इंदौर। भारत में तलाक की दर एक प्रतिशत से भी कम है। यह विश्व में सबसे कम है। हालांकि पहले के मुकाबले तलाक के मामलों में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। यह बात फैमिली ला इन इंडिया विषय पर वकीलों की संस्था न्यायाश्रय द्वारा किए गए शोध में सामने आई है।
संस्था के अध्यक्ष एडवोकेट पंकज वाधवानी ने बताया कि हमने पति पत्नी के बीच होने वाले विवादों में अपराधी कानून के दखल एवं उनके प्रभाव पर कानूनी रिसर्च की है। इसमें सूचना के अधिकार अधिनियम से तथा अन्य माध्यमों से प्राप्त विभिन्न आंकड़ों को शामिल किया गया।
25 से 34 वर्ष की आयु में सर्वाधिक तलाक
शोध में कहा है कि पिछले 10 सालों के आंकड़ों के विश्लेषण से यह बात सामने आई है कि भारत में प्रति 1000 विवाह में से लगभग 7 विवाह तलाक की वजह से समाप्त होते थे, किंतु यह आंकड़ा तेजी से बढ़ रहा है। वर्तमान में यह प्रत्येक 200 विवाह में 3 विवाह तक पहुंच गया है। यह पहले के मुकाबले लगभग दोगुना है। दिल्ली और मुंबई जैसे महानगरों में तलाक दर 30 प्रतिशत तक पहुंच रही है। यही स्थिति अब अन्य शहरों की भी होती जा रही है।
आयुवर्ग के हिसाब से देखें तो 25 से 34 वर्ष के बीच सबसे ज्यादा तलाक के मामले आ रहे हैं। शोध में यह बात भी सामने आई है कि भारत में तलाक के कारणों में नगरीयकरण, आधुनिकीकरण, मोबाइल इंटरनेट का अत्याधिक इस्तेमाल, व्यक्तिगत स्वतंत्रता, घटती निर्भरता, महिला सशक्तिकरण, ससुराल पक्ष का व्यवहार, बढ़ता मतभेद, वैचारिक तालमेल का न मिलना, कानून का दुरुपयोग इत्यादि शामिल हैं।
यह बात भी सामने आई है कि दहेज प्रताड़ना के मुकदमे यानी धारा 498 के केस प्रस्तुत होने के बाद परिवार फिर से जुड़ पाना बहुत मुश्किल होता जा रहा है। इसी प्रकार भरण पोषण देने में त्रुटि करने वाले पति को जेल होने के पश्चात तलाक के मामले भी बढ़ रहे हैं। काउंसलिंग एवं अनुभवी समाजशास्त्रियों की मदद लेकर इन समस्याओं को दूर किया जा सकता है। शोध में यह सुझाव भी दिया गया है कि पारिवारिक मामलों में कानूनी दखल को कम से कम किया जाना चाहिए।