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सुकूनभरी प्रकृति का आनंद लेना है तो जोगी महादेव, जहां पांड़वों ने भोगा था वनवास

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इंदौर। हमारा देश किस्से-कहानियों से भरा हुआ है। कुछ किस्से हकीकत के पन्नों से निकलकर बातों का हिस्सा बन चुके हैं, कुछ आकलन के आधार पर सजे हैं तो कुछ का अस्तित्व किवदंतियों ने कायम किया है। ऐसे में कई बार तो यह तय करना भी मुश्किल हो जाता है कि क्या हकीकत है और क्या फसाना। ऐसी ही एक किवदंती है कि पांडव जब वनवास भोग रहे थे तब वे जोगी के वेश में मध्य प्रदेश में भी आए। यहां आकर उन्होंने भगवान शिव की आराधना की।

कनाड़ नदी के समीप उन्होंने शिवलिंग स्थापित किया जो आज भी विद्यमान है। जोगी रूप लिए पांडवों ने यहां साधना की थी इसलिए इस स्थान को जोगी महादेव कहा जाता है। इस बात में कितनी वास्तविकता है यह तो पता नहीं लेकिन इसका प्रमाण जरूर हम दे सकते हैं कि यह स्थान है बेहद खूबसूरत।

इस बार हम आपको सैर कराते हैं इंदौर से करीब 55-60 किमी दूर स्थित जोगी महादेव के, जहां परमात्मा और प्रकृति दोनों का ही अस्तित्व नजर आता है। यह वह स्थान है जहां भक्ति भी है तो ट्रेकिंग की मस्ती भी है, खूबसूरत वादियां हैं तो पिकनिक का आनंद भी है, परिंदों का कलरव भी है तो सैलानियों के मुंह से निकलने वाली सुकूनभरी ‘आहा’ की खुशनुमा ध्वनि भी है। इन सबके अलावा खास बात यह है कि यहां की सैर करने के लिए सैलानियों को न तो बहुत लंबा सफर करने की जरूरत है और न ही मोटी राशि खर्च करनी पड़ती है।

ट्रैवलर संतोष कुसमाकर बताते हैं कि यहां पहुंचने के लिए इंदौर से खंडवा रोड पर आगे बढ़ने पर सिमरोल घाट पार करना पड़ता है। सिमरोल घाट पार करने के बाद बाईग्राम मार्ग की ओर मुड़ें। यह रास्ता करीब 10 किमी है। यहां पर चेनपुरा में वन विभाग की चौकी मिलेगी। आगे का रास्ता यहां मिली अनुमति से पार करना होता है। चौकी से दो रास्ते नजर आते हैं।
एक रास्ता ओखलेश्वर मठ की ओर जाता है तो दूसरा जोगी महादेव के लिए। यह दूसरा रास्ता करीब पांच किमी का है और आप अपनी मंजिल तक पहुंच जाएंगे। यह पूरा रास्ता बेहद सुगम है, लेकिन आपको इस सफर को रोमांचक बनाना है तो ट्रेकिंग का विकल्प अपना सकते हैं। चौकी से करीब दो किमी आगे बढ़कर आप अपने वाहन एक तरफ खड़े कर दें और शेष रास्ता जंगल में से होकर जाने वाली पगडंडी पर चलकर पार करें।
इस रास्ते से जब आप जाएंगे तो सांप और दीमक की बड़ी-बड़ी बांबी, परिंदों की खूबसरत दुनिया और यदि आप खुशकिस्मत हुए तो अन्य वन्य प्राणी भी नजर आ जाएंगे। रास्ते का घना जंगल आपको ताजगी, उत्सुकता और सुकून प्रदान करेगा।
कच्चे घर में स्थापित शिवलिंग और दुर्लभ पेड़
यहां एक प्राचीन शिवमंदिर भी है जिसे जोगी महादेव कहा जाता है। यह शिवलिंग जहां स्थापित है वहां कच्चा घरनुमा आश्रम बना हुआ है जिसे यहां रहने वाले किसी संत ने बनाया था। अब संत नहीं केवल निशानियां शेष हैं। यहीं एक दुर्लभ पेड़ भी है जो कि भोजपत्र का पेड़ है। इस पेड़ की छाल ही भोजपत्र के रूप में उपयोग आती है। इस क्षेत्र में भोजपत्र का केवल यही एकमात्र पेड़ है। इस मंदिर से करीब आधा किमी दूर कनाड़ नदी बह रही है।
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