेगा। भाजपा के सामने सबसे अधिक चुनौतियां छत्तीसगढ़ राज्य में हैं जहां मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कांग्रेस की स्थिति बहुत मजबूत बना रखी है और जितने भी विधानसभा के उपचुनाव हुए हैं उन सभी में कांग्रेस ने जीत दर्ज की है। वैसे 11 राज्यों में भाजपा की नजर में कमजोर मानी जाने वाली लोकसभा सीटों पर अभी से उसने अपनी स्थिति मजबूत करना प्रारंभ कर दिया है और इन सीटों पर एक प्रकार से कमान अमित शाह ने संभाल रखी है। इसी क्रम में सबसे पहले शनिवार 7 जनवरी को विपक्ष शासित राज्य झारखंड के चाईबासा में अमित शाह ने एक बड़ी चुनावी सभा को सम्बोधित करते हुए झारखंड मुक्ति मोर्चा व कांग्रेस की मिलीजुली सरकार पर जमकर निशाना साधा। पूर्वोत्तर की सभी 25 लोकसभा सीटों पर भाजपा ने अपनी नजरें जमा ली हैं। यही वजह है कि केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह पूर्वोत्तर राज्यों का दौरा कर रहे हैं। 6 जनवरी शुक्रवार को उन्होंने मणिपुर के मोईरांग में 1308 करोड़ रुपये की 21 विकास परियोजनाओं का उद्घाटन व शिलांयास कर जनता को संदेश देने की पुरजोर कोशिश की कि भाजपा के नेतृत्व में केंद्र सरकार यहां विकास की गंगा बहा रही है। पूर्वोत्तर में अमित शाह भाजपा के विकास मॉडल को भुनाने की रणनीति पर आगे बढ़ रहे हैं। शाह ने नागालैंड में 52 करोड़ रुपये के विभिन्न विकास कार्यों का लोकार्पण करते हुए कहा कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने नागालैंड में शांति, प्रगति तथा समृद्धि प्राप्त करने में सफलता हासिल की है।
भाजपा की 16-17 जनवरी को दिल्ली में होने वाली राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में मध्यप्रदेश में पार्टी संगठन से लेकर आगामी चुनावी रणनीति का रोड-मैप तैयार किया जायेगा और पार्टी एवं संगठन से जुड़े कई अहम और बड़े फैसले लिये जा सकते हैं। सबसे अहम फैसला तो यह होगा कि भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा का कार्यकाल बढ़ेगा या कोई नया अध्यक्ष पार्टी को मिलेगा। नड्डा के भविष्य को लेकर शायद इस कारण चर्चा होने की संभावना है क्योंकि वे अपने गृह राज्य हिमाचल में कांग्रेस को जीतने से नहीं रोक पाये और भाजपा ने यहां अपनी सरकार गंवा दी। मध्यप्रदेश संगठन में पार्टी प्रमुख वी.डी. शर्मा का कार्यकाल चुनावी वर्ष को देखते हुए बढ़ाया जायेगा या कोई नया अध्यक्ष प्रदेश की कमान संभालेगा, इस पर भी कोई निर्णय हो सकता है। वैसे राज्य के राजनीतिक गलियारों में नये अध्यक्ष के रुप में कुछ नाम चर्चाओं में हैं लेकिन सबसे अधिक संभावना यह है कि यदि वी.डी. शर्मा को दूसरा कार्यकाल नहीं मिलता है तो उनके स्थान पर भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय की ताजपोशी होने की अत्याधिक संभावना है। वैसे भाजपा ने मध्यप्रदेश में मैदानी स्तर पर पूरी गति से चुनावी तैयारियां प्रारंभ कर दी गई हैं। राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में आगामी वर्ष होने वाले लोकसभा चुनावों की तैयारियों पर चर्चा के साथ ही साथ इस साल मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, तेलंगाना, कर्नाटक सहित नौ राज्यों के विधानसभा चुनावों के संदर्भ में रोडमैप पर भी चर्चा होने की संभावना है।
और यह भी
मध्यप्रदेश की राजनीति में इन दिनों सिंधिया समर्थक मंत्रियों व विधायकों को लेकर तरह-तरह की चटकारेदार चर्चा राजनीतिक गलियारों में चल रही है। राजस्व एवं परिवहन मंत्री गोविंद सिंह राजपूत एक जमीन खरीद के विवाद में उलझते नजर आ रहे हैं तो वहीं दूसरे मंत्री महेंद्र सिंह सिसोदिया का वह बयान भी चर्चित हो रहा है जिसमें उन्होंने कहा है कि पार्टी में कई ऐसे पदााधिकारी पदों पर बैठे हैं जो पार्टी के प्रति वफादार नहीं हैं, उन्होंने पहले भी गद्दारी की है वह आगे भी गद्दारी कर सकते हैं। सिंधिया समर्थक प्रदेश के पीएचई राज्यमंत्री बृजेंद्र सिंह यादव ने कांग्रेस नेताओं के उन बयानों को निराधार बताया है जिनमें कहा गया है कि भाजपा के कई विधायक और मंत्री हमारे संपर्क में हैं। यादव ने कहा कि भाजपा में न कोई दुखी है न कोई परेशान, कांग्रेस के नेता केवल सुर्खियों में रहने के लिए इस तरह की भ्रामक बातें करते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि चूंकि उन्हें भाजपा में पूरा मान-सम्मान मिल रहा है इसलिए कांग्रेस में वापस जाने का सवाल ही नहीं उठता, सम्मान तो हमें कांग्रेस में नहीं मिला था इसलिए भाजपा में शामिल हुए, मैं भाजपा में हूं और भाजपा में ही रहूंगा। इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कांग्रेस के युवा विधायक कुणाल चौधरी ने कहा है कि कांग्रेस छोड़ने वाले ये सभी नेता भाजपा में जाकर पछता रहे हैं और रोज कांग्रेस का दरवाजा खटखटा रहे हैं। भाजपा में न तो इन्हें सम्मान मिल रहा और न इनके काम हो रहे हैं, इस तरह की बातें कांग्रेस छोड़कर भाजपा में गये नेता ही स्वयं फैला रहे हैं, ये लोग खुद कांग्रेस में आने की कोशिशों में लगे हैं।
–लेखक सुबह सवेरे के प्रबंध संपादक हैं
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