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दिल्ली में आज शाम चार बजे पत्रकारिता अनुष्ठान ,दास्तान ए श्रीधर याने हिन्दुस्तानी पत्रकारिता का सफ़र

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राजेश बादल

नईदिल्ली।बारह अगस्त याने शनिवार को राजधानी नई दिल्ली में हिंदी पत्रकारिता के मौजूदा दौर के सबसे चमकदार और प्रामाणिक हस्ताक्षर पद्म श्री विजयदत्त श्रीधर की मौजूदगी में एक नई इबारत लिखी जाएगी। क़रीब पच्चीस – तीस बरस बाद दिल्ली में किसी खांटी हिंदी संपादक के कृतित्व पर कोई चर्चा होने जा रही है। राजेंद्र माथुर और प्रभाष जोशी के बाद यह पहली बार है ,जब हिंदी की अख़बारनवीसी को यह अँगरेज़ीदां शहर इतनी गंभीरता से स्थान दे रहा है। जनपथ पर समवेत सभागार में शाम चार बजे विजय दत्त श्रीधर पर केंद्रित ग्रन्थ विजय दत्त श्रीधर : एक शिनाख़्त का लोकार्पण होगा और समकालीन विशेषज्ञ उस पर अपनी राय प्रकट करेंगे। इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र इसका सूत्रधार है। ग्रन्थ का संपादन मीडिया शिक्षा की जानी मानी शख़्सियत प्रोफ़ेसर कृपाशंकर चौबे ने किया है।
यह ग्रन्थ बताता है कि कोई यूँ ही रातों रात विजय दत्त श्रीधर नहीं बन जाता। अपने को मिटाना पड़ता है , सारी उमर अपने सुखों की क़ुर्बानी देनी पड़ती है और ख़ून पसीना एक करना पड़ता है। इसके बाद ही वह अपने सपनों का संसार रच पाता है। श्रीधर जी ने यही किया है। लेकिन यह उन्होंने अपने निजी सुख के लिए नहीं किया है। माधव राव सप्रे समाचार पत्र के रूप में उन्होंने एक ऐसा आधुनिक ज्ञान तीर्थ लाखों करोड़ों शब्द प्रेमियों को सौंपा है ,जो अख़बारों ,पत्र पत्रिकाओं का संसार में सबसे बड़ा ख़ज़ाना है। आने वाली कई पीढ़ियाँ उनका यह क़र्ज़ कभी उतार नहीं पाएँगीं। यह बात मैं नहीं कह रहा हूँ। विजय दत्त श्रीधर – एक शिनाख़्त नामक इस ग्रन्थ में देश के शिखर शब्द सितारों ने यह बात कही है। कृष्ण बिहारी मिश्र,नारायण दत्त ,रमेश चंद्र शाह ,अमृत लाल वेगड़ अच्युतानंद मिश्र ,कैलाश पंत,राधेश्याम शर्मा ,राम बहादुर राय ,रमेश नैयर ,अरविन्द मोहन ,रमेश दवे और डॉक्टर राजकुमार तिवारी सौमित्र जैसी अनेक विभूतियों ने उन्हें इसके लिए सलामी दी है।
दरअसल आंचलिक और भाषायी पत्रकारिता ही इस मुल्क़ की प्रतिनिधि पत्रकारिता है। और कोई दूसरी पत्रकारिता नहीं है। आंचलिक पत्रकारिता आंदोलन की तरह इस देश में पुनर्स्थापित करने का काम श्रीधर जी ने ही किया है। क़रीब क़रीब आधी सदी पहले उन्होंने इसकी शुरुआत की थी। इसके बाद मजरूह सुल्तानपुरी के लफ़्ज़ों में – मैं अकेला ही चला था जानिबे मंज़िल की ओर ,लोग साथ आते गए और कारवाँ बनता गया।
तो पत्रकारिता की इस विलक्षण शख़्सियत से मुलाक़ात करने और उसके योगदान के अनुष्ठान में शिरक़त करने शाम चार बजे जनपथ पर समवेत सभागार में पधारिए। हिंदी पत्रकारिता की गंगा स्वयं दिल्ली आई है।

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