रायसेन।सन् 1949 में UNGA में हिंदी के पहले प्रयोग की याद में विश्व हिंदी दिवस हर साल 10 जनवरी को मनाया जाता है। इस दिवस का उद्देश भारतीय भाषा के बारे में जागरूकता पैदा करना, हिन्दी भाषियों के द्वारा साहित्य में किये गये योगदान का सम्मान करना, भाषा के महत्व को समझना और वैश्विक स्तर पर हिंदी भाषा के लिए अंतरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त करना तथा इसके साथ ही साथ दुनिया भर में इसके उपयोग को बढ़ावा देने का प्रयास करना है।
पहला विश्व हिंदी दिवस 10 जनवरी, 1975 को नागपुर में मनाया गया था। वर्ष 2006 में इस दिन को औपचारिक रूप से मनाने की घोषणा की गई थी। वर्ष 2006 में लिया गया यह कदम महत्वपूर्ण है क्योंकि यह वैश्विक क्षेत्र, विशेषकर राजनयिक और अंतर्राष्ट्रीय संदर्भों में हिंदी की भूमिका की मान्यता का प्रतीक है। आज विश्व भर में इसका प्रचलन हिंदी भाषा की अंतरराष्ट्रीय पहुंच को दर्शाता है और राष्ट्रीय सीमाओं से परे संबंधों को बढ़ावा देता है।
हिंदी दुनिया में सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषाओं में से एक है और यह भारत में इस्तेमाल किए जाने वाली प्रमुख आधिकारिक भाषाओं में से भी एक है। अगर हम मध्य प्रदेश की बात करें तो हिंदी मध्य प्रदेश के लगभग सभी हिस्सों में बोली जाती है।
अगर हम भाषा की बात करें तो भाषा का सही विकास ज़रूरी है क्योंकि भाषा ही हमें इंसान बनाती है। भाषा अभिव्यक्ति का एक माध्यम है। यह हमें संवाद करने या अपने विचारों का आदान-प्रदान करने में सहायता करती है। किसी भाषा को सीखने का मतलब है कि आपने दूसरों के साथ प्रभावी ढंग से संवाद करने के लिए शब्दों, संरचना और व्याकरण की एक जटिल प्रणाली में महारथ हासिल कर ली है।
जिस तरह से एक बच्चा किसी भाषा को सीखता है वह बहुत दिलचस्प होता है और यह हमें भाषा के विकास की प्रक्रिया के बारे में जानकारी देता है। किसी भाषा को प्रभावी ढंग से समझने और उसका उपयोग करने के लिए, बच्चों को भाषा के चार बुनियादी घटकों में महारथ हासिल करनी चाहिए।
– सबसे पहले, उन्हें ध्वनि की समझ होनी चाहिए। उन्हें पता होना चाहिए कि शब्दों की ध्वनि कैसी है और वे किसी भी शब्द को बनाने वाली ध्वनियों का क्रम उत्पन्न करने में सक्षम हों।
– दूसरा, उन्हें शब्दार्थ, बड़ी संख्या में शब्दों के अर्थ, में महारत हासिल करनी चाहिए।
– तीसरा, उन्हे वाक्य रचना आनी चाहिए जिसका अर्थ है की वह शब्दों को कैसे जोड़कर समझने योग्य वाक्यांश और वाक्य बना सकते हैं इसके नियम से उन्हें वाक़िफ़ होना चाहिए।
– अंत में, बच्चों को भाषा की व्यावहारिकता, सामाजिक परंपराओं और बोलने की रणनीतियों के उपयोग कि समझ होनी चाहिए जो दूसरों के साथ प्रभावी संचार को सक्षम बनाती हैं।
भाषा विकास और साक्षरता बच्चों के संपूर्ण विकास के लिए निर्विवाद रूप से आवश्यक हैं। राज्य सरकार ने अपने मिशन अंकुर के अन्तर्गत उपरोक्त उल्लेखित तरीकों को अत्याधिक महत्व दिया है। मिशन अंकुर 3-9 वर्ष की आयु के बच्चों में मूलभूत शिक्षा साक्षरता और संख्यात्मकता विकसित करने पर केंद्रित है। मिशन ने बाल मनोविज्ञान की सहायता से कक्षा में भाषा का सही तरीक़े से विकास करने के तरीकों को तैयार किया जिनके द्वारा 3-9 वर्ष की आयु के बच्चों को पाठ पढ़ाया जाता है। मिशन के अंतर्गत प्रकाशित शिक्षक संदर्शिका छोटे बच्चों में भाषा विकसित करने की चरण-दर-चरण प्रक्रिया को दर्शाती है। क्योंकि ऐसा माना गया है कि बच्चों में भाषा का विकास उनकी साक्षरता से जुड़ा हुआ है। शिक्षकों को बच्चों को किस प्रकार पढ़ना है ताकि वे बुनियादी साक्षरता और संख्या ज्ञान हासिल कर पाये इस में उन्हें प्रशिक्षित भी किया गया है। मिशन के अन्तर्गत विभिन्न शिक्षण अधिगम सामग्री का उपयोग भी किया जाता है। जब शिक्षकों के पास उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षण-अधिगम सामग्री उपलब्ध होती है, तो वे प्रभावी निर्देश देने में बेहतर ज़्यादा सक्षम होते हैं, जिससे विद्यार्थियों की उपलब्धि में सुधार की आशा की जा सकती है। रायसेन भी मिशन अंकुर में अपना योगदान दे रहा है। जिला शिक्षा केन्द्र रायसेन मिशन अंकुर की परिकल्पना को साकार करने के लिए निरंतर कार्य कर रहा है।
हमें अपनी भाषा और संस्कृति पर गर्व होना चाहिए। और हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि इस देश के बच्चे इसके बारे में सही तरीके से सीखें।
मेघना शाही
निपुन फैलो