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विश्व आदिवासी दिवस: वंचित वर्ग को उम्मीद की किरण बनी सहरिया क्रांति

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आदिम युगीन अत्याचारों को आज भी झेलता सहरिया आदिवासी

शिवपुरी। 9 अगस्त को पूरे विश्व में आदिवासी दिवस मनाया जा रहा है, लेकिन शिवपुरी जिले में निवासरत सहरिया जनजाति के लोगों के लिए यह दिन उनके संघर्ष और चुनौतियों की याद दिलाता है। सरकारी उपेक्षा और समाज के दमन के कारण ये लोग कठिनाइयों से भरा जीवन जीने को मजबूर हैं। कोई अपनी जमीन को लेकर परेशान है तो कोई साहूकारी कर्ज के जाल में अपना सब कुछ गंवा चुका है। हर कदम पर दुख भोग रहे हैं शिवपुरी जिले के आदिवासी।
शिवपुरी की सहरिया जनजाति पर अत्याचार और दमन का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। आए दिन इनके साथ हो रहे दुर्व्यवहार और अत्याचार के मामले सामने आ रहे हैं। पुलिस वाले इन्हें घसीटकर पीटते हैं और गंदी गालियों से संबोधित कर अपमानित करते हैं। दूसरी ओर, दबंग लोग मामूली बात पर भी लात-घूंसों से पीटते हैं और उनकी जमीनें छीन लेते हैं। कंट्रोल की दुकान वाला इनका राशन हड़प कर जाता है । खेत मालिक बंधुआ बनाने का जुगाड़ ढूंढता है । इनकी समस्याओं को सुनने वाला कोई नहीं है। नेताओं को वोट लेने के बाद मतलब नहीं , तहसीलों में इनकी शिकायतें अनसुनी कर दी जाती हैं और थानों में भी न्याय की कोई उम्मीद नहीं बचती।
सहरिया जनजाति के लोग प्रत्येक मंगलवार को अपनी समस्याओं को हल कराने के लिए कई बार जनसुनवाई में आवेदन लगाते हैं, लेकिन उनकी आवाज़ को अनसुना कर दिया जाता है । सरकारी व्यवस्था में बैठे लोगों द्वारा की जा रही इस उपेक्षा ने सहरिया समुदाय को निराश और हताश कर दिया है।
अजय आदिवासी कहते हैं कि हर तरफ से उम्मीद हार चुके असहरीय समुदाय को सामाजिक आंदोलन सहरिया क्रांति उन्हें न्याय और सम्मान दिलाने के लिए अंतिम उम्मीद बन चुका है। सामाजिक कार्यकर्ता संजय बेचैन इस आंदोलन का नेतृत्व कर रहे हैं और सहरिया समुदाय को मुसीबतों से बचाने के लिए दिन-रात दबंगों और भ्रष्ट सरकारी तंत्र से लद रहे हैं। संजय बेचैन के नेतृत्व में सहरिया क्रांति आंदोलन ने हजारों सहरिया लोगों को एकजुट किया है और उनकी आवाज़ को बुलंद किया है। वहीं सामाजिक कार्यकर्ता संजय बेचैन का कहना है कि यह आंदोलन तब तक जारी रहेगा जब तक सहरिया जनजाति को न्याय और सम्मान नहीं मिल जाता।
सहरिया क्रांति आंदोलन के माध्यम से सहरिया जनजाति ने अपनी आवाज़ को बुलंद किया है और अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ी है। इस आंदोलन ने न केवल शिवपुरी बल्कि पूरे मध्यप्रदेश में आदिवासियों के अधिकारों की रक्षा के लिए एक नई लहर पैदा की है। संजय बेचैन के निवास पर सुबह से ही परेशान हाल आदिवासी अपनी पीढ़ा सुनाने आते हैं।


आज विश्व आदिवासी दिवस के मौके पर, सहरिया जनजाति के लोग अपनी समस्याओं और चुनौतियों को दुनिया के सामने रखने के लिए जुटे हुए हैं। वे चाहते हैं कि उनके साथ हो रहे अन्याय और अत्याचार को रोका जाए और उन्हें भी समाज में सम्मानजनक स्थान मिले। सहरिया क्रांति आंदोलन के माध्यम से वे अपनी आवाज़ को बुलंद कर रहे हैं और न्याय की मांग कर रहे हैं।
सहरिया जनजाति की यह लड़ाई केवल उनकी नहीं, बल्कि हर उस व्यक्ति की है जो अन्याय और अत्याचार के खिलाफ खड़ा होना चाहता है। आज के दिन हमें संकल्प लेना चाहिए कि हम सभी मिलकर सहरिया जनजाति के अधिकारों की रक्षा करेंगे और उन्हें न्याय दिलाने के लिए हर संभव प्रयास करेंगे।
इस विश्व आदिवासी दिवस पर, हमें यह याद रखना चाहिए कि आदिवासी समुदाय हमारे समाज का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं और उनकी समस्याओं को हल करना हमारा कर्तव्य है। हमें उनके अधिकारों की रक्षा के लिए एकजुट होना होगा और उन्हें न्याय दिलाने के लिए संगठित प्रयास करने होंगे।
सहरिया जनजाति के संघर्ष और चुनौतियों को देखते हुए, आज का दिन उनके साथ खड़ा होने और उनके अधिकारों की रक्षा के लिए अपनी आवाज़ बुलंद करने का है। विश्व आदिवासी दिवस पर, हमें संकल्प लेना चाहिए कि हम सभी मिलकर सहरिया जनजाति के संघर्ष को समर्थन देंगे और उन्हें न्याय दिलाने के लिए हर संभव प्रयास करेंगे।

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