हिंदू धर्म में उत्तरायण पर्व का विशेष महत्व होता है। सूर्यदेव के उत्तरायण होने पर पवित्र नदियों में स्नान, ध्यान और दान किया जाता है। मान्यता है इस दिन किया गया दान और गंगा स्नान से कई गुना फल की प्राप्ति होती है।
आगे जानिए सूर्य के उत्तरायण (Uttarayan 2022) का महत्व…
सूर्य का उत्तरायण और दक्षिणायन
सूर्य के सालभर में दो बदलावों को उत्तरायण और दक्षिणायन कहा जाता है। सूर्यदेव 6 महीने के लिए उत्तरायण रहते हैं और बाकी के 6 महीनों में दक्षिणायन। हिंदू पंचांग की काल गणना के आधार पर जब सूर्य मकर राशि से मिथुन राशि की यात्रा करते हैं तब इस अंतराल को उत्तरायण कहा जाता है। इसके बाद जब सूर्य कर्क राशि धनु राशि की यात्रा पर निकलते हैं तब इस समय को दक्षिणायन कहते हैं। इस तरह से सूर्य एक वर्ष में 6-6 महीने के लिए उत्तरायण और दक्षिणायन रहते हैं।
शास्त्रों में उत्तरायण का महत्व
– मकर संक्रांति के दिन ही सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण होते हैं। यह दिन अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। कहा जाता है कि सूर्य के इस बदलाव से व्यक्ति की कार्यक्षमता में वृद्धि होती है। इसके अलावा इस दिन से रात छोटी और दिन बड़ा होने लगता है। सूर्य के इस परिवर्तन यानी कि मकर संक्रांति के दिन को अंधकार से प्रकाश की ओर बढ़ना भी कहते हैं।
– उत्तरायण के काल को देवताओं का दिन कहा जाता है। मकर संक्रांति पर सूर्य के उत्तरायण होने पर खरमास खत्म हो जाता है और शुभ कार्य दोबारा से आरंभ हो जाते हैं, इसीलिए इस दौरान नए कार्य, गृह प्रवेश , यज्ञ, व्रत – अनुष्ठान, विवाह, मुंडन जैसे कार्य करना शुभ माना जाता है।
– गीता में बताया गया है कि उत्तरायण काल में शरीर का त्याग करने पर मोक्ष की प्राप्ति ही होती है जबकि दक्षिणायन में शरीर का त्याग करने पर दोबारा से जन्म लेना पड़ता है। सूर्य के उत्तरायण के इसी महत्व के कारण ही भीष्म पितामह ने अपना प्राण तब तक नहीं त्यागे, जब तक मकर संक्रांति अर्थात सूर्य की उत्तरायण स्थिति नहीं आ गई।
– उत्तरायण काल को देवताओं का दिन और दक्षिणायन को देवताओं की रात्रि माना गया है। सूर्य के उत्तरायण होने पर पवित्र नदियों में स्नान और दान करने का महत्व काफी बढ़ जाता है। उत्तरायण पर गंगा स्नान के बाद सूर्यदेव अर्घ्य अर्पित करना और सूर्यदेव से जुड़े मंत्रों का करना काफी शुभफलदायक होता है।