संतो ने पहले बुराई का त्याग कराया फिर अच्छे संस्कारों को ग्रहण करने हो कहा है-आचार्य श्री विद्यासागर महाराज
भोजन पहले शोधन फिर ग्रहण करना चाहिये
अज्ञान को मै छोड़ता हूँ और ज्ञान को मै स्वीकार करता हूँ – आचार्य श्री विद्यासागर महाराज
सुरेन्द्र जैन रायपुर
संत शिरोमणि 108 आचार्य श्री विद्यासागर महाराज ससंघ चंद्रगिरी डोंगरगढ़ में विराजमान है | आज के प्रवचन में आचार्य श्री ने बताया कि किसानो को इसका ज्ञान होगा ही और भी व्यक्ति जो घूमते हैं या घूमने निकलते हैं इस वनस्पति कि जानकारी उनको होगी जिसका नाम है बेशरम | मनुष्य के लिये बेशरम कहना ठीक नहीं चाहे वह छोटा बालक ही क्यों न हो क्योंकि यह भीरती भाव मीमांशा है | मैने देखा एक पशु आया वह अपने भोजन (राशन) कि खोज में बेशरम के पौधे कि एक परिक्रमा लगाया उससे संतुष्ट नहीं हुआ जबकि वह हरा – भरा, खिला हुआ था जबकि उसके लिये कोई विशेष प्रबंध नहीं होता है वहाँ रेत थी मिटटी भी नहीं थी प्रायः किसान अपने खेत कि बाड़ी में इसे लगाता है ताकि कोई पशु उसे लांघकर खेत में ना घुसे | उस बेशरम के पौधे के पास से गाय, बैल, आदि सभी उसे देखकर यानि सूंघकर निकल गए | पशुओं ने इसमें ऐसा क्या देखा या सूंघा जो इसको बिना खाए ही आगे बढ़ गए | उसका भोजन (सेवन) नहीं करते यह देखकर ऐसा लगा कि इसमें कुछ अलग विज्ञान है इसपर यदि आई. आई. टी. वाले शोध करते तो बहुत बड़ा काम होगा | इसको यदि धर्म से जोड़ा जाये तो हमें भी खाने कि वस्तु का शोधन पहले ग्रहण बाद में करना चाहिये | संतो ने पहले बुराई का त्याग कराया फिर अच्छे संस्कारों को ग्रहण करने हो कहा है | अज्ञान को मै छोड़ता हूँ और ज्ञान को मै स्वीकार करता हूँ | इस प्रकार पन्द्रह बीस ऐसे स्थान दिये जैसे वरजन, त्याग आदि ग्रहण करने को कहा है | हम लोगो के लिये तो पूरी कि पूरी किताब ही छपी हुई है जिसमे आहार आदि क्रिया के लिये सम्पूर्ण नियमावली दी हुई है | जब पशु पक्षी खाने के लिये निकलते हैं तो हजारों वनस्पति होती है उसमे से वो उपादेय को ग्रहण करते हैं और हेय को छोड़ देते हैं | उस बेशरम आदि वनस्पति में विष होने के कारण उसको ग्रहण नहीं करते है इसको वे सूंघकर परख लेते हैं कि इसमें जहर है और ये खाने से उनको हानि होगी क्योंकि उनके पास कोई डॉक्टर आदि सुविधा उपलप्ध नहीं होती इसे निदान कहा जाता है | यदि आँखे (बरसात के पानी या गर्मी में इन्फेक्शन आदि से आँखे लाल होने कि बीमारी) आ जाती है तो हरी को देखने से औषधोपचार हो जाता है | कल यहाँ बड़ी यात्रा करके कोई आया था उनका नाम नहीं लूँगा मै जिसकी वजह से यह (आँख आना) विषाक्त वस्तु हवा आदि से औरों में भी फैल गयी | वर्षा के माध्यम से अमृत वर्षा भी होती है और तेजाब वर्षा भी होती है जिससे भयानक रोग हो जाते हैं | एक पौधा तम्बाकू का भी होता है जिसे कोई भी पशु पक्षी कोई भी नहीं खाता है यहाँ तक कि गधा भी इसका सेवन नहीं करता है | केवल मनुष्य ही उसका सेवन गुटखा बनाकर, ब्राउन यानि बीडी और वाइट यानि सिगरेट के माध्यम से करता है | उसके पैकेट में लिखा होता है स्ट्रोंग पाइजन (Strong Poison) फिर भी उसका सेवन करते है | छोटे – छोटे बच्चे भी आज यह बीडी, सिगरेट का सेवन कर इसकी चपेट में आ रहे है जिससे उनको कैंसर जैसी गंभीर बीमारी हो जाती है और इसके ईलाज के लिये करोडो रूपए खर्च करने के बाद भी वह दोबारा हो जाती है | स्मोकर्स के लिये भी एक उपाधि है जिसको “चैन स्मोकर “ कहते हैं | वह एक सिगरेट पिने के बाद तुरंत दूसरी सुलगा लेता है जिसे चैन स्मोकर कहा जाता है और ये लोग समाधी कि कल्पना कर रहे है | हमारा भी ज्ञान इसी प्रकार साहित्य, देव-शास्त्र –गुरु के विषय में लगा रहे जब तक पूर्ण उद्धार न हो | फाउंडेशन (नीव) बहुत इम्पोर्टेन्ट (जरुरी, आवश्यक) होता है उसी के ऊपर पाषाण खड़ा है | सम्यग्दर्शन तभी होगा जब तक सम्यग्ज्ञान नहीं होता है | अपने व्यक्तित्व का प्रशम, सम्वेग, अनुकम्पा, आस्तिक्य होना चाहिये | अपने आस्तिक्य को शरीर से हटाकर सम्वेग के माध्यम से श्रद्धान किया जाता है | इसलिए आपकी यात्रा अभी अनेक पदार्थ कि परख करने जा रही है | अपने शरीर को ही आप सब कुछ मानते हो यह अज्ञान शिरोमणि का काम है | सभी शास्त्र पढने के बाद भी भव्य – अभव्य हो सकता है | ज्ञान होने के बाद भी सम्यग्दृष्टि नहीं होगा क्योंकि अभी भी उसको ऋद्धि – सिद्धी दिख रही है | जबकि वह मुनि जब दसवे पूर्व में प्रवेश करता है वहाँ १२०० विद्यायें उनके पास आकर परिक्रमा लगाती है जिसे वह मुनिराज आँख खोलकर देखते भी नहीं है क्योंकि इसको प्राप्त करने के लिये यह दिगम्बर वेश धारण नहीं किया है | साधु का अर्थ जो आत्मा कि साधना करता है शरीर कि साधना नहीं | एक विशेष संलेखना के माध्यम से वह मनुष्य, नारकी, तिर्यंच नहीं होगा, मुक्त भी नहीं होगा, कल्पवासी देवों में उनका जन्म होता है वह उसे मुक्ति तक लेजा सकता है ज्यादा से ज्यादा 7 – 8 भव ले सकता है | सम्यग्दृष्टि को स्वर्ग से मनुष्य जन्म जाना अनिवार्य होता है किन्तु यहाँ से मनुष्य होना अनिवार्य नहीं क्योंकि वहाँ सम्यग्दर्शन ही छुट जाता है | मान लो आप बैठे हो और आपके घुटने में एक बिच्छू आकर बैठ गया बड़े डंक वाला वहाँ तो आप बिलकुल हिलना डुलना बंद कर देते हो तो वह कुछ देर में वहाँ से चला जाता है आप तुरंत कहते हो णमो अरिहंताणम अच्छा हुआ चला गया और मै बच गया | ऐसा करना यह बताता है कि यही गलत है यह शरीर मै नहीं हूँ यह कई बार आकर चला गया है और कई बार नया मिला है | जब गधा भी शोध करके भोजन करता है तो आप लोग उससे कई ज्यादा ज्ञानी है तो आपको भी पहले भोजन को शोधन फिर बाद में ग्रहण करना चाहिये |आज आचार्य श्री विद्यासागर महाराज को नवधा भक्ति पूर्वक आहार कराने का सौभाग्य चंद्रगिरी ट्रस्ट के कार्यकारी अध्यक्ष श्री विनोद बडजात्या जशपुर, रायपुर (छत्तीसगढ़) निवासी परिवार को प्राप्त हुआ