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नियमों में उलझा 4500 अतिथि विद्वानों का नियमितीकरण

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महापंचायत में घोषणा हुई,विभागीय आदेश में फिरा पानी

डॉ. अनिल जैन भोपाल
सरकारी महाविद्यालयों में रिक्त पदों के विरुद्ध सेवा देने वाले अतिथि विद्वानों का भविष्य सुरक्षित होना झमेले में फसता हुआ दिखाई दे रहा है।लंबे संघर्ष के बाद पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान एवं पूर्व उच्च शिक्षा मंत्री एवं वर्तमान मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव ने महापंचायत बुलाकर अतिथि विद्वानों से फिक्स 50 हज़ार फिक्स वेतन,65 वर्ष रिटायरमेंट उम्र तक सेवा जारी रखने,सरकारी कर्मचारियों जैसे ही पूरी सुविधा आदि की घोषणा हुई एवं इसी को लेकर कैबिनेट में मंजूरी मिली जिसकी व्याख्या वर्तमान उपमुख्यमंत्री राजेंद्र शुक्ल एवं नरोत्तम मिश्रा ने की लेकिन जब विभागीय आदेश जारी किया गया तो अतिथि विद्वानों के चेहरे से हवाइया उड़ने लगी।हो भी क्यों ना जो भी घोषणा हुई ठीक उसके उलट आदेश जारी किया गया जिसमें दिहाड़ी 1500 में 500 जोड़कर देने का एवं अतिथि विद्वानों को फालेंन आउट करने का भी जिक्र कोई भी सरकारी सुविधा नहीं।जबकि सूबे के सरकारी महाविद्यालयों को अतिथि विद्वान ही संचालित कर रहे हैं लेकिन आज तक इनका भविष्य सुरक्षित नही जो की आम जनमानस में चर्चा का केंद्र बना हुआ है।अब नई सरकार क्या करती है क्या अतिथि विद्वानों का भविष्य सुरक्षित होगा क्या पूर्व घोषणाओं के आधार पर फिक्स वेतन मिलेगा कई सवाल अब सवाल ही बने हुए हैं।
विद्वानों ने कहा संवेदनशीलता के साथ भविष्य सुरक्षित करे सरकार
इधर अतिथि विद्वान महासंघ के प्रदेश अध्यक्ष डॉ देवराज सिंह ने बयान जारी करते हुए कहा कि सरकार संवेदनशीलता दिखाते हुए अतिथि विद्वानों का भविष्य सुरक्षित करे।जो भी घोषणा भाजपा सरकार ने की थी उसको पूरा करें।अतिथि विद्वानों को लंबा अनुभव है एवं योग्यता है।डॉ सिंह ने कहा की नियमितीकरण अतिथि विद्वानों का हक है 50 हज़ार फिक्स वेतन एवं स्थाई व्यवस्था लागू किया जाना चाहिए,मुख्य्मंत्री डॉ मोहन यादव जी पूर्व उच्च शिक्षा मंत्री रह चुके हैं वो जरूर अतिथि विद्वानों का भविष्य सुरक्षित करेंगे ये आशा उम्मीद है अतिथि विद्वान महासंघ को।
एनईपी में पीएचडी गाइड,रिसर्च,प्रोजेक्ट में प्राध्यापकों की कमी
इधर न्यू एजुकेशन पॉलिसी में पीएचडी गाइड,रिसर्च,प्रोजेक्ट,एक्सटर्नल आदि की बेहद कमी देखी जा रही है कारण ये है की जो भर्तियां हुई 2017 पीएससी की उसमें ज्यादातर नेट/सेट अध्यर्थी है जो पीएचडी किए ही नहीं तो उनका अनुभव शून्य है।यही आलम होने वाली सहायक प्राध्यापक भर्ती में भी होगा।अगर सरकार उच्च शिक्षा विभाग रिक्त पदों के विरुद्ध सेवा देने वाले अतिथि विद्वानों पर दांव खेलती है तो ज्यादातर समस्या से निजात मिल जायेगा क्योंकि 4500 अतिथि विद्वानों में लगभग 3000 अतिथि विद्वान यूजीसी की योग्यता रखते हैं एवं पीएचडी है अच्छा खासा रिसर्च का अनुभव भी है।
इनका कहना हे-
अतिथि विद्वानों को पीएचडी गाइड,एक्सटर्नल, रिसर्च,प्रोजेक्ट आदि का अधिकार मिलना चाहिए।ज्यादातर ऐसे असिस्टेंट प्रोफेसर है जो सिर्फ़ नेट/सेट हैं पीएचडी नहीं है तो उनको रिसर्च का अनुभव नहीं है जबकि अतिथि विद्वान ज्यादातर पीएचडी है रिसर्च का अनुभव है। उच्च शिक्षा विभाग एवं विश्वविद्यालय इस तरफ जरूर ध्यान दें तो कई समस्या का हल निकल जाएगा नई शिक्षा नीति में।उच्च शिक्षा विभाग अतिथि विद्वानों को अपना नियमित अंग माने एवं मुख्यधारा में शामिल करे।
डॉ आशीष पांडेय,मीडिया प्रभारी अतिथि विद्वान महासंघ

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