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नैनी जेल पहुंचने वाला पहला जत्था रायपुर का था, जानिए आंदोलन की अनकही कहानी, कार सेवक की जुबानी

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रायपुर। राजधानी रायपुर से कारसेवा के लिए पहला जत्था 22 अक्टूबर, 1990 को सारनाथ एक्सप्रेस से रवाना हुआ, जिसमें महासमुंद के बागबाहरा से भी लोग शामिल हुए। इनमें महिलाएं अधिक थीं। पहले जत्थे में बंजारी चौक गोलाबाजार निवासी मनीष साहू भी शामिल थे। रायपुर से श्रीधर पारे, पदमा ताई दंडवते, गुलाब बाई परमार (तीनों अब दिवंगत), राधा ठाकुर, तेलीबांधा की सविता तराटे, जोड़ीलाल शर्मा, ब्राह्मणपारा के कुंज बिहारी दुबे, सोहन यादव, सुरेश यादव, विजय सिंह ठाकुर समेत कुल 40 से 50 लोग पहले जत्थे में शामिल थे।

कारसेवा में शामिल मनीष साहू ने बताया कि जब हम रवाना हुए तो हमें मालूम था कि मुलायम सिंह ने घोषणा की थी कि यूपी में परिंदा भी पर नहीं मारेगा। वहां विहिप, बजरंग दल आदि संगठनों के नेताओं को नजरबंद कर दिया गया था, कइयों को गिरफ्तार भी कर लिया गया था, उनमें प्रतिपक्ष के नेता कल्याण सिंह भी शामिल थे। उत्तर प्रदेश के मानिकपुर से हम लोगों की पुलिस चेकिंग शुरू हो गई। हमने कार्तिक स्नान के लिए जाने की बात कही।

जाने के बाद जब हम प्रयागराज पहुंच गए, जत्थे में महिलाएं थीं, जिन्हें सुरक्षित लेकर चलना था। इसमें वहां के संगठन के लोगों का भी सहयोग मिला। उत्तर प्रदेश के मीरापुर में जमुनाजी के किनारे गीतानगर बस्ती थी, वहां हम दो-तीन दिन अंदर रहकर आदेश की प्रतीक्षा करते रहे। जिन्हें आगे भेजा गया है, उनकी कोई जानकारी नहीं मिल रही है।

भटकने के बाद पता चला कि आगे निकलना मुश्किल है, क्योंकि सेना और सुरक्षा बलों ने रास्ता बंद कर दिया था। हमने निर्णय लिया कि सत्याग्रह करते हुए गिरफ्तारी देंगे। भारत माता की जय, जय श्रीराम के जयकारे लगाते हुए निकले। हमें नैनी जेल ले जाया गया, जहां सबसे पहले हमारा जत्था पहुंचा। वह बहुत बड़ी जेल थी, सबसे पहले हम ही लोग थे, हम घबराए भी।

जेल में पहले से कल्याण सिंह थे, इसके बाद एक-एक कर देश के अन्य शहरों का जत्था नैनी जेल में दाखिल हुआ। जेल का माहौल देखते ही देखते तीर्थस्थल में बदल गया। वहां हमें किसी चीज की कमी नहीं हुई। समय बीता और कारसेवा की घड़ी आई। कारसेवा शुरू हुई तो हमें अखबार से पता चला कि सिंघलजी घायल हो गए। एक समय ऐसा भी आया, जब देखते ही देखते 50 हजार की भीड़ निकल आई।

एक साधु ने राज्य सरकार का वाहन कब्जा किया और सीधे अंदर घुसा दिया। सेना और लोगों में झड़प हुई। इसके बाद जो नरसंहार हुआ, वह देश-दुनिया को मालूम है। यह पहली कारसेवा थी। इस कारसेवा के दौरान विवादित ढांचे में दरार आ गई थी। घटनाक्रम 22 अक्टूबर, 1990 से 10-12 दिन के भीतर घटित हुआ। हमारे जत्थे में महिलाएं, बुजुर्ग भी थे, इसलिए हम लोगों को उस दिन नैनी स्टेशन में छोड़ दिया गया।

नैनी से ट्रेन में बैठकर हम रायपुर वापस आ गए। रायपुर आने के बाद पता चला कि काला दिवस मनाना है। लोगों ने अपने घरों में काले झंडे लगाए। इसके बाद उप्र में कारसेवा के दौरान बलिदान हुए कार सेवकों की अस्थियां रायपुर आईं। यहां जगह-जगह अस्थि कलश यात्रा निकाली गई।

बंजारी चौक के साथ ही अन्य जगहों में श्रद्धांजलि कार्यक्रम हुआ। इसके बाद कार सेवकों का सम्मान कार्यक्रम हुआ। इसके बाद एक और बड़ा कार्यक्रम हुआ। राजमाता सिंधिया के नेतृत्व में सत्याग्रह हुआ। श्रीराम मंदिर निर्माण के लिए धन संग्रह कार्यक्रम शुरू हुआ। अब 22 जनवरी, 2024 को रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा होने से सपना साकार होगा।

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