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वो मामला जिसमें धनजंय सिंह गए थे जेल, किस आधार पर मिली जमानत

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जौनपुर से पूर्व सांसद धनंजय सिंह को इलाहाबाद हाईकोर्ट से जमानत मिलने के बाद उनकी पत्नी श्रीकला सिंह ने कहा है उन पर लगाए गए सारे केस गलत थे. कोर्ट से जमानत मिलने पर श्रीकला सिंह ने प्रसन्नता जताई है. श्रीकला सिंह खुद भी बीएसपी के टिकट पर जौनपुर से चुनाव लड़ रही हैं ऐसे में धनजंय सिंह के बाहर आने से उनके समर्थन को बल मिल सकता है. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने धनंजय सिंह को जमानत तो दे दी है लेकिन उनकी 7 साल की सजा को बनाए रखा है. सूत्रों के मुताबिक धनंजय सिंह इस आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जा सकते हैं.

धनंजय सिंह जौनपुर के बाहुबली नेता रहे हैं. उन पर अपहरण और रंगदारी के कई आरोप हैं. धनंजय सिंह पर मुकदमों की संख्या करीब 41 रही है लेकिन इनमें 31 केसों में उन्हें बरी किया जा चुका है. बाकी केसों में से एक मामले में उन्हें 7 साल की सजा सुनाई गई है. अन्य पर सुनवाई चल रही है.

किस मामले में गए थे जेल?

हाईकोर्ट ने जिस मामले में धनंजय सिंह को सात साल की सजाई सुनाई थी, वो मामला 2020 का है. कोर्ट केस के मुताबिक नमामि गंगे प्रोजेक्ट मैनेजर अभिनव सिंघल के अपहरण और रंगदारी के मामले में धनंजय सिंह का हाथ था. 10 मई को लाइन बाजार थाने में उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई गई थी. केस दर्ज होने के बाद धनंजय सिंह और उनके एक और साथी को गिरफ्तार किया गया. हालांकि तीन महीने की सजा काटने के बाद धनंजय सिंह को जमानत मिल गई.

धनंजय सिंह की ये कहानी यहीं खत्म नहीं हुई. पुलिस ने नये सिरे से उनके खिलाफ आरोप पत्र दायर किया. जिसके बाद जौनपुर की एमपी-एमएलए कोर्ट ने 2 अप्रैल 2022 को धनंजय और दूसरे साथी पर आरोप तय कर दिये. इसके बाद कोर्ट में लंबी सुनवाई चली. कुल 130 तारीखों में सुनवाई चली. इसके बाद मार्च 2023 में धनंजय सिंह को दोषी पाया गया और फिर 7 साल की सजा के साथ 50 हजार का जुर्माना लगाया गया.

कैसे मिली जमानत?

इस सजा के खिलाफ धनंजय सिंह ने इलाहाबाद हाईकोर्ट का रुख किया था. उन्होंने कोर्ट से दरख्वास्त की थी कि आखिरी फैसला आने तक सजा पर रोक लगाई जाए और जमानत पर रिहा किया जाए. गुरुवार को इस याचिका पर सुनवाई पूरी हो गई थी. जस्टिस संजय कुमार सिंह की एकल पीठ ने फैसला सुरक्षित रख लिया था. अब शनिवार को कोर्ट ने उनकी याचिका पर सुनवाई करते हुए उन्हें जमानत तो दे दी लेकिन सजा पर रोक लगाने से मना कर दिया है. यानी वो अपनी पत्नी के लिए वोट तो मांग सकेगे लेकिन खुद चुनाव नहीं लड़ सकेंगे.

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