इंदौर। तीन दिसंबर 1992 को नौ लोग साबरमती एक्सप्रेस से अयोध्या के लिए रवाना हुए थे। उस समय मेरी उम्र लगभग 19 वर्ष थी। मां को जैसे ही पता चला कि मैं कारसेवा में शामिल होने के लिए अयोध्या जा रहा हूं, उनका रो-रोकर बुरा हाल हो गया। पिता ने जरूर मुझे बगैर किसी रोक-टोक के जाने की अनुमति दे दी थी। वे कहा करते थे कि देश और धर्म के लिए काम करने में बहुत ज्यादा सोच-विचार नहीं करना चाहिए। अगर जान भी देना पड़े तो दे देना।
यह कहना है कारसेवक अश्विनी शुक्ल का। महापौर परिषद सदस्य शुक्ल ने बताया कि अयोध्या जाने के लिए मेरे कई दोस्तों ने उनके नाम लिखवाए थे, लेकिन परिवार के विरोध के चलते वे रेलवे स्टेशन तक ही नहीं पहुंच सके। शुक्रवार के दिन साबरमती एक्सप्रेस अयोध्या तक जाती थी। चार दिसंबर की रात हम अयोध्या पहुंच गए। वहां सरयू नदी में स्नान करने के बाद सबसे पहले दूध जलेबी का नाश्ता किया और सीधे कारसेवा वाली लाइन में लग गए।